अमरावती

गर्भस्थ शिशु में कोई व्यंग तो नहीं, पहले ही कराए नि:शुल्क जांच

बच्चे के स्वास्थ्य के लिए नियमित जांच है जरुरी

अमरावती/दि.13– गर्भाशय में रहने वाले बच्चे में डाउन सिंड्रोम, एडवर्डस सिंड्रोम व पैन्ट्रो सिंड्रोम सहित अन्य कोई व्यंग या विकार को नहीं है. उसे देखने हेतु एनटी सोनोग्राफी की जाती है. पहले स्कैन के बाद यदि बच्चे में रहने वाले व्यंग की जानकारी सही तरीके से समझने में नहीं आती, तो कुछ समय बाद दुबारा सोनोग्राफी करने के साथ ही स्त्री रोग व प्रसूति विशेषज्ञ द्बारा गर्भवती महिला को दी जाती है. उसे ध्यान में रखते हुए नियमित अंतराल पर एनटी सोनोग्राफी करवाते हुए गर्भस्थ शिशु के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की जानकारी पता करनी चाहिए. ऐसा करना पैदा होने वाले बच्चे सहित उसके माता-पिता के लिहाज से भी अच्छा रहता है.

बता दें कि, गर्भधारणा होने के बाद अगले 9 माह बच्चे के माता-पिता सहित पूरे परिवार के लिए घर में आने वाले नये मेहमान की कल्पना करते हुए बेहद खुशी एवं उत्सुकता से भरे होते है. इस समय बच्चे की आने की खुशी के साथ ही उन्हें बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर भी कई तरह की चिंताएं रहती है. जिसके तहत सबसे बडी फिक्र यहीं होती है कि, बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ व सुदृढ हो तथा उसमें पैदाइशी तौर पर किसी तरह का कोई विकार या व्यंग न हो, ऐसे में गर्भस्थ शिशु में कहीं कोई व्यंग का विकार तो नहीं है. इसकी जांच सोनोग्राफी के जरिए की जाती है. इसके लिए तीसरे महिने में की जाने वाली सोनोग्राफी सबसे महत्वपूर्ण रहती है.

* गर्भावस्था में कब जांच जरुरी?
गर्भ मेें रहने वाले बच्चे के स्वास्थ्य की ओर ध्यान रखने हेतु गर्भवती महिला के लिए नियमित अंतराल पर अपनी सोनोग्राफी करवाना जरुरी होता है. इसके तहत गर्भधारणा के पश्चात 3 माह या 12 सप्ताह बाद पहली सोनोग्राफी करवाई जाती है. इसके पश्चात 16 से 24 सप्ताह के कालावधी के दौरान दूसरी तथा 28 से 32 सप्ताह के दौरान तीसरी सोनोग्राफी करवाना जरुरी होता है. इसके अलावा डॉक्टर की सलाह के अनुरुप रक्तजांच एवं गर्भजल परीक्षण भी करवाना चाहिए.

* कौन सी सतर्कता जरुरी
– गर्भवती महिला ने पौष्टिक व सात्विक आहार लेना चाहिए. साथ ही गर्भावस्था के दौरान सभी जरुरी स्वास्थ्य जांच व परीक्षण भी करवाने चाहिए.
– इसके साथ ही गर्भधारणा से पहले भी पति-पत्नी ने अपनी स्वास्थ्य जांच करनी चाहिए और 35 वर्ष की आयु के बाद गर्भधारणा को टालना ही चाहिए.

* 2 से 3 बच्चों में रहता है व्यंग
सोनोग्राफी जांच के जरिए गर्भस्थ शिशु में रहने वाला किसी भी तरह का व्यंग या विकार समझमें आ जाता है. वहीं कई बार बच्चा प्रसूति के समय स्वस्थ दिखाई देता है, लेकिन 4-5 माह बाद उसमें व्यंगत्व दिखाई देता है, ऐसा 100 में से 2 या 3 मामलों में हो सकता है, ऐसी जानकारी स्वास्थ्य विभाग द्बारा दी गई है.

* व्यंगत्व वाले बच्चों की पैदाइश के कारण
व्यंगत्व रहने वाले बच्चों की पैदाइश होने का सबसे बडा प्रमुख कारण इन दिनों युवाओं का देरी से होने वाला विवाह है. इसके अलावा 35 वर्ष की आयु के आसपास गर्भधारणा होने पर भी पैदा होने वाले बच्चे मेें व्यंगत्व रह सकता है. वहीं गर्भवती महिला को कोई बीमारी, मधुमेह व मिर्गी जैसी समस्या रहने पर दी जाने वाली दवाईयों, किसी तरह के व्यसन, आहर का अभाव आदि का भी गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर परिणाम पड सकता है. इसके अलावा यदि परिवार में किसी को पहले से ही किसी तरह का कोई व्यंगत्व है, तो संबंधित परिवार में पैदा होने वाले किसी बच्चे में आनुवांशिक तौर पर व्यंगत्व हो सकता है. अत: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं ने अपनी सभी जरुरी स्वास्थ्य जांच करवानी चाहिए.

* गर्भावस्था जारी रहने के दौरान हाईरिस्क महिलाओं का वर्गीकरण किया जाता है. इसमें जिन महिलाओं को किसी तरह की कोई बीमारी है अथवा उन्हें किसी तरह की कोई दवाई दी जा रही है, तो ऐसे मामलों में उनकी फैमिली हिस्ट्री की जांच करते हुए उन्हें आवश्यक परीक्षण करने की सलाह दी जाती है. इसके तहत सोनोग्राफी, गर्भाशयजल व रक्तजांच करते हुए गर्भस्थ शिशु सुदृढ है अथवा नहीं, इसकी जांच की जाती है.
– डॉ. विनोद पवार,
वैद्यकीय अधीक्षक,
जिला स्त्री अस्पताल.

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