* मरीजों की तुलना में बेड संख्या अपर्याप्त
* साफ-सफाई की व्यवस्था का नितांत अभाव
* केवल 2 माह की दवाईयों का स्टॉक उपलब्ध
* मरीजों की तुलना में डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या कम
* अपर्याप्त मनुष्यबल रहने के चलते हर एक पर बढा काम का बोझ
* दवाईयों की आपूर्ति का नियोजन अस्त-व्यस्त, निधि मिलने में हो रही दिक्कत
* एक-एक मरीज पर ध्यान देना हुआ असंभव, अस्पताल में मरीजों की तौबा भीड
* रोजाना ओपीडी में पहुंच रहे करीब 1 हजार मरीज, आईपीडी में 350 मरीज भर्ती
* सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा नि:शुल्क होने से लगातार बढ रही मरीजों की संख्या
अमरावती/दि.5 – राज्य के नांदेड व छत्रपति संभाजी नगर सहित नागपुर के सरकारी अस्पतालों में एक दिन के दौरान करीब 73 मरीजों की मौत होने के चलते पूरे राज्य में हडकंप मचा हुआ है तथा राज्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवालिया निशान लगते नजर आ रहे है. ऐसे में अब राज्य के अन्य सभी जिलों की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर समीक्षा भी की जा रही है. इसी के तहत दैनिक अमरावती मंडल ने अमरावती जिलावासियों के स्वास्थ्य व चिकित्सा की जिम्मेदारी रहने वाले जिला सामान्य अस्पताल यानि इर्विन अस्पताल की स्थिति का जायजा लिया, तो एक भयावह सच सामने आया. जिसके मुताबिक जिला सामान्य अस्पताल भी इस समय डेंजर झोन में कहा जा सकता है और यहां पर भी किसी भी समय नांदेड, छत्रपति संभाजी नगर व नागपुर जैसी स्थिति की पुनरावृत्ति हो सकती है. क्योंकि इर्विन अस्पताल में जहां एक ओर कुल मंजूरी पदों में से डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों के दर्जनों पद रिक्त पडे है. जिसकी वजह से यहां का कामकाज अपर्याप्त मनुष्यबल के भरोसे जैसे-तैसे चल रहा है तथा मरीजों के इलाज का काम भी प्रभावित हो रहा है. क्योंकि डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या अपर्याप्त रहने के चलते प्रत्येक मरीज की ओर पूरा ध्यान देना लगभग असंभव है. ऐसे में गंभीर स्थिति में रहने वाले मरीजों की हालत बिगडकर उनकी मौत होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. पता चला है कि, अकेले सितंबर माह के दौरान ही 30 दिनों में जिला सामान्य अस्पताल में करीब 72 मरीजों की मौत हुई है. यानि रोजाना लगभग औसतन 2 से 3 मरीज इर्विन अस्पताल में दम तोड रहे है.
वहीं सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि, इर्विन अस्पताल में केवल 2 माह की जरुरत के हिसाब से दवाईयों का स्टॉक उपलब्ध है. जबकि कम से कम 4 माह की दवाईयां स्टॉक में होनी चाहिए. साथ ही दवाईयों की खरीदी के लिए अस्पताल प्रशासन को निधि प्राप्त करने हेतु राज्य सरकार एवं जिला नियोजन समिति के समक्ष लगभग गिडगिडाना पड रहा है. इसके बावजूद दवाईयां खरीदने के लिए निधि मिलने में काफी दिक्कतें पेश आ रही है. सबसे बुरी स्थिति साफ-सफाई की व्यवस्था को लेकर कहीं जा सकती है. अस्पताल के शौचालय व स्वच्छता गृह पूरी तरह गंदगी से भरे पडे रहते है. जिनकी नियमित तौर पर साफ सफाई तक नहीं होती. जिसके चलते यहां पर दुर्गंध पसरी रहती है. साथ ही इसकी वजह से किटाणुओं व जीवाणुओं के फैलने की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता. जिसके चलते बीमारों का इलाज करने वाला इर्विन अस्पताल भी बीमारियां फैलाने वाला स्थल दिखाई देता है.
विशेष उल्लेखनीय है कि, राज्य सरकार द्बारा विगत 15 अगस्त से सभी सरकारी अस्पतालों में सभी तरह की स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवा व सुविधाओं को पूरी तरह से नि:शुल्क कर दिया गया है. जिसके चलते सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य जांच व इलाज हेतु आने वाले मरीजों की संख्या काफी अधिक बढ गई है. ऐसे में सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का बोझ और भी अधिक बढ गया है. जानकारी के मुताबिक इर्विन अस्पताल की ओपीडी में रोजाना करीब 1 हजार से आसपास मरीज अपनी स्वास्थ्य जांच हेतु पहुंच रहे है. जिसमें से गंभीर स्थिति में रहने वाले मरीजों को अस्पताल के अलग-अलग वार्डों में इलाज हेतु भर्ती कराया जाता है. 389 बेड की क्षमता वाले इर्विन अस्पताल में इस समय 350 मरीज इलाज हेतु भर्ती रहने की जानकारी है. वहीं कई बार यह स्थिति रहती है कि, एक-एक बेड पर दो-दो मरीजों को भर्ती करते हुए उनका इलाज किया जाता है और कई बार तो जमीन पर गद्दे डालकर मरीजों को भर्ती करने की नौबत भी आ जाती है. ऐसे समय अस्पताल में कार्यरत रहने वाले डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का बोझ काफी अधिक बढ जाता है. क्योंकि डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मी के कई पद रिक्त पडे है और मरीजों की संख्या को देखते हुए अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या अत्यल्प व अपर्याप्त साबित होती है.
इसके अलावा सबसे बडी चिंता का विषय अस्पताल में उपलब्ध रहने वाले दवाईयों के स्टॉक को लेकर है. निर्धारित मापदंडों के मुताबिक पूरे अमरावती जिले की स्वास्थ्य सेवा का जिम्मा रखने वाले जिला समाान्य अस्पताल में कम से कम 4 माह की जरुरत के हिसाब से दवाईयों का स्टॉक उपलब्ध होना चाहिए. परंतु इस समय इर्विन अस्पताल में केवल 2 माह की जरुरत के हिसाब से दवाईयों का स्टॉक उपलब्ध है. बता दें कि, इससे पहले राज्य के सरकारी अस्पतालों में हॉफकिन इंस्टीट्यूट द्बारा दवाईयों की आपूर्ति की जाती थी. जिसके बाद राज्य सरकार ने इस कार्य हेतु एक स्वतंत्र प्राधिकरण गठित किया है. परंतु यह प्राधिकरण अब तक कार्यान्वित ही नहीं हो पाया है. ऐसे में जिला सामान्य अस्पताल प्रबंधन को दवाईयों की उपलब्धता हेतु निधि प्राप्त करने के लिए जिला नियोजन समिति पर निर्भर रहना पडता है. जहां से जिला सामान्य अस्पताल को दवाईयों की खरीदी हेतु मिलने वाली निधि को ‘उंट के मुंह में जीरा’ कहा जा सकता है. यानि दवाईयों का स्टॉक कम करने के साथ-साथ दवाईयां खरीदने हेतु मिलने वाली निधि भी कम है. जिसकी वजह से जिला सामान्य अस्पताल में 4 माह की जरुरत के लिहाज से आवश्यक दवाई नहीं खरीदी जा रही.
* अनेकों पद पडे है रिक्त
जिला सामान्य अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों सहित परिचारिका, तकनिशियन सहित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी एवं सफाई कर्मचारी के कुल मंजूर पदों में से अनेकों पद रिक्त पडे है. इसके चलते जिला सामान्य अस्पताल को कई बार निजी डॉक्टरों सहित निजी टेक्नीशियनों की सेवा लेनी पडती है. परंतु वे भी नियमित तौर पर उपलब्ध नहीं होते है. बल्कि उनके अलग-अलग दिन तय होते है. इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पडता है. इसके अलावा वर्ग 4 के कर्मचारी कम रहने के चलते मरीजों के स्ट्रेचर अथवा व्हिल चेअर के जरिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने में काफी वक्त लगता है. क्योंकि जो कर्मचारी कार्यान्वित है, उन पर काम का बोझ काफी अधिक है. ऐसे में मरीजों पर उपचार के बिना अपनी वेदनाओं को सहन करते रहना पडता है.
* दवाईयों के लिए सरकार से मिलती है केवल 10 फीसद निधि
फिलहाल राज्य सरकार की ओर से जिला सामान्य अस्पताल को दवाईयां खरीदने के लिए केवल 10 फीसद निधि मिल रही है. वहीं 20 फीसद निधि डीपीसी से प्राप्त करते हुए दवाईयां खरीदी जा रही है. जिसके चलते यद्यपि फिलहाल आवश्यक दवाईयों की किल्लत नहीं है. परंतु दवाईयों का स्टॉक कम होते ही डीपीसी की निधि का प्रयोग करना पडता है.
* एक माह में 72 मौतें
जिला सामान्य अस्पताल में विगत एक माह के दौरान विविध बीमारियों व कारणों के चलते 72 लोगों की मौत हुई है. इसमें से अस्पताल में भर्ती कराए जाते समय ही कई मरीजों की स्थिति बेहद चिंताजनक थी. जिसमें से कुछ मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो गई. वहीं कुछ मरीज हादसों में गंभीर रुप से घायल होने के चलते अस्पताल में भर्ती कराए गए थे. जिन्होंने इलाज के दौरान दम तोडा.
* एक्सरे व सिटी स्कैन के लिए पहले की तुलना में ज्यादा समय
जिला सामान्य अस्पताल में इस समय कुल 380 बेड की सुविधा है. वहीं अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 1 हजार से अधिक मरीज अपनी स्वास्थ्य जांच हेतु पहुंचे. जिसमें से कई मरीजों की एक्सरे व सिटी स्कैन सहित अन्य कुछ तरह की टेस्ट करनी होती है. चूंकि बाहर इस तरह की केस के लिए काफी अधिक पैसा खर्च होता है. ऐसे में कई मरीज इस तरह की टेस्ट को नि:शुल्क करने के लिए जिला सामान्य अस्पताल में पहुंचते है. जिसकी वजह से एक्सरे व सिटी स्कैन विभाग में भी दोगुना अधिक भीड होने लगी है. परंतु विशेषज्ञ मनुष्यबल के अभाव में मशीन की संख्या बढाना संभव नहीं रहने के चलते प्रत्येक मरीज की टेस्ट करवाने में पहले की तुलना में काफी अधिक समय लगने लगा है.
* अस्पताल में मनुष्यबल की स्थिति
संवर्ग मंजूर पद पदभर्ती रिक्त पद
वर्ग-1 23 13 10
वर्ग-2 37 37 00
वर्ग-3 107 72 35
वर्ग-3 (नर्सिंग) 195 142 53
वर्ग-4 215 147 68
कुल 578 411 167
* 10 करोड की दवाईयां मांगी गई, पूरे जिले के सरकारी अस्पतालों को होती है आपूर्ति
उल्लेखनीय है कि, जिला सामान्य अस्पताल के औषधी भंडार से जिले के सभी सरकारी अस्पतालों को दवाईयों की आपूर्ति होती है. जिनमें 2 जिला स्त्री अस्पताल, 5 उपजिला अस्पताल, 5 ट्रामा केअर यूनिट, 9 ग्रामीण अस्पताल तथा विभागीय सेवा संदर्भ अस्पताल सहित जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व उपकेंद्रों का समावेश है. इन सभी अस्पतालों को प्रतिमाह करीब 2 से 3 करोड रुपए की दवाईयां उपलब्ध कराई जाती है. साथ ही कुछ जिला सामान्य अस्पताल में भर्ती रहने वाले मरीजों की जरुरतों के लिहाज से भी औषध भंडार में दवाईयों का स्टॉक सुरक्षित रखा जाता है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अस्पताल प्रशासन ने जिला नियोजन समिति के पास दवाईयों की खरीदी हेतु 10 करोड रुपयों की मांग की है. परंतु फिलहाल यह निधि अस्पताल को उपलब्ध नहीं हो पायी है. ऐसे में अस्पताल प्रशासन द्बारा उम्मीद जताई जा रही है कि, दवाईयों का मौजूदा स्टॉक खत्म होने से पहले दवाईयों की खरीदी हेतु अस्पताल को डीपीसी के जरिए निधि उपलब्ध हो जाएगी.
* फिलहाल अस्पताल में दवाईयों की कोई कमी नहीं है और दो महिने के लिहाज से दवाईयों का स्टॉक उपलब्ध है. विगत डेढ वर्ष से हॉफकिन के जरिए दवाईयां मिलना बंद है. ऐसे में डीपीसी तथा सरकार की ओर से मिलने वाली निधि के जरिए दवाईयों की स्थानीय स्तर पर खरीदी की जाती है. वहीं इस समय अस्पताल में मरीजों की संख्या काफी अधिक बढ गई है. जिसके चलते अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का बोझ अचानक ही बढ गया है. क्योंकि हमारे पास आवश्यक मनुष्यबल की तुलना में उपलब्ध मनुष्यबल काफी हद तक कम है. अत: डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों के रिक्त पदों पर नियुक्ति होना जरुरी है. हालांकि हम अपने पास उपलब्ध मनुष्यबल के जरिए हर एक मरीज को बेहद स्वास्थ्य सेवा व चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे है.
– डॉ. दिलीप सौंदले,
जिला शल्यचिकित्सक,
जिला सामान्य अस्पताल, अमरावती.
* हाईकोर्ट हुआ मरीजों की मौतों पर गंभीर
– स्वसंज्ञान लेकर सरकार से मांगी जानकारी
इसी बीच यह पता चला है कि, नांदेड व छत्रपति संभाजी नगर के सरकारी अस्पतालों में बडे पैमाने पर हुई मरीजों की मौतों को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय ने स्वसंज्ञान लेते हुए सुओ मोटो दाखिल की और राज्य के महाधिवक्ता डॉ. वीरेंद्र सराफ को कल शुक्रवार तक इस घटना के संदर्भ में प्राथमिक रिपोर्ट तथा स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किए गए बजटिए प्रावधान की जानकारी उपलब्ध कराने का मौखिक निर्देश दिया. इसके साथ ही मुख्य न्यायमूर्ति देवेंद्र उपाध्याय व न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने राज्य सरकार को खडेबोल सुनाते हुए कहा कि, यदि मनुष्यबल व दवाईयों के अभाव की वजह से मरीजों की मौत हुई है, तो इसे कदापि बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इसे आगे ऐसे ही जारी भी नहीं रहने दिया जा सकता. अत: राज्य सरकार इस घटना को लेकर अपनी भूमिका व स्थिति को स्पष्ट करें तथा घटना से जुडी प्रत्येक छोटी से छोटी बात की जानकारी हाईकोर्ट के सामने प्रस्तूत करें.