अमरावतीमहाराष्ट्र

गवलान समाज की समस्याओं को संसद में उठाऊंगा- सांसद बलवंत वानखड़े

कहा - शीघ्र ही गवलान समाज केंद्र की 3री सूची में शामिल होगा

* अखिल भारतीय गवलान समाज का महासम्मेलन संपन्न
अमरावती/दि.5– हाल ही में अमरावती जिले के मेलघाट धारणी सादराबाड़ी जैसे अत्यंत दुर्गम भाग में अखिल भारतीय गवलान समाज का महासम्मेलन आयोजित किया गया. इस सम्मेलन की अध्यक्षता विमुक्त घुमन्तु अर्धघुमन्तु जनजाती राष्ट्रीय आयोग के पूर्व अध्यक्ष बालकृष्ण रेणके ने की. सम्मेलन का उद्घाटन अमरावती जिले के सांसद बलवंत वानखड़े ने किया. अपने उद्बोधन में सांसद बलवंत वानखड़े ने कहा कि मेलघाट सिर्फ अमरावती ही नही बल्कि पूरे विदर्भ का सबसे पिछड़ा क्षेत्र हैं, आदिवासी बहुल इलाका होने के कारण रोजगार का एकमात्र साधन वनोत्पादन एवम दुग्धउत्पादन ही हैं, गवलान समाज भी आदिवासी जनजातियो के समकक्ष जिंदगी जी रहा हैं. अतः इस समाज को भी उन्ही के अनुसार सरकार की सहुलियत मिलनी चाहिए. केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ भी इस समाज को मिले, इसके लिए केंद्र सरकार की 3री सूची में गवलान समाज का समावेश होना अत्यंत आवश्यक हैं और मैं संसद में इस विषय को लेकर पत्रव्यवहार और चर्चा करुंगा ऐसा सांसद ने विश्वास दिलाया.
बता दे कि गवलान समाज गवली समाज की ही एक उपजाति हैं. गवली समाज और उसकी सभी उपजातियों को केंद्र की 3री सूची में शामिल किया गया, ग़ौरतलब हैं गवळी समाज की 23 उपजातियों में से सिफर्फ गवलान समाज ही केंद्र की 3री सूची में शामिल होने से वंचित रहे गया हैं, इसी बात पर मंथन करने के लिए इस महासम्मेलन का आयोजन किया गया, इस सम्मेलन में मुख्य अतिथी के रूप में राज्य मगासवर्गीय आयोग की पूर्व सदस्यता एड.पल्लवी रेणके, सामाजिक कार्यकर्ता व गवली समाज के नेता सलीम मिरावाले, भटकी विमुक्त जाती के नेता सुधाकर बड़गुजर, साद्राबाड़ी की उपसरपंच पारु पटोरकर, ग्राम वज्झर की सरपंच छाया पारवे मंच पर उपस्थित थे. अपने सम्बोधन में राज्य मगासवर्ग आयोग की पूर्व सदस्य एड.पल्लवी रेणके ने कहा कि आदिवासी जनजातियो के लिए पेसा नाम का एक कायदा बना, जिसके तहत ऐसी जनजातियां जिनकी उपजीविका का आधार ही वनउपज हैं, उन्हें इस कायदे का लाभ मिलता हैं, इस कायदे के तहत उन्हें जल-जंगल और जमीन पट आधारित लाभ मिलता हैं और वे वनों के भीतर जाकर अपनी आजीविका के साधन जुटा सकते है, गवलान समाज को भी इसका लाभ मिलता हैं, किंतु वन्यजीव संरक्षण कायदे के तहत गवलान समाज को इसकी सुरक्षा नही मिलती हैं. केंद्र सरकार द्वारा 2017 में निर्णय लिया गया था कि आदिवासी, घुमन्तु जनजातियो का डोर टू डोर जाकर सर्वेक्षण होगा, किन्तु अभी तक उसकी अंमलबजावणी नही हो पाई. सम्मेलन की प्रस्तावना चिरौंजिलाल खंडेलवाल ने की और आभार अनोखीलाल वाघमारे ने माना सम्मेलन का उत्कृष्ट संचालन घनश्याम वाघमारे ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अनोखेलाल वाघमारे, मनोहर मोरे, चिरौंजिलाल खण्डेलवाल, रूपचंद पटोरकर, सुखराम भिलावेकर, मनु मेले, बबलू खंडेलवाल, चतुरी शिंगारे, गजु खंडेलवाल सहित समस्त साद्राबाड़ी ग्राम के समाजबंधुओं ने अथक परिश्रम किया.

संगठन के माध्यम से समस्याओं का समाधान
गवली समाज के नेता सलीम मिरावाले ने अपने सम्बोधन में कहा कि संगठन के माध्यम से ही हम समाज की समस्याओं का समाधान कर सकते है, इसीलिए संगठित होना अत्यावश्यक हैं। हमने संगठन के माध्यम से ही गवलान समाज को पहले ओबीसी में लाया और फिर भटकी जाती में भी इसे शामिल करवाया, कुछ तांत्रिक त्रुटियों की वजह से गवलान समाज केंद्र की 3 री सूची में समाविष्ट नही हो पाया, किन्तु इसके लिए हमारा नवगठित गवली समाज कृति समिती इसके लिए प्रयासरत हैं. उन्होंने आगे कहा कि किसी भी सामाजिक संगठन को अपने संगठन में राजनीती की घुसपैठ नही होने देनी चाहिए, जिस दिन समाजिक संगठन में राजनीति हावी हो गई, उसी दिन से संगठन में बिखराव शुरू हो जाते है. इसी वजह से ‘गवली समाज कृति समिति‘ जैसा अराजकीय सामाजिक संगठन हमने खड़ा किया हैं और संगठन के माध्यम से हमने समस्त गवली समाज को लाभ मिले इसके लिए ‘श्रीकृष्ण आर्थिक विकास महामण्डल‘ की मांग राज्य सरकार से की हैं.

गवली समाज पिछड़ा हुआ
अपने अध्यक्षीय भाषण में रेणके आयोग के पूर्व अध्यक्ष बालकृष्ण रेणके ने कहा कि जब मैं आयोग का अध्यक्ष था, तब मैने सम्पूर्ण गवली समाज की सभी उपजातियों का बारीकी से अभ्यास किया था और मैने पाया कि गवली समाज की अन्य उपजातियों की अपेक्षा गवलान समाज और मुस्लिम गवली समाज ज्यादा पिछड़ा हुआ हैं. गवलान समाज तो मेलघाट जैसे अत्यंत पिछड़े क्षेत्र से आता हैं. पिछड़े क्षेत्र में अत्यंत पिछड़ा समाज के रूप में गवलान समाज आता हैं. आपको बता दुं की जब तक आपके समाज का सर्वेक्षण नही होगा तब तक आपकी समस्याओं का निराकरण नही होगा. सर्वेक्षण एक्सरे की भांति होता हैं, जिससे समाज की आंतरिक स्थिति का पता चलता है. अतः आपको अपने समाज का सर्वेक्षण करवाने के लिए जिस तरह बच्चा दूध के लिए रोता हैं, आपको भी उसी तरह रोना पड़ेगा, लेकिन अकेले नही सामूहिक रूप से रोना पड़ेगा, तभी आपकी आवाज उपर तक पहुच पाएगी. सर्वेक्षण के द्वारा आपकी परिस्थिति का आकलन होगा , न्यायिक भाषा मे इस सर्वेक्षण को इम्पेरिकल डाटा कहा जाता हैें. मराठा समाज का आरक्षण भी इसी इम्पेरिकल डाटा की कमी के कारण रद्द कर दिया गया.

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