प्रतिकार शक्ति का शरीर पर हमला
बीमारी में सिस्टेमिक ल्युपस एरिथेमोटस का प्रमाण चिंताजनक
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अमरावती /दि. 12– कभी-कभी अपनी रोग प्रतिकारक शक्ति ही अपने शरीर के अवयवों पर हमला करती है तब ल्युपस नामक बीमारी की शुरुआत होती है. जिसे वैद्यकीय भाषा में सिस्टेमिक ल्युपस एरिथेमोटस यानी एसएलई कहा जाता है. यह एक तरह का वातरोग है. जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है. इस बीमारी की चपेट में आनेवाले 10 मरीजों में से 9 मरीज महिलाएं ही होती है. खास बात यह है कि, प्रजननक्षम महिलाओं सहित छोटी आयु वाली बच्चियों में भी एसएलई की बीमारी पाई जाती है. इस बीमारी की चेहरे पर तितली के आकार वाले लाल चट्टे आने से शुरुआत होती है और यही इस बीमारी का सबसे प्रमुख लक्षण है.
स्वास्थ विशेषज्ञों के मुताबिक एसएलई नामक वातरोग को लेकर आज भी समाज में अपेक्षित जनजागृति नहीं हुई है. इस विकार के लक्षण बेहद सामान्य रहने के चलते कई बार इसकी अनदेखी की जाती है. एक लाख लोगों में से महज तीन से चार लोग इस बीमारी का शिकार पाए जाते है. इस बीमारी में शरीर के अन्य अवयवों पर एक ही समय प्रतिकार शक्ति का हमला होता है. साथ ही ल्युपस विकार के चलते महिलाओं में गर्भधारणा होने को लेकर दिक्कत पैदा होती है.
ल्युपस विकार के कोई भी दो मामले बिलकुल एकसमान नहीं होते. इस बीमारी के निशान व लक्षण अचानक आ सकते है, या फिर धीरे-धीरे विकसित हो सकते है. कुछ लोग ल्युपस विकसित होने की प्रवृत्ति के साथ ही पैदा होते है. जो संसर्ग, किसी दवाई या फिर सूर्यप्रकाश की वजह से भी हो सकता है. ल्युपस पर यद्यपि अब तक कोई कारगर इलाज उपलब्ध नहीं है. परंतु इलाज के चलते बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित रखने में सहायता मिलती है.
* प्रतिकार शक्ति के घटने से बढती है बीमारी
शरीर में रोगप्रतिकार शक्ति के कम होने पर एसएलई की बीमारी का खतरा काफी अधिक बढ जाता है. जिसके चलते शरीर में रोगप्रतिकार शक्ति का बेहतर रहना बेहद आवश्यक होता है.
* क्यों होता है एसएलई विकार
शरीर के भीतरी व बाहरी घटकों के संयोजन की वजह से ल्युपस का विकार विकसित होता है. जिसमें हार्मोन्स, अनुवांशिकता व पर्यावरण का समावेश रहता है.
* सफेद पेशियों से बढती है प्रतिकार शक्ति
खून में रहनेवाली सफेद पेशियां रोगप्रतिकारक शक्ति बढाने का काम करती है. जिसके चलते सफेद पेशियों को शरीर की सेना भी कहा जाता है और सफेद पेशियां शरीर के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है.
* अपनी ही सेना का अपने पर वार
शरीर को किसी भी बीमारी से दूर करने में रोगप्रतिकारक शक्ति काफी फायदेमंद साबित होती है. परंतु एसएलई में रोगप्रतिकारक सफेद पेशियां ही शरीर पर विपरित परिणाम करती है यानी एक तरह से अपनी ही सेना खुद अपने खिलाफ हमला करने का काम करती है.
* यूरिक एसीड बढकर प्लेटलेटस् घटते है
एसएलई में यूरिक एसीड बढ जाता है. जिसका सफेद पेशियों पर परिणाम होने के चलते प्लेटलेटस् घट जाते है और इसकी वजह से मरीज का स्वास्थ बिगडता है. साथ ही वात की तकलीफ महसूस होने लगती है. ऐसे में समय रहते सावधानी बरतते हुए आवश्यक उपाय किए जाने की जरुरत होती है.
* हाथ-पैर मुडकर आता है बुखार
एसएलई में कई लोगों के लक्षण अलग-अलग होते है. जिसके तहत किसी को बुखार आता है तो किसी को जोडों में दर्द, शरीर में सुजन व हाथ-पांव मुडकर टेढे हो जाने की तकलीफ दिखाई देती है. ऐसे लक्षण दिखाई देते ही तुरंत वैद्यकीय सलाह लेने की आवश्यकता होती है.
* ल्युपस यह एक वातरोग है. जिसके अनुवांशिकता व अल्ट्रावाईलेट किरणों की वजह से होने की संभावना होती है. शरीर की सफेद पेशियां अन्य अवयवों में पर परिणाम करती है. परंतु समय पर इलाज करवाने पर यह बीमारी ठीक भी हो सकती है.
– डॉ. दिनेश खरात
अस्थिरोग विशेषज्ञ