अमरावतीमहाराष्ट्र

प्रचार से नदारद हैं जनसामान्यों से जुडे मुद्दे

विदर्भ के 10 जिलों में 15 वर्ष दौरान कोई बडा उद्योग नहीं

* लगातार बढता जा रहा है महंगाई व गरीबी का दायरा
* नागपुर छोड सभी जिलों में प्रतिव्यक्ति आय बेहद कम
* किसी भी जनप्रतिनिधि के पास वैदर्भीय समस्या की ओर ध्यान देने की फुर्सत नहीं
अमरावती/दि.16– चुनाव आते ही प्रचार सभाओं में नेताओं द्वारा भाषण देते हुए गरीबी, बेरोजगारी व महंगाई जैसे मुद्दों को जमकर उछाला जाता है. लेकिन चुनाव के खत्म होते ही यह तमाम मुद्दें हवा-हवाई होकर हाशिए पर चले जाते है. यहीं वजह है कि, चुनाव प्रचार के दौरान जमकर गुंजने वाले विकास एवं जनसामान्यों के मुद्दें जैसे मसले आगे चलकर हमेशा ही अनदेखें रह जाते है. यहीं वजह है कि, विकास की दौड में विगत लंबे समय से पिछडा रहने वाला विदर्भ क्षेत्र आज भी पिछडा हुआ ही है. जिसके लिए पूरी तरह से वैदर्भीय जनप्रतिनिधियों की अनास्था व अनदेखी जिम्मेदार है.

उल्लेखनीय है कि, विदर्भ क्षेत्र के समक्ष किसान आत्महत्या सबसे ज्वलंत मसला है. इसी वर्ष दो माह के दौरान विदर्भ क्षेत्र के 229 किसानों ने आत्महत्या की है. जिसमें से 175 किसान आत्महत्याएं अमरावती संभाग के 5 जिलों में हुई है. ज्ञात रहे कि, राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सत्ता में आते ही सदन में दावा किया था कि, वे अब राज्य में एक भी किसान आत्महत्या नहीं होने देंगे. लेकिन इसके बावजूद किसान आत्महत्याओं को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाये गये. जिसकी वजह से किसान आत्महत्याएं बदस्तूर जारी है. इस बार बारिश की अनियमितता के चलते खेतों में उपज काफी कम हुई. साथ ही कपास व सोयाबीन को अपेक्षित दाम भी नहीं मिले. इसके अलावा धान उत्पादक किसानों के भी अलग मसले है और कुल मिलाकर सभी तरह के किसान आर्थिक समस्याओं में फंसे हुए है. परंतु किसानों को केवल ‘नमो किसान महासम्मान योजना’ से महज 6 हजार रुपए की वार्षिक सहायता दी गई और चुनाव में इसी योजना व सहायता का प्रचार किया जा रहा है. जबकि किसानों के मसलें अब भी जस के तस बने हुए है. राज्य में प्रादेशिक विकास का असंतुलन बढता रहने के चलते उसका अध्ययन कर विकास का अनुशेष दूर करने की दृष्टि से वैधानिक विकास महामंडल की स्थापना की गई थी. परंतु इस समय यह मंडल अस्तित्व में ही नहीं है और इनकी पुनर्स्थापना का मसला भी अधर में लटका हुआ है. लेकिन इस पर कोई भी राजनेता या जनप्रतिनिधि बात करने के लिए तैयार ही नहीं है.

इसी तरह विदर्भ का औद्योगिक पिछडापन भी हमेशा ही चर्चा में रहता है. लेकिन इस बार चुनाव प्रचार से यह मुद्दा भी नदारद है. उद्योग संचालनालय की आंकडेवारी के मुताबिक राज्य में 19.79 लाख सुक्ष्म उपक्रम है. जिनमें विदर्भ की हिस्सेदारी केवल 2.55 लाख ही है. साथ ही मध्यम व लघु उपक्रमों की संख्या भी क्रमश 632 तथा 6 हजार 333 है. विगत 10 वर्षों के दौरान राज्य के इन उद्योगों में हुए कुल निवेश में से केवल 12 फीसद निवेश विदर्भ के उद्योगों में हुआ था. परंतु औद्योगिकरण में रहने वाला विभाग निहाय असंतुलन का विषय प्रचार में कहीं पर भी दिखाई नहीं देता. औद्योगिकरण में कोई तेजी नहीं रहने तथा विदर्भ क्षेत्र में विगत 20-25 वर्षों के दौरान कोई नया औद्योगिक प्रकल्प ही स्थापित नहीं होने के चलते विदर्भ में सुशिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ रही है और प्रतिवर्ष विभिन्न महाविद्यालयों से पढ-लिखकर बाहर निकलने वाले युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध नहीं है. जिसके चलते विदर्भ क्षेत्र के युवाओं को दूसरे महानगरों में स्थलांतरीत होना पडता है. लेकिन किसी भी राजनेता या राजनीतिक दल को इसकी कोई फिक्र नहीं है.
विदर्भ में सिंचाई अनुशेष का मुद्दा भी विगत लंबे समय से चर्चित रहा. अमरावती संभाग में वर्ष 1994 के स्तर पर करीब 73 हजार हेक्टेअर की सिंचाई का अनुशेष बाकी था. इसके बाद बढे अनुशेष के आंकडे भी लगातार बढ रहे है. परंतु पश्चिम विदर्भ में खारे पानी वाले पट्टे के प्रश्न एवं सिंचाई के अभाव की वजह से होने वाले नुकसान जैसे मुद्दों पर राजनेता व जनप्रतिनिधि कोई चर्चा नहीं करते. बल्कि केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में ही पूरा समय व्यर्थ निकल जाता है. विदर्भ क्षेत्र में संतरे का भरपूर उत्पादन होता है. लेकिन संतरा निर्यात को लेकर कोई योग्य नीति ही नहीं है. जिसकी वजह से संतरा उत्पादक किसान भी संकट में फंसे हुए है. जिन्हें संकट से बाहर निकालने और विदर्भ क्षेत्र में उत्पादित होने वाले संतरें को वैश्विक बाजार उपलब्ध कराने हेतु निर्यात नीति को सक्षम बनाने के प्रति कोई जनप्रतिनिधि बिल्कूल भी गंभीर नहीं.

उल्लेखनीय है कि, 18 वीं लोकसभा के चुनाव हेतु पहले चरण का मतदान होने में अब केवल तीन दिनों का समय बचा हुआ है. वहीं दूसरे चरण के प्रचार ने अच्छी खासी रफ्तार पकड ली है. जिसके चलते हर ओर चुनाव प्रचार हेतु पदयात्रा, रैली व जनसभाओं की धामधूम चल रही है. परंतु इस पूरी धामधूम में वैदर्भीय जनता के जीवन से जुडे मुद्दें कहीं पर भी जगह नहीं बना पा रहे. उद्घाटन की प्रतिक्षा में रहने वाले गडचिरोली जिले के कोनसरी लौह-इस्पात प्रकल्प तथा पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटिल के प्रयासों से बडनेरा में साकार हुए रेल्वे वैगन दुरुस्ती कारखाने को छोडकर शेष 10 जिलों में विगत 15 वर्ष के दौरान कोई बडा उद्योग या प्रकल्प नहीं आया. साथ ही 8 जिलों में तो बडे पैमाने पर रोजगार दे सकने में सक्षम रहने वाला कोई बडा उद्योग विगत 25-30 वर्ष के दौरान स्थापित नहीं हुआ. इसके चलते विदर्भ क्षेत्र में औद्योगिक पिछडापन बरकरार है और पढे-लिखे युवाओं के पास करने के लिए कोई काम नहीं है. जिसकी वजह से विदर्भ में बेरोजगारी की संख्या लगातार बढ रही है. बता दें कि, देश व राज्य में बेरोजगारी का औसत प्रमाण 40 फीसद के आसपास है. जो विदर्भ में 60 फिसद के लगभग है. मुंबई को छोडकर शेष महाराष्ट्र में 1 हजार के अनुपात में 785 रोजगार है. यह अनुपात मराठवाडा में 570 तथा विदर्भ में केवल 382 है. यह आंकडे ही अपने आप में विदर्भ की स्थिति को बताने में पूरी तरह सक्षम है.

इन वैदर्भीय जनप्रतिनिधियों द्वारा रोजगार निर्मिति के मुद्दों की ओर अनदेखी किये जाने के चलते विदर्भ में नागपुर के अलावा शेष सभी 10 जिलों में प्रतिव्यक्ति आय राज्य के औसत से काफी कम है. चूंकि विदर्भ क्षेत्र में अपेक्षित रोजगार निर्मिति व औद्योगिकरण ही नहीं हो रहा. इसकी वजह से गरीबी व बेरोजगारी लगातार बढती जा रही है. जिसके चलते स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे मुद्दों को लेकर भी समस्याएं पैदा हो रही है और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोगबाग अपना जीवन जीने के लिए मजबूर है.

अमरावती में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटिल के कार्यकाल दौरान बडनेरा रेल्वे वैगन फैक्टरी, अचलपुर की फिनले मिल तथा नागपुर मार्ग पर भारत डायनॉमिक के मिसाल कारखाने जैसे तीन बडे प्रकल्प आये थे. जिसमें से केवल बडनेरा रेल्वे वैगन फैक्टरी का कारखाना लंबे अरसे बाद अब कहीं जाकर जैसे-तैसे बनकर साकार हुआ है और उद्घाटन होने की प्रतिक्षा कर रहा है. इसके अलावा भारत डायनॉमिक ने अपना मिसाइल कारखाना कब लपेट लिया, किसी को पता ही नहीं चला. इस मिसाइल कारखाने के लिए सावर्डी गांव के आगे सैकडों एकड जमीन अधिग्रहित कर आवंटीत भी कर दी गई थी और करोडों रुपयों की लागत लगाकर उस जमीन के चारों ओर तार का सुरक्षा घेरा भी बना लिया गया था. यह पूरा ताम-झाम व्यर्थ में चला गया. किसी तरह अचलपुर की फिनले मिल भी कुछ समय तक चलने के बाद अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गई. जिसे दोबारा शुरु करने में अब तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने अपनी कोई रुची नहीं दिखाई है.

अमरावती के ही नांदगांव पेठ में पंचतारांकित एमआईडीसी साकार की गई है. जहां पर टेक्स्टाइल पार्क साकार करने के साथ-साथ अब पीएम मित्रा टेक्स्टाइल प्रकल्प भी लाने की बात चल रही है. परंतु जहां एक ओर पीएम मित्रा प्रकल्प तमाम तरह की दिक्कतों में फंसा हुआ है. वहीं दूसरी ओर करीब 5 वर्ष पहले साकार हुए टेक्स्टाइल पार्क में स्थापित उद्योगों ने अब धीरे-धीरे यहां से पलायन करना शुरु कर दिया है.

अमरावती के बेलोरा विमानतल का मुद्दा भी लंबे समय से चर्चा में है. लेकिन विगत करीब एक दशक से विकास व विस्तार को लेकर तमाम तरह के दावे होने के बावजूद भी बेलोरा विमानतल से निश्चित तौर पर नियमित हवाई उडानें कब तक शुरु हो पाएंगी. यह आज भी अमरावती सहित पश्चिम विदर्भ क्षेत्र का कोई भी जनप्रतिनिधि दावे के साथ नहीं कह सकता. यह अपने आप में एक सबसे बडी सच्चाई है.

नागपुर में हिंगणा व बुटीबोरी जैसे दो औद्योगिक क्षेत्र है. परंतु कलमेश्वर में वर्ष 1982 में निपॉन डेन्रो व 1989 में बुटीबोरी में इंडोरामा सिंथेटिक्स जैसे प्रकल्पों के बाद कोई बडा उद्योग उपराजधानी में नहीं आया. सियट टायर का एक छोटा प्रकल्प कुछ अरसा पहले नागपुर में स्थापित हुआ था. परंतु उसका उम्मीद के अनुसार विस्तार नहीं हो सका. फिलहाल इंडोरामा के साथ ही सोलर इंडस्ट्रीज व जेएसडब्ल्यू का ही रोजगार के लिए नागपुर को आधार है.

मल्टी मोडल इंटरनैशनल पैसेंजर एण्ड हब एयरपोर्ट एट नागपुर यानि मिहान का मूल उद्देश्य उसके नाम के अनुसार कार्गो हब है, लेेकिन अगर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट रहेंगे, तभी लॉजिस्टीक या कार्गो यानि माल ढुलाई का कोई अर्थ रहेगा. ऐसे में नागपुर में केवल 8 छोटे यूनिट रहना भी पूरी तरह से स्थिति को बयान करना है. इसके बावजूद विगत कुछ वर्षों के दौरान मिहान में कुछ आईटी कंपनियों व सेवा क्षेत्र की कुछ कंपनियों के साथ ही विमानों की देखभाल व दुरुस्ती करने वाले एमआरओ में युवाओं को थोडा बहुत रोजगार मिला है. नागपुर से वास्ता रखने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मिहान के जरिए 70 हजार युवाओं को रोजगार मिलने का दावा किया है.

हाल ही में शुरु हुई गडचिरोली स्थित सूरजगढ की लौह खदान में 4 हजार मजदूर काम करते है. इस नक्सलग्रस्त इलाके का भाग्य बदलने की ताकत इस खदान और यहां से निकलने वाले लौह खनिज पर आधारित इस्पात प्रकल्प में है. सालाना 70 लाख टन उत्पादन की क्षमता रहने वाले कोनसरी उद्योग के पहले चरण का काम पूरा हो चुका है और वहां पर इस समय 1200 मजदूर काम कर रहे है, ऐसी जानकारी है.

भंडारा जिले में वर्ष 1982 में अशोक लेलैंड का प्रकल्प स्थापित हुआ था. इस प्रकल्प का विस्तार होने के कई वर्ष तक चर्चा चली. लेकिन इस प्रकल्प का विस्तार नहीं हुआ. टाटा स्ट्रील के बाद भारत का पहला इंटीग्रेडेट स्ट्रील प्लाँट रहने वाला सनफ्लैग प्रकल्प भी भंडारा जिले में स्थापित होने की पहल हुई थी और भंडारा के जिलाधीश योगेश कुंभेजकर के प्रयासों से हाल ही में एक निवेश परिषद भी आयोजित की गई थी. जिसमें हुए सामंजस्य करारों की पूर्तता की ओर बेरोजगारों का ध्यान लगा हुआ है.

गोंदिया में अदानी पॉवर के रुप में काफी बडा निवेश हुआ. परंतु केवल विद्युत प्रकल्प से बडे पैमाने पर रोजगार निर्मिति नहीं होती. ऐसे में इसके साथ अन्य पूरक उद्योगों का रहना बेहद जरुरी होता है. जिनका अभाव रहने की वजह से गोंदिया में बडे पैमाने पर रोजगार निर्मिति नहीं हो पायी.

चंद्रपुर में विगत वर्ष ही स्पंज आयर्न का नया कारखाना शुुर हुआ. जहां पर केवल 275 मजदूर काम कर रहे है. राज्य के मंत्री तथ लोकसभा चुनाव हेतु भाजपा प्रत्याशी सुधीर मुनगंटीवार के प्रयासों से विगत दिनों ही चंद्रपुर में एडवॉन्टेज चंद्रपुर के तहत निवेश परिषद हुई. जिसमें 75 हजार करोड के करार हुए. परंतु यह सभी करार कब तक अमल में आ पाएंगे. यह अपने आप में सबसे बडा सवाल है.

* विदर्भ में अब तक आये उद्योग

वर्ष            जिला                     प्रकल्प
1989         नागपुर                  इंडोरामा
1996       यवतमाल                   रेमंड
2007        अमरावती             फिनले (बंद)
2009         गोंदिया               अदानी पॉवर
2010           वर्धा              महालक्ष्मी टीएमटी
2023          चंद्रपुर                स्पंज ऑयर्न
2022-23   गडचिरोली   सूरजगढ लौह खदान व कोनसरी उद्योग

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