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प्रशासन ने धुलेंडी घर पर ही मनाने का किया आह्वान
अमरावती/प्रतिनिधि दि.२७ – सतपुडा की पहाडियों की गोद में बसे मेलघाट के आदिवासी बंधुओं का होली उत्सव हर वर्ष ही परंपरा के अनुसार होते रहता है. लगातार 5 दिन अपने दैनदिन रोजंदारी के कामों को कैची लगाकर आदिवासी बंधू होली के रंग में रंग जाते है. इसके लिए रोजंदारी के कामों से बाहरगांव गए हुए आदिवासी गांव की और लौट रहे है. किंतु पिछले वर्ष समान इस वर्ष भी कोरोना का संकट सामने खडा है. विशेष यह कि प्रशासन ने इस वर्ष भी धुलेंडी घर में ही मनाने का आह्वान किया है. जिससे मेलघाट के आदिवासी इस आदेश का पालन करते है या आदेश की होली यह देखना दिलचस्प रहेगा.
मेलघाट के आदिवासी बंधुओं के लिए होली त्यौहार दिवाली से भी बडा माना जाता है. उनके बीच यह त्यौहार लगातार पांच दिन मनाया जाता है. मेलघाट के इस त्यौहार को होली की पूर्व संध्या से शुरुआत होती है. पहले दिन खेत की फसले व होलीका का पूजन किया जाता है. एक ही दिन सभी गांवों में होलीका दहन नहीं होती. अलग अलग दिन होली जलाई जाती है. पहली बार गांव के बाहर खुली जगह पर आदिवासी नृत्य करते है. अधिकांश गांव के बाहर मेघनाथ का स्तंभ खडा किया जाता है. मेघनाथ आदिवासियों का दैवत है. उसकी पूजा की जाती है. महुआ फूल से निकाली गई शराब सभी को पीने के लिए दी जाती है, किनकी, डोलकी व बांसुरी की ताल पर आदिवासी रातभर नृत्य करते है तथा पलस के फूल से तैयार किया नेैसर्गिक रंग खेलते है. भोजन में मिठी पुरी, मिठा चावल आदि पदार्थों का समावेश रहता है. होली निमित्त मेलघाट के कारा, कोठा, काटकुंभ, बारू आदि गांवों में बडी जत्रा भी भरती है. सतपुडा की पहाडियों से तापी नदी बहती है. इस नदी को आदिवासी बंधू दैवत मानते है, उसकी पूजा करते है. किंतु इस बार भी कोरोना की लहर कमजोर न होने से तथा प्रशासन ने होली घर पर ही मनाने का आह्वान करने से आदिवासी बंधुओं की होली भी बेरंग होने की संभावना ज्यादा है. सालभर जिस त्यौहार की प्रतीक्षा की,वह त्यौहार मनाने के लिए मात्र आदिवासी बंधुओं में उत्सूकता दिखाई दें रही है.