अमरावती

6 वर्ष में सरकार ने 51 फीसद किसान आत्महत्याओं को नकारा

* 4490 में से 2282 आत्महत्याएं साबित की गई सहायता के लिए अपात्र

  •  सहायता अनुदान के कडे मापदंड आये आडे, 117 मामले अब भी विचाराधीन
    अमरावती/दि.3– फसलों की बर्बादी, अतिवृष्टि, अकाल, उत्पादित माल को योग्य गारंटी मूल्य नहीं मिलने, साहूकारी का पाश तथा सरकार की उदासिनता जैसे विविध कारणों के चलते वर्ष 2016 से नवंबर 2021 इन 6 वर्षों के दौरान जिले में 4 हजार 490 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई. किंतु इसमें से सरकार द्वारा 2 हजार 91 मामलों को ही किसान आत्महत्या मानते हुए संबंधित परिवारों को 1-1 लाख रूपये की नुकसान भरपाई दी गई. वहीं 51 फीसद यानी 2 हजार 282 किसानों की मौतों को किसान आत्महत्या नहीं मानते हुए सरकारी सहायता के लिए अपात्र ठहराया गया. जिसके चलते उन किसानों के परिवारों को सरकार की ओर से कोई भी सहायता राशि नहीं मिली है. ऐसे में उन 2 हजार 282 किसानों के परिवार अपने कर्ता पुरूष की मौत के दु:ख को झेलने के साथ ही आर्थिक सहायता से भी वंचित रहने को मजबूर है.
    साथ ही अब इन किसान परिवारों के समक्ष सबसे बडी समस्या यह है कि, प्राकृतिक आपदा, फसलों की बर्बादी जैसे विपरित हालात और बढती महंगाई के साथ ही सिर पर मौजूद कर्ज के बोझ को लेकर वे कैसे अपनी जिंदगी जिये. घर का कर्ता पुरूष ही चले जाने के बाद अब बच्चों की पढाई-लिखाई, शादी-ब्याह और बीमारी व इलाज से संबंधित खर्चों को पूरा करते हुए दो वक्त की रोटी का जुगाड कैसे किया जाये. इन्हीं सभी समस्याओं से जूझते हुए संबंधित परिवारों के कर्ता पुरूष किसानोें द्वारा आत्महत्या की गई थी. किंतु सरकार ने उनकी मौतों को सहायता अनुदान के मापदंडों के आधार पर किसान आत्महत्या मानने से इन्कार कर दिया. ऐसे में उन किसानों के परिवारों के सामने मुश्किलें कम होने की बजाय अब और अधिक बढ गई है और परिवार के सदस्य अब आर्थिक संकट को लेकर दोहरी मार सहने को मजबूर है. जिसके चलते किसानों की नई पीढी में भी आत्मघाती प्रवृत्ति बढती जा रही है.

गत वर्ष लॉकडाउन में देर से मिली नुकसान भरपाई

कोविड संक्रमण के चलते 24 मार्च 2020 से राज्य में लॉकडाउन लागू किया गया था. वहीं वर्ष 2020 के दौरान जिले में 295 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई थी. इसमें से केवल 183 मामलों को सरकारी सहायता के लिए पात्र माना गया. वहीं शेष 112 मामलों को सहायता हेतु अपात्र ठहराया गया. इसके बाद लॉकडाउन की वजह से सरकारी कार्यालयों में अधिकारी व कर्मचारी कम रहने के चलते किसान आत्महत्याग्रस्त परिवारों को नुकसान भरपाई मिलने के लिए काफी इंतजार करना पडा. वहीं जारी वर्ष 2021 में विगत 11 माह के दौरान सरकारी आंकडों के मुताबिक 307 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई है. जिसमें से 141 मामलों को सरकारी सहायता हेतु पात्र माना गया है और 49 मामलों को किसान आत्महत्या मानने से इन्कार कर दिया गया. साथ ही 117 मामले अब भी विचाराधीन रखे गये है.

अपात्र रहनेवाले परिवारों को नहीें मिलेगी कोई भी नुकसान भरपाई

– अपात्र साबित किये गये मामलों की संख्या पात्र आत्महत्याओं की तुलना में अधिक.
– पिछले छह वर्ष में किसान आत्महत्याओं के आंकडे
कुल – 4,490
प्रलंबित – 117
पात्र – 2,091
अपात्र – 2,282

 फरवरी, अगस्त व सितंबर में आत्महत्याओं का प्रमाण अधिक

विगत 6 वर्ष के दौरान हुई किसान आत्महत्याओं के मामले को देखते हुए कहा जा सकता है कि, पूरे सालभर के दौरान फरवरी, अगस्त व सितंबर माह में किसान आत्महत्याओं के मामले काफी अधिक होते है. अब तक फरवरी में 449, अगस्त में 430 व सितंबर में 422 किसान आत्महत्याएं हुई है. जिसके पीछे मुख्य तौर पर फसल हाथ में आने के बाद उसे बाजार में योग्य भाव नहीं मिलना यह मुख्य वजह है. वहीं कई किसान सिर पर पहले ही कर्ज का बोझ रहने, खेतों में बुआई करने के लिए पास में पैसा नहीं रहने और अगस्त माह के दौरान होनेवाली अतिवृष्टि में फसल खराब होने के चलते भी आत्महत्या कर लेते है.

सन 2016 में सर्वाधिक 349 किसान आत्महत्याएं

विगत पांच साल के दौरान वर्ष 2016 में सर्वाधिक 349 किसान आत्महत्याएं हुई. जिसमें से 159 मामलों को सहायता हेतु पात्र मानते हुए संबंधित परिजनों को सरकार द्वारा एक-एक लाख रूपये की नुकसान भरपाई दी गई. वहीं 190 किसान आत्महत्याओं को अपात्र ठहराया गया है. वर्ष 2016 की तरह ही वर्ष 2018 में अपात्र ठहराये गये मामलों की संख्या पात्र मामलों की तुलना में अधिक थी. वर्ष 2018 में 335 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई थी. जिसमें से केवल 166 मामलों को सहायता हेतु पात्र माना गया. वहीं 159 किसान आत्महत्याओं को सहायता हेतु पात्र नहीं माना गया. ऐसे में संबंधित किसानों के परिवार अब भगवान भरोसे है.

कृषि उपज को गारंटी मूल्य नहीं मिलना मुख्य वजह

यूं तो सभी सरकारों द्वारा किसानों की भलाई के लिए विभिन्न तरह की योजनाएं चलाये जाने की घोषणा की जाती है. साथ ही उन योजनाओं का लाभ सीधे किसानों के दरवाजों तक पहुंचाने की बात भी कही जाती है. किंतु पाया जाता है कि, योजनाओं के क्रियान्वयन में काफी हद तक लापरवाही व उदासिनता बरती जाती है. जिससे किसानों को उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता. इसके अलावा मौसम की अनियमितता के चलते खेती-किसानी में काफी नुकसान होता है और बढती महंगाई की वजह से खेती-किसानी में लागत बढ जाती है. लेकिन इसके बावजूद फसल हाथ में आने के बाद उसे बाजार में अपेक्षित मूल्य नहीं मिलता और न्यूनतम समर्थन मूल्य का अभाव रहने के चलते किसानों द्वारा अपनी उपज को औने-पौने दाम में बेचना पडता है. ऐसे में प्रति वर्ष होनेवाली फसलों की बर्बादी और आर्थिक हानी के चलते किसान लगातार आर्थिक दुष्चक्र में फंसते जाते है. जिसकी वजह से साल-दर-साल किसान आत्महत्या के मामलों का सिलसिला चल रहा है. साथ ही तमाम तरह के पैकेज व सरकारी अनुदान की घोषणा के बावजूद किसान आत्महत्याओें का सत्र रूक नहीं रहा.

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