* गावंडे का संस्मरण, गुंबद ढहने के साक्षी
अमरावती/दि.27- 1990 की कारसेवा के पश्चात अनेक महीनों तक वातावरण तंग रहा. कारसेवा के लिए गए युवा भी फिर अपने-अपने कामों में लग गए. 1992 के अंतिम माह में जब कारसेवा की घोषणा हुई तो देश के अन्य भागों की तरह अमरावती के भी कारसेवक सक्रिय हुए. अयोध्या जाने उद्यत हुए. ऐसे ही उद्यत किंतु नवपरिणित चंद्रकांत गावंडे का वाकया सुनने लायक है. गावंडे को घर के लोगों ने अयोध्या जाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया. गावंडे अपने साथियों संग राम जन्मभूमि जाने उत्सुक थे. उन्होंने जुगत लगाई.
* डॉक्टर लांडे का साथ
गावंडे ने शल्य चिकित्सक डॉ. लांडे और उनकी पत्नी डॉ. कल्पना लांडे को अपनी अयोध्या जाने की उत्सुकता बतलाई. उन्हें कहा कि अयोध्या जाना ही है. उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी. प्लान के अनुसार पत्नी को अस्पताल में एडमिट करने की योजना बनाई गई. जिला स्त्री अस्पताल की वार्डन को 50 रुपए भी दिए. जब पत्नी अस्पताल में दाखिल हो गई और उसे ग्लूकोज चढाया गया तब गावंडे ने मां को बताया कि उन्हें भी अस्पताल में रहना होगा. वे यह कहकर घर से बैग में कुछ कपडे और आवश्यक सामान लेकर निकले. घरवालों को लगा कि वह अस्पताल गए हैं.
* अयोध्या कूच, केवल शॉल थी ओढने
अस्पताल का बोलकर चंद्रकांत गावंडे साथियों संग बडनेरा स्टेशन पहुंचे. उनके पास ठंड के उस भयंकर सीजन में भी केवल शॉल थी. जिससे वे किसी तरह अपना बचाव कर रहे थे. इधर घर पर उनके अयोध्या जाने का पता चलते ही उनकी मां ने बेटे की चिंता में गणपति को पानी में डूबो दिया था. जब तक चंद्रकांत सही सलामत नहीं लौटते, गणपति की प्रतिमा पानी में रखी गई थी. इन लोगों के साथ दिनकर चौधरी, प्रदीप गुगल, डॉ. आलसी और तत्कालीन विधायक जगदीश गुप्ता एवं अन्य सभी तपके के लोग थे. वे लोग 6 दिसंबर से 2-3 पहले ही अयोध्या पहुंच गए.
* ढांचे के समीप मिला टेंट
गावंडे, राजा खारकर, सुरेंद्र बुरंगे व साथियों को सौभाग्यवश ढांचे के नजदीक ही टेंट में जगह मिली. नेता लोगों के लिए 8 टेंट वहां लगाए गए थे. खारकर और उनके साथ ही अंदर शॉल लपेटकर राम और हनुमान जी के भजन गाते गुनगुनाते रहे. वहीं पास में मंच से भाजपा और विहिंप के बडे नेताओं के भाषण भी इन लोगों ने सुने. उनमें उमा भारती, साध्वी ऋतंबरा, अशोक जी सिंघल, गिरिराज किशोर का समावेश रहा.
* 5 दिसंबर को बदला माहौल
अमरावती के कारसेवकों ने बताया कि उस समय 5 दिसंबर को माहौल बदल गया. शाम को काफी हलचल देखने मिली. लोग इकट्ठा होते चले गए. उनकी संख्या सतत बढ रही थी. जिससे अनुमान हो गया था कि कुछ बडा होने वाला है. सवेरे जब 8 बजे सभा शुरु हुई. मंच पर कई बडे नेता विराजमान थे.
* सिंघल की सिंह वाणी
अशोक जी सिंघल बरसों तक विश्व हिंदू परिषद के सर्वेसर्वा रहे. इस क्षेत्र के सभी कार्यकर्ता उनसे बडे प्रभावित थे. सिंघल और गिरिराज किशोर के वक्तव्य कार्यकर्ताओं में जोश भरते. यही कारसेवा के दिन भी हुआ. सुबह 8 बजे कारसेवक बडी संख्या में जमा हो गए थे. देश के सभी भागों से कारसेवक आए थे. साढे आठ बजे तक माहौल आक्रमक हो गया. (शेष अगले अंक में)