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देहात में चिकित्सा सेवा की पहचान

डॉ. अमिता सुरेंद्र दोंदलकर

* सेवा से प्राप्त सुकून अपरिमित
अमरावती/दि.8- गांव देहात में चिकित्सा सेवा देना सचमुच बडा दुष्कर कार्य है. लोगों से अधिक फीस की उम्मीद भी नहीं कर सकते. किंतु सेवा पश्चात उनके चेहरे पर आने वाले आनंद को देखकर जो सुकून मिलता है, संतोष प्राप्त होता है वह अपरिमित अर्थात गिना ना जा सकने वाला होता है. यह प्रतिपादन डॉ. अमिता सुरेंद्र दोंदलकर ने किया. अमरावती मंडल से बातचीत में उन्होंने कहा कि लडकियों को आज सारा जहान खुला है वे अपने संघर्ष से जो चाहे प्राप्त कर सकती हैं. अपना क्षेत्र चुन ले, भरपूर अवसर है. चिकित्सा क्षेत्र में आना है तो सेवाभाव को आगे रखना होगा. तब जाकर इतना प्यार और भरोसा मिलता है कि किसी पात्र में वह समा नहीं सकता. नजर नहीं आता किंतु अनुभव जरुर होता है, जो जीवन को सुरभित और सुकून भरा बनाता है.
महिला दिवस पर अमरावती मंडल से बातचीत में डॉ. दोंदलकर ने बताया कि, उन्होंने वर्ष 2004 में अपनी शिक्षा पूर्ण कर ली थी. बीएचएमएस की डीग्री के बाद वे प्रैक्टिस और डेवलपमेंट के लिए गडचिरोली जिले के धानोरा में डॉक्टर अभय और डॉक्टर रानी बंग के साथ 1 वर्ष रही. वहां गांव देहात के मरीजों की सेवा कर अनुभव प्राप्त किया. कालांतर में उनका प्रा. सुरेंद्र से विवाह हो गया. प्रा. सुरेंद्र धामणगांव में डीएड कॉलेज के प्राचार्य है. यवतमाल में रहते हुए डॉ. दोंदलकर ने क्रिटिकेयर अस्पताल में आरएमओ के रुप में जिम्मेदारी संभाली.
* कुर्‍हा में सेवा, मिला प्यार और विश्वास
डॉ. अमिता ने बताया कि, वक्त के साथ उन्हें कुर्‍हा बसना पडा. वहां उन्होंने खाली बैठने की बजाए अपनी प्रैक्टिस आरंभ की. यहां उन्हें लोगों का उपचार करने के साथ-साथ उनमें स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता भी करनी थी. उन्होंने बडे चाव से यह कार्य किया. बेशक संघर्ष करना पडा. अपना क्लिनिक सेटअप करने से लेकर प्रैक्टिस जमाने में वक्त लगा. किंतु अच्छे लोग मिले. सभी के साथ वे आज भली प्रकार घुलमिल गई हैं. डॉ. अमिता का मानना है कि अपनी मेहनत और लगन से काफी कुछ प्राप्त किया जा सकता हैं. महिलाएं तो विशेष रुप से जो चाहे वह अपनी लगन, मेहनत से प्राप्त कर सकती है. कोशिश होनी चाहिए.
* उस घटना ने दिया असीम संतोष
डॉ. दोंदलकर ने एक घटना विशेष के बारे में बताया कि, वे घर में सोई थी रात डेढ बजे एक व्यक्ति दरवाजा खटखटाने लगा. वह पेशे से राजकाम मिस्त्री था. उसकी पत्नी को लेबर पेन हो रहा था. किंतु साधनों के अभाव में वह उसे तरंतु अस्पताल नहीं ले जा सकता था, ऐसे में डॉ. दोंदलकर ने उसकी बडे अथक प्रयासों से घर में ही प्रसूति करवाई. फिर ब्लीडिंग नहीं रुक रही थी. इसी तरह इंजेक्शन्स आदि देकर रक्तस्त्राव रोका गया. दूसरे दिन उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया. जच्चा -बच्चा के स्वस्थ्य रहने से उनके घर के लोगों ने राहत की सांस ली और डॉक्टर मैडम को बहुत धन्यवाद दिए. उनके चेहरे पर आया असीम संतोष डॉ. दोंदलकर को बडा सुकून दे गया. वे बताती है कि चिकित्सा क्षेत्र में ऐसे बहुतेरे अनुभव आते हैं. किंतु उनके व्दारा दिया गया शाबासी का इनाम उनके लिए प्रेरक रहा. वे स्वयं एक पुत्र और पुत्री की माता हैं. संतरे के बगीचे की भी देखभाल करती हैं.

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