अमरावती

मृत्यु के बाद नई रोशनी का रास्ता दिखाया ‘हरीना’ ने

महज तीन वर्ष की आयु में हरीना ने दुनिया को कहा था अलविदा

  • जाते-जाते दुनिया को दे गई ‘दृष्टिपथ’, नेत्रदान अभियान हुआ गतिमान

  • आज राष्ट्रीय कन्या दिवस पर विशेष

अमरावती/दि.8 – अमरावती निवासी सोनी परिवार की सबसे प्यारी सदस्य रहनेवाली हरीना सोनी ने दस वर्ष पहले महज तीन वर्ष की आयु में इस फानी दुनिया को अलविदा कहा था. हंसते-खेलते परिवार पर अचानक टूट पडे दु:खों के इस पहाड तले दबने के बावजूद हरीना के माता-पिता सहित पूरे सोनी परिवार ने अपनी भावनाओं पर काबू पाया और एक ऐसा निर्णय लिया, जिसने समाजसेवा के क्षेत्र में एक मिसाल कायम करने के साथ ही सामाजिक आंदोलन को एक नई दिशा दे दी और यहीं से अमरावती में हरीना नेत्रदान संस्था की नीव पडी. जिसके जरिये आज तक हजारों मरणोपरांत नेत्रदान करवाने के साथ ही सैंकडों नेत्रहीन लोगों के जीवन में दृष्टि की नई रौशनी उपलब्ध करायी जा सकी. इसके साथ ही मृत्यु पश्चात कई लोगों के जीवन में रोशनी का उजाला भरनेवाली हरीना नामक बच्ची का नाम आज अमरावती शहर व जिले सहित समूचे राज्य के घर-घर तक जा पहुंचा है.
बता दें कि, करीब 11 वर्ष पहले सन 2010 में स्थानीय व्यवसायी नरेश सोनी व प्रीति सोनी की हरीना नामक तीन वर्षीय प्यारी सी बच्ची की घर में खेलते समय कुलर का शॉक लगने की वजह से मौत हो गई थी. जिसकी वजह से हंसते-खेलते सोनी परिवार पर दु:खों का पहाड टूट पडा था, लेकिन दु:ख और गम की इस घडी में भी अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां का ऐहसास रखते हुए हरीना के माता-पिता तथा दादा-दादी ने अपनी आंखों का तारा रहनेवाली हरीना का मरणोपरांत नेत्रदान करने का निर्णय लिया. जिस पर बाकायदा अमल भी किया गया. इतने पर ही न रूकते हुए उन्होंने अपनी बच्ची का नाम समाजकल्याण के कार्यों हेतु प्रयोग में लाने का निर्णय लिया. यहीं से सोनी परिवार और उनके निकट परिचित मनोज राठी, अशोक मूंधडा व चंद्रकांत पोपट सहित अन्य कई लोगों ने एकजूट होते हुए हरीना नेत्रदान समिती का गठन किया और अधिक से अधिक दृष्टिहिनों को रंग-बिरंगी दुनिया दिखाने हेतु एवं उनके जीवन में रंगों की रोशनी बिखेरने हेतु नेत्रदान को लेकर व्यापक स्तर पर जनजागृति करने का संकल्प किया गया. यहां से हरीना नेत्रदान समिती का सफर शुरू हुआ. जिसमें आगे चलकर शरद कासट, रामप्रकाश गिल्डा, डॉ. लांडे, डॉ. व्यवहारे तथा डॉ. नविन सोनी जैसे कई गणमान्य भी जुडे और किसी समय सालाना आठ से दस की संख्या में होनेवाले नेत्रदान का प्रमाण बढाते हुए इसे अब सालाना 30 से 40 नेत्रदान तक लाया गया है. साथ ही इस दौरान 219 नेत्रहिनों को नेत्र प्रत्यारोपण के जरिये नई रोशनी प्रदान की गई है.
हरीना द्वारा दिखाये गये ‘दृष्टिपथ’ का सफर केवल नेत्रदान व नेत्र प्रत्यारोपण तक ही सीमित नहीं रहा. बल्कि अब यह आंदोलन आगे बढकर अंग प्रत्यारोपण तक जा पहुंचा है. साथ ही इस समिती द्वारा किये गये प्रयासों एवं जनजागृति के चलते अमरावती में ब्रेन डेड होनेवाले कई मरीजों के महत्वपूर्ण अंगोें का सफलतापूर्वक जरूरतमंद मरीजों के शरीर में प्रत्यारोपण किया जा चुका है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, महज तीन वर्ष की आयु में एक हादसे का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त होनेवाली हरीना सोनी ने इस दुनिया से जाते-जाते दुनिया को जीने तथा एक-दूसरे के काम आने का एक शानदार रास्ता दिखाया है. जिस पर चलते हुए एक सामाजिक अभियान अब एक सासमाजिक आंदोलन का रूप ले चुका है और इस जरिये परोपकार की एक नई परंपरा शुरू हुई है.

  • हरीना के अकस्मात चले जाने से हमारे परिवार पर दु:खों का पहाड टूट पडा था. किंतु हमने अपने आप को इस गम से संभाला और इसे ईश्वर की इच्छा मानकर न केवल स्वीकार किया, बल्कि अपनी बच्ची के नाम को समाज के प्रति समर्पित करने का निर्णय लिया. अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत ही हमने समाज के सामने एक आदर्श पेश करने हेतु अपनी बच्ची का मरणोपरांत नेत्रदान कराया. यहीं से हरीना नेत्रदान समिती का सफर शुरू हुआ, जो आज हरीना फाउंडेशन तक आ पहुंचा है और आज अमरावती शहर सहित जिले में नेत्रदान अभियान ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है. यह हम सभी की ओर से हरीना सहित मरणोपरांत नेत्रदान करनेवाले हर एक व्यक्ति के प्रति सच्ची श्रध्दांजलि है.
    – प्रीति सोनी व नरेश सोनी
    स्व. हरीना के माता-पिता

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