अमरावती

किसानों के लिए नुकसानवाला साल रहा

अतिवृष्टि की वजह से फसलें हुई बर्बाद

  • किटोें व रोगोें के हमले से उपज घटी

अमरावती/दि.31 – वर्ष 2020 किसानों के लिए काफी नुकसानवाला साल रहा. मार्च से शुरू हुए कोरोना संक्रमण की वजह से लागू किये गये लॉकडाउन की वजह से गर्मी के मौसम दौरान खेतों में किसी तरह का कोई काम नहीं हो पाया. पश्चात हुई अतिवृष्टि और किटों व संक्रामक रोगों की वजह से खरीफ सीझन की फसलें बडे पैमाने पर बर्बाद हुई. साथ ही उपज की गुणवत्ता व औसत प्रमाण भी प्रभावित हुए. जिसकी वजह से किसानोें को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पडा. ऐसी ही चिंताओें से जूझते हुए वर्ष 2020 में 269 किसानों ने आत्महत्या करते हुए अपने ही हाथों अपनी जिंदगी खत्म कर ली.
नई आशाओं और नये सपनों को लेकर शुरू हुए वर्ष 2020 की पहली तिमाही के दौरान ही पूरी दुनिया पर संकट के बादल मंडराने लगे थे और अगले नौ-दस माह कोरोना संक्रमण के साये में ही बीते. इस महामारी के संक्रमण की वजह से सभी व्यवहार पूरी तरह से ठप्प हो गये थे, जिससे किसान भी अछूते नहीं रहे. संक्रमण के भय एवं ऐन मशागत व बुआई के समय मजदूरों की कमी के चलते खरीफ सीझन की शुरूआत ही खराब रही. इसके बावजूद किसानोें ने जैसे-तैसे बुआई का काम निपटाया, तो बारिश ने कहर ढा दिया. इस बार मान्सून के अच्छा रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था, जो गलत साबित हुआ. शुरूआती दौर में संतुलित रहनेवाली बारिश बाद में अतिवृष्टि में तब्दील हो गयी. जिसका सीधा परिणाम मूंग, उडद व सोयाबीन जैसी फसलों पर पडा. मूंग और उडद तो पूरी तरह से बर्बाद ही हो गये, वहीं सोयाबीन पर भी अतिवृष्टि का जबर्दस्त परिणाम पडा. बारिश के साथ ही फसलों पर किटों व रोगों का आक्रमण होने से किसान काफी हैरान-परेशान हो गये और फवारणी करने के बाद थक चुके किसानों ने फसल हाथ में आने की आशा भी छोड दी. साथ ही कई लोगों ने तो खेतोें में खडी फसलों को अपने हाथों से उखाड फेंका. जिले में 41 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की फसल पूरी तरह से बर्बाद हुई. वहीं आधे से अधिक तहसीलों में प्रति हेक्टेयर 12 क्विंटल की ही उपज हाथ में आयी. इसी तरह इस बार कपास पर गुलाबी इल्लियोें के साथ ही बोडसर नामक नई बीमारी ने हमला करते हुए पूरी फसल को बर्बाद करने का काम किया. जिसकी वजह से कपास की उत्पादकता घटने के साथ ही गुणवत्ता भी प्रभावित हुई. जिसका सीधा परिणाम कपास के बाजार मूल्य पर पडा. सरकारी खरीदी केंद्रों पर एफएक्यू दर्जेवाली कपास को ही समर्थन मूल्य दिया जा रहा है. साथ ही एलएआर व उससे कम गुणवत्तावाली कपास को खरीदने से मना किया जा रहा है. ऐसी कपास को खुले बाजार में अधिकतम 5 हजार 200 रूपये प्रति क्विंटल का दाम मिल रहा है.
वर्ष 2020 में खरीफ सीझन के दौरान फसलों की बर्बादी होने के साथ ही किसान आत्महत्या के मामले भी बढे. सरकारी आंकडों के मुताबिक इस साल करीब 269 किसानों ने आत्महत्या की है. जिसमें से अधिकांश आत्महत्या खरीफ सीझन के दौरान ही हुई. इस वर्ष किसानों के लिए राज्य सरकार द्वारा दी गई कर्जमाफी को काफी राहतपूर्ण कहा जा सकता है. पांच वर्ष के दौरान पहली बार कर्जमाफी का आलेख उंचा रहा. साथ ही किसानोें को नया फसल कर्ज भी मिल पाया. ऐसे में तमाम विपरित हालात एवं दिक्कतों से जूझते हुए जिले के किसान दुबारा नये जोश व उमंग के साथ रबी फसलों की बुआई के काम में जूट गये है. फिलहाल जिले में चहुंओर कडाके की ठंड पड रही है. जिसे रबी फसलों के लिए पोषक माना जाता है. ऐसे में किसानोें की पूरी आशाएं रबी फसलों पर टिकी हुई है. ऐसे में अब यह देखनेवाली बात होगी कि, आगामी वर्ष 2021 किसानों के लिए अपनी पोटली में क्या सौगात लेकर आता है.

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