शिक्षक बैंक के अपात्र संचालकों को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत
प्राधिकृत विभाग से ही न्याय मांगने का दिया निर्देश
अमरावती /दि.30– स्थानीय दी. अमरावती जिला परिषद शिक्षक सहकारी बैंक के 5 अपात्र संचालकों को प्राधिकृत विभाग के पास जाकर ही न्याया मांगने का निर्देश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन संचालकों को दिया गया है. गत रोज सुप्रीम कोर्ट में शिक्षक बैंक द्वारा अपात्र ठहराए गये शिक्षकों की याचिका पर सुनवाई हुई.
बता दें कि, बैंक की प्रगती को प्रभावित करने हेतु बैंक के कामकाज में बार-बार बाधा डाली जाती है, ऐसा आरोप लगाते हुए बैंक के सत्ताधारी दल ने 5 विपक्षी संचालकों को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए अपात्र साबित कर दिया था. जिनमें प्रभाकर झोड संजय नागे, मंगेश खेरडे, मनोज चोरपगार व गौरव काले का समावेश है. 21 सदस्यीय संचालक मंडल में वे 2 जुलाई 2022 को हुए आम चुनाव में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुए थे. लेकिन चुनावी नतीजे के बाद इन पांचों लोगों का गुट अलग रहा. जिसके चलते उन्हें विपक्ष में बैठना पडा और अन्य 16 संचालकों ने बैंक में अपनी सत्ता स्थापित की. तब से ही बैंक में सत्ताधारी दल और विपक्षीय संचालकों के बीच टकराव वाली स्थिति बन रही थी तथा सत्ताधारी दल के संचालकों ने सहकार विभाग में शिकायत दर्ज कराई थी कि, इन पांचों संचालकों द्वारा बिना वजह बैंक की प्रगती को बाधित करने का प्रयास किया जाता है. इसी दौरान कानूनी प्रावधानों का प्रयोग करते हुए संबंधितों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की सुविधा सत्ताधारी संचालकों को दी गई. जिसके बाद जिला उपनिबंधक (डीडीआर) कार्यालय ने अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हेतु विशेष बैठक बुलाई. जिसमें बहुमत के आधार पर प्रस्ताव पारित कर इन पांचों संचालकों को अपात्र ठहराया गया. इस फैसले के खिलाफ संबंधित संचालकों ने सहकार अधिनियम की धारा 154 के तहत पहले ही सहकार मंत्री के दालान में गुहार लगाई है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि, पहले इस मामले में सहकार मंत्रालय का फैसला आने दिया जाए. जिसके बाद अदालत के पास आया जाये. जिसके चलते यह मामला सुप्रीम कोर्ट से लौटकर एक बार फिर राज्यस्तर पर वापिस आ गया है. वहीं अपात्र संचालकों का कहना है कि, इस समय उनके लिए हाईकोर्ट के दरवाजे भी खुले हुए है. ऐसे में संभवत: यह मामला मंत्रालय व हाईकोर्ट के सामने एक साथ पहुंच सकता है.
* राज्य का पहला मामला
संचालकों द्वारा ही संचालकों के खिलाफ अविश्वास लाये जाने का यह राज्य में अपनी तरह का पहला मामला है. अमूमन जिनके द्वारा चुनकर दिया जाता है, उन्हें ही विश्वास व अविश्वास दर्शाने का अधिकार होता है. परंतु इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. जिसके चलते इसकी ओर सभी का ध्यान लगा हुआ है.