अमरावती

जिंदगी को खतरे में ना डाले, संयम रखने का संकल्प ले…

कोरोना संक्रमण में पीड़ितों की बढ़ती तादाद

परतवाडा/दि. १९ – कोविड-19(Covid – 19) के शुरुआती समय मे डर और सुरक्षा को लेकर जो सजगता देखी गई, वह अब संक्रमण के तेजी से बढ़ते दौर में कम क्यो होती जा रही है?? जब सही तरीके  से मास्क लगाने , भीड़ में सावधानी और समुचित शारीरिक दूरी को लेकर अधिक सावधानी की जरूरत है, तो हम कही अधिक लापरवाह तो नही हो गए है? विशेषज्ञ इसे मनोवैज्ञानिक समस्या बताते है. खतरे को मनाने, स्वीकार करने से इंकार कर देनाऔर इसके पक्ष में जबरन तर्क गढ़ देना अचलपुर-परतवाड़ा सहित संपूर्ण जिले में समस्या को बढ़ा ही रहा है. स्थानीय एसडीओ , तहसीलदार और थानेदार व उनकी पूरी टीम लोगो को समुचित उपाय के साथ संयम बरतने का आव्हान कर रही है.
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लोग पालन करे या प्रशासन सख्ती करे

अनलॉक-4 के बाद लोगो ने  अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन करना शुरू कर दिया है.यह ठीक नही कहा जा सकता. स्थानीय गुरुनानक नगर निवासी विनीता धर्मा स्वयं कोरोना का उपचार करा कर लौटी है.स्थानीय कुछ सामाजिक संघटानाओ से जुड़ी होने के कारण वो कोरोना काल मे लापरवाह हो रहे नागरिको के रवैये से हैरान है.विनीता का मानना है कि हमे अभी काफी लंबी लड़ाई लड़नी हैऔर यदि हम बाजार में इसी तरह बेफिक्री से घूमने लगे तो फिर प्रशासन को पुनः जनता कर्फ्यू लगाने की सख्ती करनी होंगी.
क्या सचमुच कोरोना वायरस का उतना खतरा है, जितना खबरों में बताया जा रहा है. दफ्तर से लौटते हुए सब्जी खरीदने को रुकी मीन ने सब्जी वाले से जब यह सुना तो एकबारगी चौक गई. कोरोना महामारी से देश-दुनिया मे इतनी तबाही होने के बाद भी इसे लेकर लोगो के बीच इस तरह का असमंजस और आशंका उन्हें परेशान कर रही थी.घर मे कदम रखते ही उन्होंने सबसे यह बात सांझा की. अगले दिन कार्यालय में सहयोगियो को भी बताई. पता चला कि ज्यादातर लोगों का अनुभव यही है.लगभग सबने यही कहा कि कोविड-19 की सच्चाई स्वीकारने में ,वास्तव में  अब भी लोगो को दिक्कत हो रही है.
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डर के बीच जिंदगी से प्यार

‘अनलॉक ‘ हुई जिंदगी में मास्क पहनने से लेकर भीड़ में जाने के लिए जरूरी नियमो का ध्यान नही रखा जा रहा है, तो इसकी वजह भी कही न कही इसी से जुड़ी है. हो सकता है कि ये बाते कुछ समय के लिए तसल्ली देती हो, पर जो इससे प्रभावित होकर बाहर आ चुके है, जरा उनसे पूछिये. जिनका कोई अपना शिकार हो चुका, जरा उनकी पीड़ा को समझने की कोशिश कीजिये.

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नागरिको का सतर्क होना जरूरी

 परतवाड़ा के थानेदार मानकर कहते है कि हमेशा पुलिस सख्ती ही करे यह भी ठीक नही होंगा, अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना हर नागरिक का प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए.पुलिस सोशल मीडिया व अन्य माध्यमो से लोगो को आगह कर रही है. जनसहयोग के बिना कोई जंग नही जीती जा सकती है.
 आज जब देश मे कोरोना से रोजाना हजारों मौतें हो रही है, सब कुछ खुल जाने के बावजूद जनजीवन बेहाल है.जिंदगी हर पल खतरे की आशंका से जूझ रही है, तो क्या हम सभी को इस डर के बीच ही खुद को सुरक्षित रखना जरूरी नही है.
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संक्रमण से बचना निहायत जरूरी

इस बारे में अभिषेक कहते है कि यदि आप बाहर निकलते हैऔर संक्रमण का डर है तो यह डर अच्छा है.यह बताता है कि आपको अपनी जिंदगी और अपनो से प्यार है.यही डर खुद को और अपनों की जिंदगी को सुरक्षित रखने के लिए प्रेरित भी करता है.
 जुड़वाशहर अचलपुर-परतवाड़ा में लापरवाही का ग्राफ दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में लोगो की सोच भारी पड़ सकती है.बाहर निकलने के बाद बरती जाती असावधानी इंसान की मौलिक प्रवृति से जुड़ी हो सकती है.इंसान एक ऐसा सामाजिक प्राणी है, जो अधिक समय तक नियमो में बंधे रहनाऔर अलग-थलग रहना पसंद नही कर पाता. लोग जो काम फ़ोन पर हो सकता , वीडियो कॉल पर किया जा सकता , उस हेतु भी प्रत्यक्ष मिलने को प्राथमिकता दे रहे है.इसके लिए डॉक्टर्स, अधिकारी व अन्य मान्यवर समझाते भी है, पर कम ही लोग इसे मानते है. हालांकि सभी लोग ऐसे नही है.कुछ लोग जहां समय की इस मांग यानी शारीरिक दूरी का पालन, सही तरीके से मास्क लगाने आदि को नही भूलते, वही दूसरी ओर इसके उलट विचारों वाले भी है.चुनोती ऐसे ही लोगो को संभालने की है. अचलपुर प्रशासन से जुड़े अधिकारी कहते है, ‘ दरअसल, नियमो की धज्जियां उड़ाने वाले लोगो मे किसी तरह का फोबिया या डर नही पाया जाता. उन्हें समस्या को हलके में लेने की आदत होती है. ऐसे लोग खुद को तमाम तरह के तर्क देकर अपने अहं को संतुष्ट करते रहते है. लॉकडाउन में ढील, अनलॉक होने के बाद कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या में बढ़ोतरी आदि को देखकर ये अपनी बात की पुष्टि करते रहते है’. नकारात्मक मनोवश से बचने के लिए इस तरह सोचना मददगार हो सकता, पर यह अधिक बढ़ जाये तो यही सोच घातक हो सकती है.

मंजिल अभी दूर है

इस महामारी की शुरुआत में लोग अचानक सहम गए थे.बचाव के लिए हमारे पास सूचनाएं थी, पर सब कुछ अंधेरे में तीर चलाने जैसा था.अब समय के साथ जानकारियां बढ़ी, वैज्ञानिकों- चिकित्सको की मदत से हम पहले से कही बेहतर आश्वस्त हो सके है यानी जिंदगी के साथ-साथ चलते हुए हमने जाना की अब मास्क और दो गज की दूरी ही कोरोना वायरस से लड़ाई में सबसे सशक्त हथियार है.
 डॉक्टरों का कहना है कि अब आपदा ने भयानक रूप ले लिया है. यदि इसे नकारेंगे तो मुसीबत हमे ही झेलनी होंगी. आपने इतने दिन धीरज रखा है तो बेहतरी के लिए और भी संयम रखने का संकल्प तो लेना ही होंगा. जिंदगी को यूं खतरे में न डाले.ऐसा करने पर क्या पता कि परेशानियां पहले से अधिक बढ़ जाये और हमे और अधिक दिक्कतें उठानी पड़े.
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आपदा के बाद भी जिंदगी है

हर आपदा के बाद जिंदगी दोबारा उठ खड़ी होती है.इस बार भी वही होंगा, पर अधीरता से बात नही बनेगी.समय पर ही सब होता है. यह परिपक्वता हमे पैदा करनी ही होंगी. मंजिल कभी आसानी से नही मिलती. सच्चाई जानने के बाद भी, सब ठीक है, कहकर खुद को आश्वस्त करने की मनोदशा आपको बेशक डर या चिंताओं से दूर ले जाये, लेकिन इससे खतरा टल तो नही जायेगा.
ज्यादातर लोगों की बेसब्री का आलम यह है कि वे यह भूल गए है कि इस समय हमे पहली अपनी सुरक्षा के लिए सावधान होना है.पर ऐसा लगता है कि अनलॉक के कारण लोग इस भरम में है कि अब यह जरूरी नही.सड़क पर पहले जैसी भीड़, वही धक्का-मुक्की नजर आती है.डॉक्टर कहते है कि यदि लोगो मे अधिक संक्रमण फैल रहा है तो इसमें इसी प्रकार की लापरवाही की बड़ी भूमिका होती है.क्या आप खुद की सोच के कारण अपने साथ-साथ औरों को भी खतरे में डालना चाहेंगे?? इस अनमोल जिंदगी की रक्षा आपके हाथ मे ही है.
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‘अनलॉक ‘ से भृमित न हो , सुरक्षा का ध्यान रखे

महामारी से कैसे बचना है, इस बारे मे पिछले कुछ महीनों में लोगो ने खुद को प्रशिक्षित करने में समझदारी दिखाई है. पर ज्यादातर लोग यदि शारीरिक दूरी की परवाह नहीं करते है, मास्क का मख़ौल उड़ाते है, तो इसका अर्थ है कि ये ‘ सामाजिक नागरिकता ‘ का मतलब नही जानते यानी अपनी गलत व भ्रामक सूचनाओ व सोच की खातिर  अपने साथ-साथ दुसरो का जीवन भी खतरे में डाल देते है.हालांकि इसके लिए जुर्माने आदि को कड़ाई से लागू करना ही काफी नही, बल्कि बड़े स्तर पर जागरूकता लाने की जरूरत है. आर्थिक प्रक्रिया को सचारु करने के लिए ‘ अनलॉक ‘ जरूरी है, लेकिन ऐसा नही है कि महामारी के प्रभाव को कम मानकर आप बेफिक्र हो जाये.
मुसीबत में डाल सकती है इस तरह की सोच….
●  बड़े – बुढो का संकट है, हमे संक्रमण होंगा तो भी खतरा ज्यादा नही.
● मास्क है पास में तो डरना कैसा.
●  हम अच्छी इम्युनिटी वाले है, संक्रमण से बच जाएंगे.
●  डेंगू, चिकन गुनिया आदि से भी तो ठीक हो जाते है लोग, कोरोना से भी हो जाएंगे.
● हमे अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत नही होंगी, घर पर ही कुछ दिन रहेंगे तो ठीक हो जाएंगे.
● कुछ हुआ तो हमारे पास उपलब्ध चिकित्सकीय सुविधाएं संभाल लेंगी.

स्वस्थ्य जिंदगी के लिए सावधानी

कोरोना वायरल फेफड़े को बुरी तरह प्रभावित करता है.क्या आप जिंदगी भर के लिए ऐसी कोई मुसीबत मोल लेना चाहेंगे, जो हमेशा के लिए आपके फेफड़े और सोचने -समझने की प्रक्रिया को कमजोर कर दे.जब दिमाग को ऑक्सीजन की सही आपूर्ति ही नही होंगी तो जाहिर है आपकी विचार प्रक्रिया प्रभावित होंगी. आपका निर्णय प्रभावित होंगा यानी एक स्वस्थ्य जिंदगी के बजाय हमेशा बीमार बने रहने का खतरा.क्या आप ऐसी भयंकर स्थिति के लिए तैयार है?? इसलिए शारीरिक दूरी , मास्क लगाए और नियमित व्यायाम करें.
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जीवन अनमोल है, इसे बचाये

यदि हमारे आसपास सब कुछ अच्छा नही , तो मन पर असर पड़ता ही है. पर जीवन अनमोल है. इसे बचाने के लिए हमे थोड़ी परेशानी भी झेलनी पड़े तो इससे परहेज नहीं करना चाहिए.मास्क लगाने और दूरी बरतने से जब हम सुरक्षित रह सकते है तो यह इतना कठिन भी नही. सच्चाई को स्वीकार करे.लंबे समय से एक जैसी बंधी दिनचर्या के कारण थकना स्वाभाविक है. पर एंग्जायटीज्यादा न हो, बस इसका ध्यान रखना है.

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