अमरावती

चिखलदरा में जमीन की हुई गैरकानूनी बिक्री

सरकार ने पर्यावरण समिती के सामने मानी गलती

  • अब सभी की निगाहें समिती के फैसले की ओर

चिखलदरा/दि.22 – पर्यटन स्थलों के पास स्थित कृषि जमीनें बिल्डरों को बेची गई. यह पूरी तरह से गैरकानूनी व्यवहार है. जिससे वन विभाग बिल्कुल भी सहमत नहीं. जिलाधीश ने वर्ग 2 की अहस्तांतरणीय जमीन खरीदी हेतु अनुमति देकर गलती की है और इस गलती को स्वीकार करते हुए राज्य के मुख्य सचिव, वन विभाग तथा व्याघ्र प्रकल्प आदि द्वारा केंद्रीय पर्यावरण समिती को पत्र दिया गया है. साथ ही अब इस संदर्भ में समिती द्वारा लिये जानेवाले निर्णय की ओर सभी का ध्यान लगा हुआ है.
बता दें कि, राज्य सरकार, वन विभाग व मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई थी. साथ ही सीईसी के पास एड. मनीय जेस्वानी के मार्फत विजय चव्हाण द्वारा दायर याचिका पर नोटीस जारी करने के बाद एक सप्ताह पूर्व जवाब के तौर पर उपरोक्त पत्र दाखिल किया गया. इस याचिका में चव्हाण द्वारा चिखलदरा के आसपास स्थित पांच गांवों की जमीनों को वर्ग-2 से वर्ग-1 में बदलने संदर्भ में जिलाधीश द्वारा लिये गये निर्णय को चुनौती दी गई थी.

ये सभी गांव हैं आरक्षित वन गांव

वनविभाग के मुताबिक इन गांवों को 22 जुलाई 1891 को आरक्षित वन के रूप में घोषित किया गया था. तथापि वनगांवों को राजस्व गांव में रूपांतर करने की प्रक्रिया सुलभ करने हेतु सर्वेक्षण किये बिना आरक्षण रद्द करने की तात्पूरती अधिसूचना 18 मई 1969, 17 मई 1970 तथा 25 जून 1970 को जारी की गई थी. पश्चात विस्तृत सर्वेक्षण के बाद 17 जून 1987 को अंतिम अधिसूचना जारी की गई. इस समय तक इन गांवों का नियंत्रण वनविभाग के पास था. अंतिम सर्वेक्षण के पश्चात यानी वर्ष 1987 के बाद इन गांवों की जमीनोें को भोगवटा वर्ग-2 की जमीन के तौर पर मान्यता दी गई, जो केवल हस्तांतरित करने हेतु मर्यादित है. इन नियमों व शर्तों के साथ इन गांवों को वनविभाग द्वारा राजस्व विभाग के सुपुर्द किया गया था.

जमीन अहस्तांतरणीय

इन गांवों के जमीन धारकों पर जंगलों की रक्षा और वनों की सुरक्षा में मजदूर के तौर पर काम करने की जिम्मेदारी व कर्तव्य सौंपे थे. ऐसे में हस्तांतरित की गई वन जमिनों का अन्य उपयोग करने हेतु हस्तांतरण करने पर प्रतिबंध भी लगाया गया. यह बात जमीन के उपयोग की अनुमति देते समय दर्ज की गई.

क्या है पूरा मामला

चिखलदरा पर्यटन स्थल के पास ही स्थित गांवों में वन जमीन का दर्जा वर्ग-2 से वर्ग-1 में बदलना गैर कानूनी रहने की बात राज्य सरकार व वनविभाग द्वारा मान्य किया गया है. किंतु वन संवर्धन अधिनियम को मान्य करने में उनके द्वारा टालमटोल की गई. व्याघ्र प्रकल्प द्वारा 3 नवंबर 2021 को दर्ज की गई जानकारी के मुताबिक जिलाधीश कार्यालय द्वारा 6 जुलाई 2020 को एक आदेश जारी करते हुए शहापूर, लवादा, आलाडोह, मोथा व मडकी गांव की वर्ग-2 जमीनों का वर्ग-1 में रूपांतरण किया गया. हिल स्टेशन के पास ही स्थित इन वन जमिनों को बडे-बडे बिल्डरों व रिसोर्ट लॉबी द्वारा खरीदा गया. साथ ही इन स्थानों पर बडे पैमाने पर निर्माण किया जा रहा है.

  • अहस्तांतरणीय कृषि भूमियों का गैरकानूनी व्यवहार हुआ. जिससे वन विभाग भी सहमत नहीं है और आठ दिन पहले केंद्रीय समिती के समक्ष हलफनामा पेश करते हुए अपनी गलती भी मान्य कर ली गई है. ऐसे में अब केंद्रीय समिती द्वारा सुनाये जानेवाले निर्णय की प्रतीक्षा है.
    – एड. मनीष जेस्वानी
    याचिकाकर्ता के वकील, अकोट

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