सन् 83 में डॉ. शेखावत व प्रा. मेघे के प्रयासो से स्थापित हुई थी अमरावती मनपा
नगर पालिका से महानगर पालिका के तौर पर हुआ था प्रमोशन

* सन् 92 में हुआ था पहला चुनाव, सन् 97 तक रही जबरदस्त उठापटक
अमरावती/दि.6 – इस समय अमरावती महानगर पालिका के चुनाव को लेकर अच्छी-खासी गहमागहमी दिखाई दे रही है और अमरावती मनपा के सातवें सदन में पहुंचने हेतु चुनाव लडने के इच्छुकों की गतिविधियां तेज हो गई है. ज्ञात रहे कि, सन 1992 में अमरावती मनपा का पहला आम चुनाव हुआ था. जबकि अमरावती मनपा की स्थापना सन 1983 में हुई थी और 1983 से 1992 तक मनपा में प्रशासक राज था. ऐसे में यह जानना बेहद दिलचस्प है कि, सन 1983 से पहले अमरावती शहर में कामकाज कैसे चला करता था और स्थानीय स्वायत्त निकाय को लेकर क्या स्थिति थी.
बता दें कि, वर्ष 1983 तक अमरावती और बडनेरा की नगर पालिकाएं अलग व स्वतंत्र हुआ करती थी तथा दोनों नगर पालिकाओं में नगराध्यक्षों द्वारा कामकाज संभाला जाता था. परंतु शहर के लगातार होते विस्तार को ध्यान में रखते हुए अमरावती के तत्कालीन विधायक डॉ. देवीसिंह शेखावत व बडनेरा के तत्कालीन विधायक प्रा. राम मेघे ने अमरावती व बडनेरा की नगर पालिकाओं का आपस में विलिनीकरण करते हुए अमरावती महानगर पालिका की स्थापना का प्रस्ताव सरकार के समक्ष पेश किया था. जिसे सरकारी ओर से मंजूरी मिलने पर 15 अगस्त 1983 को अमरावती महानगर पालिका की स्थापना हुई थी. जिसके पश्चात 9 वर्ष के प्रशासक राज के उपरांत सन् 1992 में पहली बार अमरावती मनपा के आम चुनाव हुए थे और अब तक अमरावती मनपा के 6 आम चुनाव हो चुके है. वहीं छठवें सदन का कार्यकाल मार्च 2022 में समाप्त हुआ था और उस समय कोविड संक्रमण का दौर जारी रहने के चलते सातवें सदन हेतु चुनाव नहीं कराए जा सके थे. साथ ही इसके बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रहने के चलते चुनाव प्रलंबित रह गए और अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आगामी सितंबर-अक्तूबर माह के दौरान मनपा के चुनाव होने की संभावना जताई जारहीहै .
* 9 साल चला था प्रशासक राज, दो सदस्यीय एडहॉक समिति हुई थी गठित
वर्ष 1983 में अमरावती व बडनेरा नगर पालिकाओं का विलिनीकरण करते हुए अस्तित्व में आई अमरावती महानगर पालिका में शुरुआती कामकाज को चलाने हेतु प्रशासक की नियुक्ति करने के साथ ही दो सदस्यीय एडहॉक समिति का गठन किया गया था. जिसमें अमरावती व बडनेरा के तत्कालीन विधायक रहनेवाले डॉ. देवीसिंह शेखावत एवं प्रा. राम मेघे को बतौर सदस्य शामिल किया गया था. इस समिति द्वारा प्रशासक के कामकाज पर नजर व नियंत्रण रखते हुए राज्य सरकार को अपने सुझाव भेजे जाते थे. उस समय उम्मीद थी कि, दो-तीन वर्ष के प्रशासक राज के पश्चात अमरावती मनपा का पहला आमचुनाव करा लिया जाएगा. परंतु प्रशासक राज पूरे 9 वर्षों तक चलता रहा और फिर फरवरी 1992 में अमरावती महानगर पालिका के पहले आमचुनाव कराए जा सके.
* डॉ. शेखावत को मिला था शहर का पहला महापौर बनने का सम्मान
फरवरी 1992 में हुए अमरावती महानगर पालिका के पहले चुनाव में 27 सीटे जीतते हुए कांग्रेस सबसे बडी पार्टी बनी थी. हालांकि 78 सदस्यीय सदन में कांग्रेस भी स्पष्ट बहुमत से काफी दूर थी. ऐसे में कांग्रेस ने निर्दलीय पार्षद के तौर पर चुनकर आए अपनी ही पार्टी के असंतुष्ट नगरसेवकों का समर्थन हासिल किया. जिसकी बदौलत शहर के पहले महापौर व उपमहापौर पद पर कांग्रेसी पार्षद निर्वाचित हुए. जिसके तहत कांग्रेस के उस समय के सबसे बडे नेता डॉ. देवीसिंह शेखावत को अमरावती शहर का प्रथम महापौर एवं विलास महल्ले को प्रथम उपमहापौर बनने का बहुमान हासिल हुआ.
* चौथे व पांचवे वर्ष में भाजपा ने किया था बडा उलटफेर
खास बात यह थी कि, सन 1992 में हुए मनपा के पहले आमचुनाव में जहां कांग्रेस ने 27 व निर्दलियों ने 28 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं भाजपा ने 15 व शिवसेना ने मात्र 6 सीटें जीती थी. जिसके चलते पहले तीन साल तो मनपा में कांग्रेस व निर्दलिय पार्षदों का ही जमकर बोलबाला रहा. वहीं चौथे व पांचवे वर्ष के दौरान भाजपा ने शिवसेना के पार्षदों को साथ लेने के साथ ही कुछ निर्दलिय पार्षदों को भी अपने पाले में कर लिया था. जिसके चलते चौथे वर्ष में भाजपा की विद्याताई देशपांडे और पांचवे वर्ष में भाजपा की ही किरणताई महल्ले ने महापौर पद का चुनाव जीता था.
* गुप्त मतदान पद्धति के जरिए होता था पदाधिकारियों का चुनाव
याद दिलाया जा सकता है कि, मनपा के पहले चुनाव पश्चात चुनकर आए पार्षदो में से महापौर, उपमहापौर सहित स्थायी समिति सदस्य व सभापति जैसे पदों के लिए गुप्त मतदान पद्धति के जरिए मतदान कराया जाता था. जिसके चलते इन पदों की रेस में रहनेवाले कद्दावर पार्षदों द्वारा अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी ‘ताकत’ और ‘पहुंच’ के अनुसार पार्षदों के वोट अपने पाले में किए जाते थे. जिसके चलते मनपा के पहले सदन में निर्दलिय पार्षदों की अच्छी-खासी ‘पौ बारह’ हुआ करती थी.
* सन 1996 में हुआ था चुंगी नाके का निजीकरण
खास बात यह भी है कि, सन 1990 के दशक में अमरावती मनपा की आय का सबसे प्रमुख स्त्रोत जकात नाका यानि चुंगी नाका हुआ करता था और उस समय जकात की वसूली खुद मनपा द्वारा अपनी आस्थापना पर रहनेवाले अधिकारियों व कर्मचारियों के जरिए की जाती थी. परंतु सन 1995-96 का दौर आते-आते निजीकरण की बयार बहना शुरु हो गई थी और अमरावती मनपा ने राज्य सरकार की अनुमति से चुंगी वसूली का काम भी ठेकेदारी के जरिए कराने का निर्णय लिया था. खास बात यह भी है कि, उस समय तक राज्य में सत्ता परिवर्तन होकर भाजपा-सेना युति की शिवशाही सरकार स्थापित हो चुकी थी तथा अमरावती के तत्कालिन विधायक जगदीश गुप्ता राज्यमंत्री व जिला पालकमंत्री बन चुके थे. जिनके नेतृत्व में ही अमरावती मनपा में अंतिम दो वर्ष के कार्यकाल दौरान भाजपा की विद्याताई देशपांडे व किरणताई महल्ले महापौर निर्वाचित हुई थी. साथ ही उस समय कांग्रेस व निर्दलिय पार्षदों के बूते शेरसिंह उर्फ पापे ठाकुर लगातार दो बार स्थायी समिति के सभापति निर्वाचित हुए थे. उसी दौरान मुंबई से वास्ता रखनेवाली आयडीयल रोड बिल्डर्स प्रा. लि. नामक कंपनी ने अमरावती मनपा क्षेत्र में चुंगी वसूली का ठेका हासिल किया था और तत्कालीन बीएमटी के संचालक अख्तर हुसैन को चुंगी वसूली के काम हेतु अपना स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त किया था.
* शहर कांग्रेस की कमान थी एड. देवराज बोथरा के पास
विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि, सन 1992 के समय कांग्रेस में भले ही मुख्य राजनीतिक चेहरे के तौर पर तत्कालिन पूर्व विधायक एवं कालांतर में शहर के प्रथम महापौर निर्वाचित हुए डॉ. देवीसिंह शेखावत का अच्छा-खासा दबदबा हुआ करता था. लेकिन शहर कांग्रेस की पूरी कमान शहर कांग्रेस कमिटी अध्यक्ष के तौर पर एड. देवराज बोथरा के पास हुआ करती थी तथा एड. देवराज बोथरा के मार्गदर्शन व नेतृत्व तले ही अमरावती मनपा के पहले चुनाव में कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं निर्दलिय निर्वाचित पार्षदों में भी अधिकांश पार्षद कांग्रेसी ही थे. जिन्होंने खुद को टिकट नहीं मिलने के चलते पार्टी के खिलाफ बगावत करते हुए चुनाव लडा और जीता था. जिसके बाद शहर कांग्रेस कमिटी अध्यक्ष एड. देवराज बोथरा ने ऐसे सभी असंतुष्ट कांग्रेस पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को दुबारा एकजुट किया था. जिसके चलते पहले ही वर्ष महापौर व उपमहापौर जैसे पद कांग्रेस के हिस्से में आए थे. साथ ही तीसरा महापौर भी कांग्रेस का था और चौथे व पांचवें वर्ष के दौरान उपमहापौर व स्थायी समिति सभापति जैसे पदों को अपने पास रखने में कांग्रेस ने सफलता हासिल की थी.