अमरावतीमहाराष्ट्र

चौबीस साल में 21 हजार किसानों ने मौत को लगाया गले

किसानों आत्महत्या में 19 साल पहले जैसा ही मानदंड

अमरावती/दि.19 पिछले दो दशकों में सभी योजनाओं के लिए सरकारी सहायता मानदंडों में सुधार किया जाने पर भी किसान आत्महत्याएं एक अपवाद बनी हुई हैं. 23 जनवरी 2006 के परिपत्र के अनुसार, किसान आत्महत्या के मामलों में अभी भी 30 हजार नकद और 70 हजार रुपए सावधि बैंक जमा का उपयोग किया जाता है. मदद अल्प रूप में मिल रही है. इसके अलावा, यह भी सच है कि जिस कर्ज के लिए किसान ने आत्महत्या की, वह कर्ज उसके वारिस पर कायम रहता है.
राज्य में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं पश्चिम विदर्भ में हो रही हैं. वर्ष 2001 से किसानों की आत्महत्याएं राज्य रजिस्ट्री में दर्ज की जा रही हैं. तदनुसार, विभागीय आयुक्त कार्यालय ने सरकार को रिपोर्ट दी है कि पश्चिम विदर्भ में 21,059 किसानों ने आत्महत्या की है. इसमें 10,839 मामले तकनीकी कारणों से सरकारी सहायता के लिए अपात्र घोषित किये गये हैं. मात्र 9570 मामलों में सरकारी सहायता दी गयी जबकि 256 मामले साल भर से जांच के लिए लंबित हैं. प्राकृतिक आपदा, सूखा, फसल नाउपज, बैंकों सहित साहूकारों का कर्ज, बीमारी, लडकियों की शादी सहित कई कारणों से किसानों की मौत हो रही है. महज आश्वासनों और घोषणाओं के अलावा किसानों के लिए कुछ खास नहीं किया जा सका है.

* 2001 से आत्महत्या
यवतमाल     6155
अमरावती    5395
बुलडाणा     4381
अकोला      3095
वाशिम       2033

* सरकारी सहायता में सुधार कब होगा?
23 जनवरी 2006 के नियमानुसार किसान आत्महत्या के मामले में वारिसों को 30 हजार रुपये चेक द्वारा तथा 70 हजार रुपये संबंधित तहसीलदार व वारिसों के संयुक्त नाम से छह वर्ष के लिए दिए जाने का प्रावधान है. इसमें असाधारण परिस्थितियों में रकम निकाली जा सकती है. लेकिन इस उद्देश्य के लिए दस्तावेज पूरे करते समय वारिसों को कठिनाइयों का सामना करना पडता है.

* 334 दिनों में 985 किसान आत्महत्या
इस साल जनवरी से नवंबर के बीच विभाग में 334 दिनों में 985 किसानों की मौत हो गई. यानी हर आठ घंटे में एक किसान आत्महत्या करता है. इनमें से 306 मामले पात्र हो चुके हैं लेकिन केवल 91 मामलों में ही सरकारी सहायता दी गई है. 287 मामले अपात्र हैं जबकि 392 मामले जांच के लिए लंबित हैं.

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