अमरावती

जिन शासन मिलने के बाद उसकी कीमत कितनी?

प्रवचनकर्ता परम पूज्य गुरुवर्य सेजलबाई व सेवाभावी बीजलबाई का सवाल

अमरावती/दि.28- मनुष्य भव जैन कुल आगम के रहस्य को जानने के लिए समझने के लिए और आचरण में लाने के लिए मिला है. भगवान ने तीन प्रकार के आहार बताए हैं. पहले आहार ओज आहार, दूसरा रोम आहार और तीसरा कवल आहार.
पहला कवल आहार, शरीर को जब भूख लगती है तब जो आहार करते हैं उसे कवल आहार कहते हैं. आहार करते समय जीभ का स्वाद, अशुभ भाव, राग-द्वेष का भाव नहीं रखेंगे, यह भाव रखेंगे कि आहार देह के लिए जरूरी है, आत्मा के लिए नहीं. ऐसे भाव रखेंगे तब समझना कि हमने आगम को समझ कर आहार किया है. रोम आहार – शरीर के रोम रोम से आहार करने को हम रोम आहार कहते हैं. जैसे रोम आहार जीव सतत करता रहता है, ठीक वैसे ही रोम-रोम से, हर क्षण में ,श्वास श्वास में, हमें आगम को घुटने की, आगम को आचरण में लाने करने की जरूरत है. गौतम स्वामी ने समय-समय भगवान से प्रश्न पूछ कर रोम आहार ग्रहण किया था. ओझ आहार-माता-पिता के वीर्य से जो आहार मिलता है, और जो अंतिम श्वास तक हम उस आहार को ग्रहण करते हैं. उसे ओज आहार कहते हैं . जिस तरह शरीर के अंतिम श्वास तक हम ओज आहार ग्रहण करते हैं, वैसे ही भगवान की वाणी, क्रिया आचरण का संग्रह करके जीवन में हर पल उसे आचरण में लाने की जरूरत है. 24 तीर्थंकर के बीच में ओज आहार लेने वाला जीव चंड कौशिक का. चंड कौशिक ने सिर्फ भगवान के तीन शब्द भुज भुज भुज सुनकर मन को दृढ़ कर लिया और आत्मा का उत्थान कर लिया .कवल आहार तो जीव समय-समय करता है ,लेकिन चंड कौशिक ने कवल आहार न करके ओज आहार ग्रहण किया था. गजसु कुमाल मुनि के सर पर धंधकते अंगारे रख दिए थे फिर भी समभाव इतना की दीक्षा लिए और उसी दिन केवली बन गए.
1000 विधाओं के धनी रावण जब मरणासन्न अवस्था में थे, तब भगवान राम ने उनकी अंतिम इच्छा पूछी, तब रावण ने चार भाव रखें. पहला – मेरी पहली इच्छा है, की पाताल से लेकर स्वर्ग तक मैं एक पुल बनाऊ , जिससे संसार के सभी जीव स्वर्ग जा सके. दूसरी इच्छा – कोई भी जीव भूखा ना रहे, भूख की वेदना किसी भी जीव को सहन न करना पड़े.
तीसरी इच्छा – मेरी नगरी में कोई भी एक दूसरे का वैरी नहीं होना चाहिए. चौथी इच्छा- मैं सबको अमर बनाने का पुरुषार्थ कर सकूं. मरणासन्न अवस्था में भी रावण के कितने उत्कृष्ट भाव. रावण बहुत बड़े आराध्या थे इसीलिए मरणासन्न अवस्था में भी उनके इतने उत्कृष्ट भाव थे. हमें भी आराधक बनने के लिए मनुष्य भव मिला है. आराधक बनने का पुरुषार्थ करेंगे तो 15वें भव तक मोक्ष जाएंगे. हम भगवान की वाणी बार-बार सुनते हैं लेकिन जब तक बोधी भाव में नहीं आते हैं, तब तक आराधक नहीं बन सकते हैं. भगवान की वाणी को मन, वचन ,काया से संग्रह करने का समय मिला है ,आचरण करने का समय मिला है ,और जब जब जीवन में क्रोध का निमित्त, अशांति के निमित्त ,खड़े होते हैं, तब समभाव रखें . समभाव रखेंगे तो आराधक बन जाएंगे.क्षायिक भाव में रहने का समय मिला है. समय-समय निमित्त जब खड़े होते हैं और जब हम उनका क्षय करते हैं, तभी क्षयिक भाव में आ सकेंगे . देवाधिदेव के शासन में चलने का अवसर मिला है, हीरा जैसा शासन मिला है, उसकी कीमत करेंगे, क्षयिक भाव में रहेंगे, समय-समय ओज आहार ग्रहण करेंगे, तभी आत्मा का उत्थान कर पाएंगे .हम पुण्य बांधने का भाव रखकर आराधना करते हैं, लेकिन आगम जानने के बाद, समझने के बाद, शासन के अंदर रहने के बाद, निर्जरा और संवर करने के लिए भव मिला है .जो जीव समय रहते हुए, समय का मूल्य जान लेगा, समय का मूल्य जानकर, जिनवाणी का मूल्य आंक पाएगा, आचरण में ला पाएंगे, वही जीव पुरुषार्थ करके आत्मा के गुणों को खिला पाएंगे.

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