अमरावती

रक्तदान के जरिये याद किया गया इब्राहीम पठान को

मां बुशरा पठान ने आयोजीत किया उपक्रम

  • खुद भी बेटे की याद में किया रक्तदान

अमरावती/दि.14 – वेलेंटाईन डे के आते ही कई लोगों के दिलों में प्रेम व्यक्त करने हेतु कई तरह की भावनाएं व कल्पनाएं जन्म लेती है. हकीकत में प्रेम बडी ही निरागस, निरामय व व्यापक भावना है तथा केवल प्रेमी व प्रेमिका के बीच भी प्रेम नहीं होता, बल्कि यह किसी भी रिश्ते को बहारदार बना सकता है और हर रिश्ते में व्यक्त हो सकता है. ऐसे ही गुरूकूंज मोझरी परिसर में एक मां ने अपने बेटे की संकल्पपूर्ति का जिम्मा उठाते हुए बडे अनूठे ढंग से वेलेंटाईन डे मनाने का निर्णय लिया और अपने बेटे की याद में वेलेंटाईन डे की पूर्व संध्या पर रक्तदान शिबिर का आयोजन करने के साथ ही खुद भी रक्तदान करते हुए अपने बेटे को याद किया.
बता दें कि, तिवसा निवासी इब्राहीम पठान बेहद कम आयु से ही सामाजिक कार्यों में रूचि लेने लगा था और उसने 20 हजार पौधे लगाने का संकल्प भी लिया था. जिसके तहत महज 16 वर्ष की आयु पूर्ण करते हुए 29 जुलाई 2021 तक इब्राहीम पठान ने करीब 18 हजार पौधे लगाये थे. किंतु 31 जुलाई को इब्राहीम पठान अकस्मात और असमय ही इस दुनिया को महज 16 वर्ष की आयु में अलविदा कह गया. ऐसे में 13 फरवरी को इब्राहीम पठान के 17 वें जन्मदिवस के अवसर पर उसकी मां बुशरा पठान ने अपने बेटे की याद में रक्तदान शिबिर का आयोजन करने का फैसला किया और यह आयोजन करते हुए खुद भी अपने बेटे की याद में रक्तदान किया. वहीं इब्राहीम के भाई ताहीर पठान ने इब्राहीम के अधूरे संकल्प की पूर्ति करते हुए शेष 2 हजार पौधों का वृक्षारोपण किया और इन पौधों का ताहीर पठान द्वारा ही संवर्धन भी किया जायेगा. ऐसे में कहा जा सकता है कि, भले ही आज इब्राहीम पठान इस फानी दुनिया में मौजूद नहीं है, लेकिन उसके परिजनों द्वारा उसके कामों को आगे बढाते हुए उसकी यादों को जिंदा रखा जा रहा है.

ग्रामगीता का उर्दू भाषा में रूपांतर

गुरूकूंज व मोझरी परिसर में रहनेवाले सभी नागरिकों की तरह पठान परिवार भी राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के विचारों को मानते है और खुद को बडे गर्व के साथ गुरूदेव भक्त कहते है. इब्राहीम की मां बुशरा पठान को राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के श्लोक व अभंग पूरी तरह से कंठस्थ है और उन्होंने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज द्वारा लिखीत ग्रामगीता का उर्दू भाषा में रूपांतरण भी किया है, ताकि उर्दू भाषा को जाननेवाले लोग भी राष्ट्रसंत के विचारों को जान सके.

13 वर्ष की आयु में अमरीका गया था इब्राहीम

इस रक्तदान शिबिर के अवसर पर अपने बेटे से जुडी तमाम यादों को ताजा करते हुए बुशरा पठान ने बताया कि, उनका बेटा इब्राहीम पठान महज 13 वर्ष की आयु में स्काउट शिबिर के लिए अमरीका गया था और वह एक बेहतरीन स्काउट कैडेट था. स्काउट के जरिये ही इब्राहीम पठान के मन में सामाजिक कामों को लेकर रूचि जागी और परिवार ने भी उसे सामाजिक कामों के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया. हमेशा हंसमुख रहनेवाला इब्राहीम उनके परिवार के साथ-साथ पूरे गुरूकूंज मोझरी परिसर की शान था. किंतु होनी को शायद कुछ और मंजूर था और आज भले ही इब्राहीम हम सबके बीच नहीं है, लेकिन हम उसके अधूरे कामों को पूरा करते हुए उसकी यादों को जिंदा रखेंगे.

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