महंगाई डायन ने लगाया बच्चों के उल्लास पर अंकुश, रशिया-यूक्रेन के युद्ध का प्रभाव
शालेय सामग्री में 30 प्रतिशत तक वृद्धि
अमरावती/दि.30– गत 2 वर्ष के कोरोना काल में स्टेशनरी आइटम्स के रेट करीब 20 से 30 प्रतिशत बढे है. स्कूल-कॉलेजों में ग्रीष्मकालीन छूट्टियों के बाद अब अगले माह में पुन: सभी स्कूल सेशन शुरु होंगे. सेशन स्टार्ट से पूर्व, नई स्टेशनरी खरीदने का बच्चों में काफी उत्साह होता है. इस उल्लास के चलते बच्चों के लिए अभिभावकों को पेन, पेंसिल, बैग, बोतल, कंपास बॉक्स आदि सभी की खरीदी हर वर्ष ही करनी पडती है, लेकिन इस वर्ष बच्चों की खुशियों पर महंगाई डायन नजरें गडाए बैठी हैं. कई दूकानदारों के अनुसार, स्टेशनरी रेट के ग्रोथ में रशिया-यूक्रेन युद्ध का असर छाया है. क्योंकि पेन, बैग आदि मटेरियल पेट्रोकेमिकल से बनता है. जिसे क्रूड ऑयल को प्रोसेस कर बनाया जाता है. विश्व बाजार में क्रुड ऑयल की दरवृद्धि से शहर में आ रहे माल की सप्लाई चेन और रेट पर असर पडा है. बढे दामों को देख कर ऐसा लगता है कि, आम आदमी के बच्चों को अब शालेय सामग्री की पुरानी चीजों से ही संतुष्टि कर लेनी होगी.
* डिमांड कम, सप्लाई डिस्टर्ब
ओवरआल देखे तो हर आयटम में ही रेट बढे है. नोट बुक्स की एमआरपी पर तो 5 से 15 रुपए तक रेट बढे है. कलर पेन्सिल बॉक्स भी 10 रुपए से बढे है. विगत दो साल से डिमांड-सप्लाई चेन काफी डिस्टर्ब थी. शायद उत्पादन में कमी के कारण भी यह असर पडा है. वैसे भी बाजार में लकडी के पेट्रोकेमिकल, प्लास्टिक के रेट भी काफी बढे हैं. जिसका परिणाम बच्चों के लिए विशिष्ट रुप से बनाए फैन्सी प्रोडक्ट पर रहा है. इसलिए ऐसा लगता है, बच्चों को अब इन आयटम से परहेज करना पडेगा और अतिआवश्यक चीजें खरीदकर ही स्कूल सेशन खत्म करना होगा, सरकारी पाठ्य पुस्तकों के दाम अभी तक वैसे ही हैं.
– हेमंत गुल्हाणे, नवनीत बुक स्टोर
* पुरानी शालेय सामग्रियों से मान रहे संतुष्टि
स्कूल बैग, वॉटर बैग, रेन कोट सभी के रेट 20 से 30 प्रतिशत बढे है. यह सभी चीजें अधिकतर पेट्रोकेमिकल से ही बनती है. उपर से ही सप्लाई में दिक्कत होगी तो ग्राउंड तथा शहर लेवल पर असर साफ दिखेगा ही. अब वीआईपी कंपनील के बैग को ही ले लो. पहले 2300 रुपए का था अब 3300 रुपए का हो गया है. कुछ रेग्यूलर कस्टमर्स अब भी धीरे-धीरे आ ही रहे है. करीब 25 प्रतिशत कस्टमर्स के रिवीव से तो ऐसा लगता है कि, इस बार वे पूरानी सामग्रियों से काम चलाने की नीति ही अपनाना पसंद करेंगे. फिलहाल बैग्स पर 18 प्रतिशत का जीएसटी है. जिसमें कोई चेंज नहीं.
– राम खत्री, अंबिका स्टोर्स
* जरुरत के हिसाब से करेंगे खरीदी
विगत 2 वर्ष स्कूल बंद ही रहे तो स्टेशनरी पर ज्यादा खर्च भी नहीं हुआ और ना ही इतनी दरवृद्धि का अहसास हुआ, लेकिन अब जब स्कूल अपनी पुरी क्षमता से स्टार्ट होने जा रहे है, तो स्टेशनरी की इस महंगाई से रुबरु होना ही पडेगा. जो अति अनिवार्य है. उससे समझौता कैसे करें. अब आम आदमी को तो पेट का पहले सोचना पडता है. इसलिए 2000 की बैग नहीं 500 की खरीदेंगे. 12 नोट बुक नहीं 6 ही खरीदेंगे. जैसी जरुरत होगी, वैसा ऐडजस्ट हो लेंगे.
– निलेश चौकडे, अभिभावक