* अलविदा कहते समय आंख से झलके आंसू
अमरावती/दि. २५– चार साल कामानसिक रूप से दिव्यांग बच्चा, जिसकी मां का उसके बचपन में निधन हो गया, पिता कैंसर के आखरी स्टेज में. चूंकि रिश्तेदार मतिमंद दिव्यांग बच्चे की देखभाल करने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल ने उस बच्चे की जिम्मेदारी स्वीकार की और बालगृह में उसको आधार मिल गया. अपने बच्चे को विदा करते वक्त पिता ने अपने चार वर्षीय पुत्र को कस कर गले से लगा लिया और कहा, ‘अब मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देख पाऊंगा या नहीं…?’ ऐसा कहते हुए रो पडे. इस पल को देखकर कई लोगों की आंखों में आंसू आ गए.
आज समाज जितना विकसित हो रहा है, उतने ही लोग सिकुड़ते जा रहे हैं. जो केवल सुख के इच्छुक हैं उन्हें दूसरों का दु:ख कोई लेना देना नहीं होता. ऐसी एक घटना मन को झकझोर देती है और दर्द की अनुभूति बन जाती है. आज हर कोई अपने परिवार, अपने बच्चों के लिए जीता है, लेकिन कुछ बच्चों की खुशी हमेशा के लिए चली जाती है. एक दिव्यांग बच्चे के कैंसर पीडित पिता की दर्दभरी दास्तां के बारे में पता चलने पर एक व्यक्ति ने श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल की चाइल्ड लाइन को फोन कर मदद की गुहार लगाई. तदनुसार, चाइल्ड लाइन को उस व्यक्ति के साथ बैठक की तो स्थिति के बारे में पता चला. पति-पत्नी मूल रूप से मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन पिछले कई सालों से नंदगांव पेठ में रह रहे हैं. छोटे-मोटे काम करके जीवन यापन करते थे. उन्हें एक पुत्र हुआ, लेकिन वह जन्म से ही दिव्यांग और मतिमंद था. जब बेटा ढाई साल का था तब मां की मौत हो गई. पिता मजदूरी कर इस बच्चे की देखभाल कर रहे थे. पिता को कैंसर हो गया, जो संभव हो वह काम करने अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. जब एक वक्त के खाने की सुविधा ही नहीं है तो इलाज के लिए पैसा कहां से है? हालांकि बेटे की जिम्मेदारी को देखते हुए पिता से जो हो सका, वह काम करने लगे। इलाज के बिना, कैंसर बढ़ता गया. अब आगे क्या होगा ये नहीं पता, लेकिन जो पिता अपने बेटे को लेकर दुविधा में था, उसने आखिर श्री. हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल की चाइल्ड लाइन को फोन कर मदद की गुहार लगाई.
जब चाइल्ड लाइन उस व्यक्ति से मिली तो वह व्यक्ति कैंसर की लास्ट स्टेज में था और पिछले पंद्रह दिनों से एक बच्चे के साथ सड़क पर रह रहा था. बासी चावल पर गुजारा करने वाले इस शख्स ने अपने बेटे के लिए हेल्पलाइन के पास चिंता जताई. हेल्पलाइन के सभी अधिकारियों ने बच्चे की जिम्मेदारी ली और उस व्यक्ति को आश्वस्त किया. पिता और पुत्र को सबसे पहले बाल कल्याण समिति अमरावती के सामने लाया गया और विकलांग और मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चे की देखभाल करने की पहल की. सबसे पहले उन्होंने इस बच्चे का दाखिला आसेगांव पूर्णा स्थित मतिमंद विद्यालय में कराने की कोशिश की, लेकिन गर्मी की छुट्टी होने के कारण यह स्कूल बंद हो गया. अमरावती जिले में इस बच्चे लिए कोई आश्रय नहीं होने के कारण हेल्पलाइन ने लातूर में बाल कल्याण विभाग से चर्चा कर पूरे मामले की जानकारी दी. अंतत: बाल कल्याण विभाग लातूर ने इस बच्चे की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली.
श्री हव्याप्र मंडल के हेल्पलाइन अधिकारी दिव्यांग बच्चे को लातूर ले जाने के लिए तैयार हो गए. बच्चे को अपने पिता से भेंट करवा दी. दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और पिता रोते हुए कह रहे थे, ‘अब फिर मिलेंगे या नहीं?’. दिव्यांग बेटे को पता नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला है, लेकिन उसे लगा कि उसके पिता रो रहे हैं. बच्चे ने भी अपने पिता को भी कस कर पकड़ रखा था. इस द़ृश्य को देखकर उस समय उपस्थित सभी लोगों की आंखों में आंसू आ गए. इस दौरान व्यक्ति को चाइल्ड लाइन के माध्यम से बच्चे से मिलने का आश्वासन दिया गया.
* इनका मिला सहयोग
इस पहल के लिए श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के प्रधान सचिव पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य, सचिव माध्ाुरी चेंडके, चाइल्ड लाइन के निदेशक डॉ. नितिन काले का बहुमूल्य सहयोग मिला. बाल कल्याण समिति अध्यक्ष किरण मिश्रा, सदस्य अंजलि गुलक्शे, सारिका तेलखड़े, दीपाली महाजन, सुचिता बर्वे, बाल कल्याण समिति लातूर, संत गाडगे बाबा अनाथालय लातूर, जिला बाल संरक्षण इकाई अधिकारी अजय दुबले, चाइल्ड लाइन सेंटर समन्वयक शंकर वाघमारे, काउंसलिंग सपना गजभिए, टीम मेंबर मीरा राजगुरे, पंकज शिंगारे, सरिता राउत, अजय देशमुख, ऋषभ मुंडे, सरयदय जेवाने, अभिजीत ठाकरे ने प्रयास किए.
* चाइल्ड लाइन : बेसहारो का सहारा
चाइल्ड लाइन मिशन वात्सल्य, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के तहत श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल द्वारा संचालित बच्चों के लिए २४/७ राष्ट्रीय आपातकालीन सेवा है. इस चाइल्ड लाइन (१०९८) का भारत में ६०२ स्थानों पर केंद्र है. अमरावती में अमरावती चाइल्ड लाइन सेंटर में श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल २००३ से चल रहा है. चाइल्ड लाइन द्वारा पिछले एक साल में ४८३ बच्चों की मदद की गई. इनमें बाल मजदूर १५, बाल भिखारी १२, यौन शोषण ६, मानसिक प्रताडित १९, बाल विवाह २३, तस्करी २, लापता १६, मिले १५, शारीरिक शोषण २०, मेडिकल २३, काउंसलिंग २९, आश्रय ८९, रेफर सर्विस २, प्रायोजक २९, अन्य १८३ शामिल हैं. श्रीहव्यप्र चाइल्ड लाइन का कार्य आज निराश्रितों के लिए एक बड़ा सहारा बन गया है.