अमरावती

युवाओं के हाथ में है दहेज प्रथा को खत्म करना

कडे फैसले लेने की जरूरत

  • कानून पर कडाई से अमल भी जरूरी

अमरावती/प्रतिनिधि दि.२५ – हाल ही में केरल में स्थित एक विद्यापीठ द्वारा निर्णय लिया गया कि, यदि वहां से शिक्षा पूरी करनेवाले किसी भी छात्र-छात्रा द्वारा यदि दहेज लिया अथवा दिया जाता है, तो विद्यापीठ द्वारा उसकी पदवी को रद्द कर दिया जायेगा. हालांकि दहेज के विषय को लेकर अब तक काफी अधिक चर्चा हो चुकी है. बावजूद इसके यह समस्या जस की तस बरकरार है और इसी दहेज के चलते जहां एक ओर कई लडकियों के विवाह अटके पडे है, वहीं दहेज की मांग की वजह से विवाह के बाद भी कई लोगोें के दाम्पत्य जीवन में जहर घुला हुआ है और उनका वैवाहिक जीवन टूटने की कगार पर है.
ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, आखिर दहेज कौन लेना अथवा देना चाहता है, क्या विवाह योग्य लडके अपने लिए दहेज चाहते है, या फिर उनके माता-पिता की ओर से दहेज की मांग की जाती है. वहीं सवाल यह भी है कि, क्या विवाह योग्य लडकियां खुद यह चाहती है कि, उनके विवाह में दहेज दिया जाये, ताकि उनके भावी जीवन हेतु सुविधाएं हो या फिर लडकियों के मां-बाप अपनी बेटी के सुख व सुविधा हेतु दहेज देना चाहते है. इस सवाल का जवाब खोजने पर पता चलता है कि, इन दिनों अधिकांश युवा दहेज प्रथा के खिलाफ है और वे दहेज लेना अथवा देना बिल्कुल भी नहीं चाहते. किंतु कई बार विवाह के वक्त पारिवारिक दबाव के सामने उन्हें भी झूकना पडता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, यदि दहेज प्रथा को खत्म करना है, तो खुद विवाहयोग्य युवक-युवतियों को ही इसके खिलाफ आगे आना होगा और आवाज उठानी होगी, तभी इस कु-रिती पर अंकुश लगाया जा सकेगा. उल्लेखनीय है कि, आज भी बडे पैमाने पर स्त्री धन के रूप में वधू पक्ष द्वारा बडे पैमाने पर दहेज दिया जाता है. साथ ही वर पक्ष द्वारा बाकायदा दहेज मांगा भी जाता है. कई मामले तो ऐसे भी होते है, जिनमें विवाह निपट जाने के बाद दहेज की मांग की जाती है और इस मांग को लेकर विवाहिता की प्रताडना भी की जाती है. जिसके बाद ऐसे मामलों को लेकर पुलिस में शिकायतें दर्ज होती है. ऐसी हजारों शिकायतें इस समय पुलिस के पास पहुंची हुई है. ऐसे में समाज एवं परिवार व्यवस्था को बनाये और बचाये रखते हेतु यह बेहद जरूरी है कि, दहेज जैसी कु-रीती को जल्द से जल्द खत्म किया जाये. साथ ही इसे लेकर जनजागरूकता करते हुए दहेज विरोधी कानून पर कडाई के साथ अमल भी किया जाये.

  • क्या है दहेज विरोधी कानून

दहेज प्रतिबंधक अधिनियम 1961 की धारा 3 के तहत दहेज देने अथवा लेने पर कम से कम पांच वर्ष के कारावास व न्यूनतम 15 हजार रूपये अथवा दहेज की रकम के बराबर रकम के जुर्माने की सजा का प्रावधान है. किंतु अमूमन पाया जाता है कि, विवाह संबंध जोडे जाते समय और दहेज की राशि तय करते समय तो दोनों में से कोई भी पक्ष शिकायत दर्ज नहीं कराता. किंतु आगे चलकर जब इसी दहेज को लेकर मामला बिगडता है अथवा झगडे व विवाद की नौबत आती है, तब ऐसे मामले पुलिस के पास पहुंचते है और उस वक्त पुलिस को बताया जाता है कि, संबंधित विवाह में दहेज लिया अथवा दिया गया था और दहेज की वजह से ही अब वह विवाह टूटने की कगार पर है.

  • शहर आयुक्तालय में दहेज प्रताडना के मामले

वर्ष 2018 – 183
वर्ष 2019 – 110
वर्ष 2020 – 72
वर्ष 2021 (अगस्त तक) – 56

  • क्या कहते हैं युवक

इस संदर्भ में कुछ विवाहयोग्य युवकों से बातचीत करने पर उन्होंने दहेज प्रथा के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किये. इन युवकों का कहना रहा कि, अगर हमारे मां-बाप ने अपना पैसा खर्च करते हुए हमें पढा-लिखाकर बडा किया है, तो लडकियों के मां-बाप भी यहीं करते है. ऐसे में पढाने-लिखाने और लायकदार बनाने के नाम पर लडकीवालों से दहेज लेना पूरी तरह से गलत है. लडकी के माता-पिता विवाह समारोह में जो खर्च करते है, वहीं अपने आप में काफी पर्याप्त है. अत: अलग से किसी दहेज की मांग ही नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि लडकी के माता-पिता तो अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा रहनेवाली अपनी बच्ची ही वर पक्ष को बहू के रूप में प्रदान करते है.

  • क्या कहती हैं युवतियां

इस संदर्भ में कई युवतियों के साथ बातचीत करने पर उन्होंने दहेज प्रथा पर अफसोस जताते हुए कहा कि, दहेज की मांग के चलते कई लडकियों के रिश्ते नहीं जुडते और ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी अधिक बिकट है. जहां पर पाई-पाई जोडने के बावजूद दहेज हेतु रकम का जुगाड नहीं कर पाने के चलते कई किसानों ने निराश होकर आत्महत्या कर ली. इसके अलावा कई बार तो विवाह होने के बाद दहेज की मांग को लेकर अच्छे-खासे पढे-लिखे घरों में भी विवाहिताओं को शारीरिक व मानसिक प्रताडना का शिकार होना पडता है. जिसके बाद कई मामले पुलिस थाने की चौखट तक पहुंचते है. ऐसे मामलों में भले ही अपराध दर्ज होता हो और कार्रवाई भी होती है. किंतु इस चक्कर में एक लडकी भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट जाती है और उसका संसार बिखर जाता है. इस पर कोई विचार नहीं करता.

  • क्या सोचते है लडकों के माता-पिता

इस बारे में कई लडकों के अभिभावकों का कहना रहा कि, अमूमन वधू पक्ष द्वारा अपनी बेटी के लिए पढे-लिखे, खाते-पीते और आर्थिक रूप से सक्षम लडके की खोज की जाती है. वहीं नौकरीपेशा लडकों द्वारा भी अपने लिए नौकरीपेशा लडके ही पसंद किये जाते है. ऐसे में समान सामाजिक हैसियतवालों के बीच ही वैवाहिक रिश्ते होते है और वधू पक्ष द्वारा दिया जानेवाला स्त्री धन अंतत: उनकी ही बेटी के पास रहता है. अत: यदि वधू पक्ष अपनी इच्छा से अपनी बेटी को कुछ देता है, तो इसमें गलत कुछ भी नहीं. वहीं कुछ अभिभावकोें के मुताबिक अब लडकों के माता-पिता द्वारा भी दहेज का विरोध किया जाना चाहिए. वैसे भी आज-कल के युवा दहेज जैसी झंझट में नहीं फंसते है. साथ ही स्त्री धन की आड में दहेज के तौर पर मुंह मांगी रकम भी नहीं मांगी जानी चाहिए.

  • क्या सोचते है लडकियों के माता-पिता

हर माता-पिता की यह चाहत होती है कि, उनके बच्चे सुखी और खुश रहे. ऐसे में हर कोई अपनी बेटी के विवाह में किसी भी तरह की कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहता तथा अपनी बेटी को ढेर सारे उपहारों के साथ विदा करना चाहता है. किंतु कई बार वर पक्ष द्वारा स्त्री धन के नाम पर अनाप-शनाप रकम मांगी जाती है और अनेकों बार तो वाहन व फ्लैट तक की मांग की जाती है. यह पूरी तरह से एक गलत प्रथा है. जिसे रोकना खुद युवाओं के हाथ में है. साथ ही कुछ अभिभावकों का कहना रहा कि, हमारे देश की करीब 70 फीसद आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रोें में रहनेवाला किसान पहले ही आर्थिक दुष्चक्र में फंसा हुआ है. ऐसे में अपनी बेटी के हाथ पीले करने हेतु वर पक्ष द्वारा की जानेवाली मांग को पूरा करने के चक्कर में वह और अधिक कर्जबाजारी हो जाता है तथा कर्ज के लगातार बढते पहाड से तंग आकर कई लोग आत्महत्या भी कर लेते है.

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