जिम्मेदारियों के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जतन जरुरी
न्यायमूर्ति भूषण गवई का प्रतिपादन
* सांस्कृतिक भवन में ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ विषय पर हुआ व्याख्यान
* जिला वकील संघ व दैनिक हिंदुस्थान का संयुक्त आयोजन
अमरावती/दि.31– भारतीय संविधान द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 में अंतर्भूत है, जो भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को विभिन्न तरह की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. जिसके तहत अपने विचारों को व्यक्त व अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता, सभा सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता, कोई संगठन स्थापित करने, देश में कही पर भी घुमने-फिरने व रहने की स्वतंत्रता दी गई है. जिनके साथ कुछ कर्तव्य एवं जिम्मेदारियां भी संलग्नित है. ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने अब तक दिये गये विभिन्न फैसलों में मर्यादा के तहत अभिव्यक्ति की आजादी का महत्व अधोरेखित किया है. इस अधिकार का प्रयोग कब व कैसे किया जाये. इसे लेकर जनसामान्यों का सजग होना बेहद जरुरी है. इस आशय का प्रतिपादन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भूषण आर. गवई द्वारा किया गया.
दैनिक हिंदुस्थान के अमृत महोत्सवी वर्ष का औचित्य साधते हुए दैनिक हिंदुस्थान एवं जिला वकील संघ के संयुक्त तत्वावधान में बीती शाम 5 बजे श्री संत ज्ञानेश्वर सांस्कृतिक भवन में ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया था. जिसमें प्रमुख वक्ता के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति भूषण गवई द्वारा अपने विचार व्यक्त किये जा रहे है. श्री शिवाजी शिक्षा संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन देशमुख की अध्यक्षता के तहत आयोजित इस व्याख्यान में प्रमुख अतिथि के तौर पर जिला व सत्र न्यायाधीश एस. वी. यार्लगड्डा, जिला वकील संघ के अध्यक्ष एड. विश्वास काले तथा दैनिक हिंदुस्थान के संपादक उल्हास मराठे व प्रबंध संपादक विलास मराठे मंचासीन थे. कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी गणमान्यों के हाथों दीप प्रज्वलन करने के साथ ही दैनिक हिंदुस्थान की यात्रा को सक्षम बनाने वाले व्यक्तिमत्व का अभिवादन किया गया. साथ ही इस अवसर पर दैनिक हिंदुस्थान परिवार की ओर से न्या. भूषण गवई, न्या. एस. वी. यार्लगड्डा व एड. विश्वास काले का भावपूर्ण सत्कार किया गया. जिसके उपरान्त गणमान्यों के हाथों दैनिक हिंदुस्थान के दीपावली अंक का विमोचन हुआ.
इस अवसर पर ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ यानि अभिव्यक्ति का अधिकार क्या है. साथ ही यह लोकतांत्रिक व्यवस्था सहित सर्वसामान्यों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इस पर अपने विचार रखते हुए न्या. भूषण गवई ने कहा कि, 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान का स्वीकार किया था तथा 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान पर अमल करना शुरु किया गया. इसके साथ ही भारत सरकार कानून 1935 के स्थान पर भारतीय संविधान ने देश के मूलभूत प्रशासकीय दस्तावेज का स्थान हासिल किया और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को गणतंत्र यानि प्रजासत्ताक व्यवस्था का दर्जा मिला. आजादी का अधिकार क्या है, इसका सीधा उत्तर है कि, यह संविधान द्वारा देश के सर्वसामान्य नागरिकों को दिया गया मूलभूत अधिकार है. इसके तहत सभी भारतीयों को भारत में कही पर भी रहने व काम करने की आजादी प्राप्त है. साथ ही राज्यों की मनमानी कार्रवाई से आम व्यक्तियों के अधिकारों को संरक्षित करने का काम संविधान द्वारा किया जाता है. इसके साथ ही भारतीय संविधान यह भारतीय कानून प्रणाली का प्राण है. क्योंकि यह मूलभूत व सर्वोच्च कानून है. इस संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को कई अधिकार प्रदान किये गये है. जिसमें से इन दिनों नागरिकों को प्राप्त अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार काफी चर्चा में है और इसे लेकर कई मामले अदालत में भी गये है. न्या. भूषण गवई के मुताबिक इससे पहले अखबार, आकाशाणी व दूरदर्शन जैसे ही प्रसार माध्यम हुआ करते थे. इनके जरिए व्यक्त होने वाले लोगों की संख्या काफी गिनी-चुनी हुआ करती थी. परंतु सोशल मीडिया के अस्तित्व में आ जाने के चलते जनसामान्यों को व्यक्त होने का अवसर मिलना शुरु हो गया है, जो एक तरह से अच्छी बात भी है. परंतु यह स्वतंत्रता निरपवाद व निरंकुश नहीं है, बल्कि इसके साथ संयम व नियमों की मर्यादा जुडी हुई है. यह आजादी के अधिकार का प्रयोग करने वाले लोगों ने भुलना नहीं चाहिए. ऐसे में संविधान द्वारा दिये गये आजादी के अधिकार के साथ किस तरह के आशय व उद्देश्य जुडे हुए है. इसकी जानकारी चहूंओर पहुंचना बेहद जरुरी है.
अपने विचारों को विस्तार देते हुए न्यायमूर्ति भूषण गवई ने कहा कि, संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत 6 मूलभूत आजादी के अधिकारों का समावेश है. जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी सबसे अग्रक्रम पर है. आजादी के अधिकारों में विभिन्न स्वतंत्रताओं का समावेश है. जैसे की भाषण स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता, आंदोलन करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी व्यवसाय करने की स्वतंत्रता इसके साथ ही सार्वजनिक सुव्यवस्था, नैतिकता व राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को ध्यान में रखते हुए इन स्वतंत्रताओं के प्रयोग पर संविधान द्वारा कुछ प्रतिबंधों व निर्बंधों का प्रावधान किया गया है. उदाहरण के तौर पर हिंसा व तनाव को उत्तेजित करने वाले द्वेशयुक्त भाषणों को अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के तहत संरक्षित नहीं किया गया है. इसी तरह प्रतिबंधात्मक आदेश लागू रहने वाले परिसर में 5 या 5 से अधिक लोगों के एकत्रित होने की अनुमति नहीं होती. इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर कई उदाहरण देते हुए न्या. भूषण गवई ने बेहद सहज व सरल पद्धति से ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ के विषय पर जानकारी देते हुए सभी उपस्थितों को उनके अधिकारों के संदर्भ में मार्गदर्शन किया.
इसके उपरान्त अपने अध्यक्षीय संबोधन में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिवाजी शिक्षा संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन देशमुख ने कहा कि, दैनिक हिंदुस्थान के अमृत महोत्सवी वर्ष में जिला वकील संघ के सहयोग से आयोजित ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ व्याख्यान से अमरावतीवासियों के ज्ञान को एक नई उर्जा प्राप्त हुई है और इस तरह के आयोजन भविष्य में भी लगातार आयोजित होते रहने चाहिए. इस कार्यक्रम में प्रास्ताविक जिला वकील संघ के अध्यक्ष एड. विश्वास काले तथा संचालन व आभार प्रदर्शन किशोर फुले द्वारा किया गया. इस व्याख्यानमाला में पूर्व विधायक बी. टी. देशमुख व पूर्व लेडी गवर्नर डॉ. कमलताई गवई सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों से वास्ता रखने वाले अनेकों गणमान्य उपस्थित थे.