अमरावती

मनुष्य जन्म भगवत भक्ति हेतु मिला…

पूज्य गुरुवर्य सेजलबाई म.सा. का कहना

बडनेरा/दि.5– र्मजनवाणी सुनकर श्रोता बनना तो आसान है, लेकिन सच्चे श्रावक श्राविका बनाने का काम तो अनुप्रेक्षा ही करती है. उत्तराध्ययन सूत्र के आठवें अध्ययन के अंदर संसार को अनित्य, अशाश्वत और प्रचुर दुख से भरा हुआ बताया गया है. संसार से संबंध तो हम अनंत काल से रखते आए हैं. लेकिन मनुुष्य भव, शासन से संबंध रखन के लिए मिला है.
भावना ज्ञान का विषय शुरु है. गुरुवर्य फरमाते हैं कि भावना ज्ञान को प्रकट करना है तो अनुप्रेक्षा के अंदर आना पड़ेगा. अनुप्रेक्षा को अमृत समान कहा गया है. देवों को समुंदर समान सुख मिला है फिर भी वे अंदर से दुखी रहते हैं. मनुष्य को सुख सिर्फ टूटे घड़े के टुकड़े जितना ही मिला है, फिर भी हम सभी को सुख से कितना राग है. यही बात विचार करें शुभभाव के अंदर, चिंतन धारा को बढ़ाएंगे तो अनुप्रेक्षा होग और भावना ज्ञान का प्रकट होगा.
जीवन के अंदर ऐसे कई संयोग बनते हैं. जब हमें क्रोध आ जाता है और यही क्रोध बढ़ते-बढ़ते हमें सर्प योनि में पहुंचा देता है. लेकिन जो अनुप्रेक्षा के अंदर रहते हैं. समय-समय पर अनुप्रेक्षा का ध्यान करते हैं, वह भावना ज्ञान में रहते हुए क्रोध रुपी जहर तो दूर करके चेतना में आ जाते हैं. चेतना में रहने को ही भावना ज्ञान कहते हैं. और चेतना से दूर रहना ही भावना अज्ञान का उदय है. भव मिला है, जैन कुल मिला है, सशक्त पांच इंद्रिया मिली हैं, इसको समझते हुए शुभ भाव के अंदर अनुप्रेक्षा में रहने का काम करना है. यह संसार एक नाटक है, 2 मिनट के संसार के नाटक के लिए भव नहीं गवाना है. अनुप्रेक्षा को प्रकट करने के लिए भव मिला है. लेकिन आज के मादौर के अंदर टीवी और मोबाइल के रहते हुए हम इस भाव को अनुप्रेक्षा में न रखते हुए सर्प के जैसे विषैला बना देते हैं. अनंत सिद्धों की साधना के लिए भव मिला है, सुख साधनों में डूबने के लिए भव नहीं मिला है. जिनवाणी की भव्यता को सुनने के बाद शुभ भावों के अंदर रहते हुए अनुप्रेक्षा को जगाना है. आत्मा को सुगंधी बनाना है. काया को बाहर से परफ्यूम इत्र से कितना भी सुगंधी बनाएंगे तो काया तो अंदर से दुर्गंधी ही है.
अक्सर यह सुनने में आता है कि हम नवकारसी भी करते हैं. पोरसी भी करते हैं,. रात्रि भोजन का भी त्याग है. अठाई भी कर लिए है मासखमण भी किए हैं, हमने बहुत धर्म किए हैं. लेकिन पाप की क्रिया करते समय क्या कभी यह विचार आते हैं कि हम सभी बहुत पाप भी करते हैं. अकाम निर्जरा से सकाम निर्जरा में आने का अवसर मिला है. संकल्प विकल्प छोड़कर अनुप्रेक्षा में आने का अवसर मिला है.
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