अमरावती

रोचक इतिहास है वीर प्रताप नवदुर्गा उत्सव का

अमरावती- दि. 21  न केवल शहर बल्कि पूरे विदर्भ में विख्यात श्री वीर प्रताप नवदुर्गा उत्सव मंडल द्बारा 26 सितंबर से शुरू होनेवाले दुर्गोत्सव की तैयारियां धूमधाम से की जा रही है. श्री वीर प्रताप नवदुर्गा उत्सव मंडल इस बार अपने 53 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. यह मंडल अपनी शानदार रोशनाई व भक्तिपूर्ण देवीपूजा के लिए पूरे विदर्भ में जाना जाता है. मंडल की स्थापना व नवदुर्गोत्सव के प्रारंभ का इतिहास काफी रोचक है.
बताया जाता है कि 1970 में एक महिला जवाहरलाल प्यारेलाल जैन की बर्तनों के दुकान पर स्क्रेप में अंबाजी की पीतल की मूर्ति दे गई और कहा कि हो सके तो इसकी पूजा करना.
कहा जाता है कि वह औरत तुरंत ही आंखों से ओझल हो गई. सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि, जैन बंधु कुछ देर के लिए अवाक रह गये. फिर उन्होंने अपने साथी व्यवसायियों से इस बारे में चर्चा की.
जवाहरलाल चोपडा, प्यारेलाल चोपडा, हीरालाल कडेल, गोपाल उपाध्याय, भंवरीलाल खिंवसरा, माणिकलाल हेडा आदि ने पीतल की मुर्ती को लेकर उसी साल से दुर्गोत्सव मनाने की ठानी. चूंकि वाकया अश्विन मास से थोडे दिनों पहले का था. इसलिए उसी वर्ष आश्विन नवरात्र में नवदुर्गोत्सव मनाने का मानस मूर्त रूप लिया ओर वीर प्रताप नवदुर्गा उत्सव मंडल की शुरूआत हो गई.
फिर मंडल ने पीछे मुडकर नहीं देखा. लोग जुडते गये कारवा बनता गया. इसकी सफलता के पीछे शास्त्रोक्त पध्दति से देवी दुर्गा की पूजा आराधना का भी योगदान रहा. मंडल मां दुर्गा की ओजस्वी प्रतिमा का श्रध्दावान होकर पूजा करता है और उसका विसर्जन भी पूरे विधि- विधान से बहती सरिता में करता है. इसलिए इसके नियमित श्रध्दालुओं की भी अच्छी खासी संख्या ह ै. कई श्रध्दालू ऐसे है जो कामकाज के सिलसिले में अन्यत्र जाकर बस गये हे, वे भी नवरात्र उत्सव के दौरान देवी की आराधना हेतु मंडल में अवश्य पधारते है. मंडल ने फिर प्रतिवर्ष उत्सव में न केवल बढोतरी की, बल्कि नये आयाम भी जोडे. वीर प्रताप मंडल ने ही बंगाल के कारीगरों को विदर्भ में बुलाकर विशिष्ट दुर्गा प्रतिमा की स्थापना करवाई. यह दस्तुर 38 वर्षो से निरंतर जारी है. विदर्भ की धरा पर बंगाल के मूूर्तिकार गुरूपद भास्कर को लाने का श्रेय इस मंडल को ही है.
इसके अलावा नई पीढी को पौराणिक गाथाओं से परिचित कराने के उद्ेदश्य से स्वचलित झांकियों का सिलसिला भी मंडल ने आरंभ किया. जो सभी को बेहद भाया. पौराणिक किवंदितीयों पर आधारित कृष्णलीला, गणेश विहार, कालिया मर्दन, गंगासागर, दशावतार, लवकुश, सीता स्वयंवर, ब्रम्हांड, स्वर्ग लोक, नागलोक, भक्त धु्रव, माताजी के नौ रूप, भागीरथ द्बारा गंगा अवतरण जैसी मोहक झांकियों से मंडल पूरे विदर्भ में जाना जाने लगा है. फिर उत्सव को नया आयाम देते हुए देवी के जगराते की भी शुरूआत की गई जो पिछले 7 वर्षो से जारी है.
इसमें स्थानीय कलाकार को वरीयता दी जाती है. मंडल ने संस्कार ओर आस्था चैनल के भजन गायक विनोद अग्रवाल, मुंबई की भजन संध्या का सफल आयोजन किया है. इसके अलावा अनेक समाजपयोगी आयोजन हो चुके है. शतचंडी महायज्ञ का सुंदर और सफल आयोजन मंडल का मिल का पत्थर है. इस वर्ष हम सभी अपने देश की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे है. उसी कडी में मंडल ने भी कुछ करने का प्रयास किया है. भव्य पंडाल, आकर्षक झिलमिलाती लाइट्स, फव्वारे और कुछ विशेष झांकियां करने हेतु मंडल के अध्यक्ष, उत्सव प्रमुख, कोषाध्यक्ष सहित अनेक पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस वर्ष भी महोत्सव को सफल बनाने में जुटे हुए है.

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