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अस्थियां मैंने और पीरखाजी ने साथ लाई थी, पीरखाजी का परिवार श्रेय लेना चाह रहा

बाबासाहब की अस्थियां लाने वाले रामजी छापानी का पत्रवार्ता में कथन

अमरावती/दि.8 – वर्ष 1956 में 6 दिसंबर को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण होने की खबर मिलते ही मैं अपने मित्र पीरखाजी सयाजी खोब्रागडे के साथ ट्रेन में सवार होकर मुंबई गया था और हम दोनों ने वहां पर बाबासाहब की अंतिम यात्रा व अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया था. साथ ही वहां से वापिस लौटने के पहले हम दोनों ने बाबासाहब की थोडी-थोडी अस्थियां कागज में लपेटकर अपनी-अपनी जेब में रख ली थी और हम वहां से वापिस अमरावती लौट आए. इस समय मैं अमरावती में ही रुक गया और पीरखाजी नया अकोला जा रहे थे, तो मैंने अपने पास रहने वाली कागज की पूडिया पीरखाजी खोब्रागडे को दी थी. पश्चात पीरखाजी खोब्रागडे के पास रहने वाली अस्थियों और मेरे द्बारा दी गई अस्थियों को साथ मिलाकर नया अकोला गांव में उन्हें बाबासाहब की स्मृति के तौर पर सुरक्षित रखा गया. यह इससे पहले भी कई बार बताया जा चुका है और इस कहाणी से नया अकोला गांव के सभी लोग अच्छे से वाकीफ है. लेकिन अब पीरखाजी खोब्रागडे के परिवार वाले किसी तरह के बहकावे में आकर पूरा श्रेय लूटने का प्रयास कर रहे है. जो बेहद दुर्भाग्यजनक है. इस आशय का प्रतिपादन रामजी छापानी द्बारा आज यहां बुलाई गई पत्रकार परिषद में किया गया.
बता दें कि, दो दिन पूर्व नया अकोला गांव में कांग्रेस द्बारा अभिवादन यात्रा व अभिवादन सभा का आयोजन किया गया था. जहां पर एक बौद्ध विहार में डॉ. बााबसाहब आंबेडकर की अस्थियां सुरक्षित रखी हुई है. इस कार्यक्रम के दौरान मुंबई से बाबासाहब की अस्थियों को नया अकोला लाने वाले रामजी छापानी तथा स्व. पीरखाजी खोब्रागडे की पत्नी श्रीमती शांताबाई खोब्रागडे का सत्कार किया गया था. जिसमें रामजी छापानी ने उपरोक्त तथ्य ही बताए थे. लेकिन इसे लेकर पीरखाजी खोब्रागडे की पत्नी श्रीमती शांताबाई खोब्रागडे और बेटे गौतम खोब्रागडे ने आपत्ति उठाते हुए पत्रवार्ता में आरोप लगाया कि, रामजी छापानी झूठ बोल रहे है और हकीकत यह है कि, बाबासाहब की अस्थियों को केवल पीरखाजी खोब्रागडे ही अमरावती लाए थे. ऐसे में खोब्रागडे परिवार द्बारा लगाए गए आरोपों का जवाब देने हेतु आज रामजी छापानी एवं उनके परिवार द्बारा एक पत्रकार परिषद बुलाई गई और सभी आरोपों का खंडन करते हुए बाबासाहब की अस्थियों को मुंबई से अमरावती लाए जाने की कहाणी एक बार फिर दोहराई गई.
जिला मराठी पत्रकार संघ के वालकट कम्पाउंड परिसर स्थित मराठी पत्रकार भवन में ऑल इंडिया एक्शन कमिटी फॉर बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ के विदर्भ प्रमुख एवं रामजी छापानी के भतीजे मनोज छापानी द्बारा बुलाई गई इस पत्रकार परिषद को संबोधित करते हुए खुद रामजी छापानी ने कहा कि, वे और पीरखाजी खोब्रागडे बचपन से काफी अच्छे दोस्त रहे और अमरावती में एक साथ एक ही होस्टल में रहा करते थे तथा बाबासाहब के महापरिनिर्वाण की खबर मिलते ही दोनों मित्र साथ में मुंबई गए थे. जहां से बाबासाहब की थोडी सी अस्थियां लेकर साथ ही अमरावती लौटे थे. मुंबई जाने और वहां से वापिस लौटने के दौरान वे और पीरखाजी खोब्रागडे एक बार ही एक-दूसरे से बिछडे नहीं थे, बल्कि पूरा समय एक साथ थे. ऐसे में खोब्रागडे परिवार द्बारा किया जा रहा दावा समज से परे है.
इसके साथ ही इस पत्रकार परिषद को संबोधित करते हुए रामजी छापानी के भतीजे मनोज छापानी ने बताया कि, वर्ष 1981-82 के दौरान जब पीरखाजी खोब्रागडे मुंबई के उल्हास नगर में अपने कामकाज के चलते रहा करते थे, तो उस दौरान उनका (मनोज छापानी का) उनके यहां जाना हुआ था और उस समय भी पीरखाजी खोब्रागडे ने उन्हें अस्थियों को लेकर वहीं कहानी सुनाई थी, जो अक्सर उनके चाचा रामजी छापानी उन्हें सुनाया करते थे. दोनों काका (छापानी व खोब्रागडे) द्बारा सुनाई गई कहानी लगभग एक समान थी. ऐसे में किसी ओर तरह के दावे की कोई गुंजाईश ही नहीं है. अत: अब पीरखाजी खोब्रागडे की तीसरी पत्नी शांताबाई खोब्रागडे और उनके बेटे गौतम खोब्रागडे द्बारा किए जा रहे दावे का कोई औचित्य नहीं है.
इस पत्रवार्ता में छापानी परिवार द्बारा यह भी कहा गया है कि, वे किसी तरह का कोई श्रेय नहीं लेना चाहते. लेकिन श्रेय लेने के चक्कर में खोब्रागडे परिवार द्बारा जिस तरह के आरोप लगाए जा रहे है और गलतफहमी फैलाई जा रही है. उसे लेकर स्पष्टीकरण देना जरुरी है. इसी वजह के चलते यह पत्रवार्ता बुलाई गई है. ताकि सच को सामने रखा जा सके. इस पत्रवार्ता में रामजी छापानी, उनकी पत्नी सुभद्रा छापानी व भतीजे मनोज छापानी सहित बाबूराव छापानी, रवींद्र वानखडे, हरिदास अवसरमोल, जानराव सवई, महेंद्र वानखडे, अशोक छापानी व बाबूराव छापानी आदि उपस्थित थे.

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