जय श्री राम! जय गुरुदेव!
राम नाम वो शब्द जो हमारी संस्कृति का परिचायक है. जो इस कदर समाहित है की एक दूसरे काप्रारूप बन गये है. शायद अब इनकी अलग-अलग कल्पना करना संभव भी नहीं है. राम भारतवर्ष की आत्मा है. राम के बिना तो भारत की कल्पना करना संभव ही नही है. क्योकि आत्मा के बिना शरीर जीवित ही नही रह सकता. राम की महिमा का बखान तो स्वयं शिवजी करते हैं…
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे .
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ..
राम नाम एक बार स्मरण करने से विष्णुसहस्त्र नाम जप का पुण्य मिल जाता है यही राम नाम की महिमा है. जो उनके साधरण व्यक्तित्व को असाधारण बनाकर उसमे ईश्वरीय रूप को समाहित कर देता है. परन्तु राम तो साधारण थे उन्होंने कभी भी भगवान श्री कृष्ण की तरह अपने ईश्वरीय स्वरूप को प्रगट नहीं किया. उनका यही सामान्य जीवन जो एक साधारण मनुष्य की तरह होता हुऐ भी उनकी धर्म के प्रति आस्था और अपने कर्तव्यों का संपूर्ण निष्ठा और निष्काम भाव के साथ उसका पालन करना ही राम को ईश्वरीय रूप प्रदान कर देता है. जिससे ये सम्पूर्ण जगत ही नही वरण ये संपूर्ण सृष्टि ही राम के आगे नतमस्तक हो जाती है. और राम को अपने ह्र्दय मे ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता के रूप मे स्थापित कर देती है. अगर कोई ये कहे कि उसने राम को जान लिया है और वो राम को परिभाषित कर सकता है. तो ये
समझ लेना चाहिये वो संपूर्ण रूप से असत्य बोल रहा है. क्योंकि राम को समझना तो शायद भगवान शंकर के लिये भी संभव ना हो. राम के गुण राम की तरह ही अनंत है. कोई भी व्यक्ति चाहे वो विद्वान ही क्यों ना हो धर्म की सूक्ष्म व्याख्या को समझे बिना रामके एक भी गुण का वर्णन नही कर सकता. तो फिर राम को परिभाषित करना तो अकल्पनीय ही है.राम के द्वारा किये गये कार्यों को जब तक हम सांसारिक मोह और साधारण व्यक्तित्व की आँखों से देखने का प्रयास करगे तब तक हम राम के उन संदेशो को नही समझ पायगे जो राम ने अपने भिन्न-भिन्न रूपों मे हमे देने का प्रयास किया है. राम ने अपनी जीवन यात्रा मे कई चरित्रों को जिया है औरउनकी भिन्न-भिन्न मर्यादाओं को पूर्ण सिद्ध किया है. गुरु शिष्य की मर्यादा, पिता पुत्र की मर्यादा, भाई का भाई के प्रति स्नेह, मित्र का मित्र के प्रति कर्तव्य, पति का पत्नी के प्रति कर्तव्य, शत्रु के प्रति मर्यादित रहना और राजा का दृष्टांत. भगवान राम से सम्बंधित उनकी जीवंत कथाओं मे भाई का भाई के प्रति प्रेम का अलौकिक उदहारण, जो मानव मात्र के ह्र्दय पटल पर आज तक अंकित है. इसकी छाप इतनी गहरी है, की इतने युगो बाद भी
मानव आज तक इसके मोह से अपने आप को नहीं छुड़ा पाया है. क्या राम का जीवन चरित्र मात्र एक कल्पना है, नहीं, क्योकि कल्पना का कोई आधार नहीं होता, और जिसका कोई आधार नहीं होता, वो मानव समाज को इतने युगों बाद भी यूं सम्मोहित नहीं कर सकता. क्योंकि कल्पना की आयु सीमित होती है, और एक दिन वो अपने अंत को प्राप्त हो जाती है. परंतु राम का चरित्र कोई कल्पना नहीं उसमे मर्यादाओं और मानव चरित्र का वो जीवंत उदहारण जो इतने वर्षो बादभी समाज के लिये एक दृष्टान्त बना हुआ है. इसीलिए राम कोई कल्पना नहीं एक पूर्ण सत्य है, जिसे प्रमाणित करने के लिये किसी की आवश्य्कता नहीं है.
लक्ष्मण का राम के प्रति प्रेम, भरत की राम के प्रति भक्ति ये वो उदाहरण है, जो आज भी हमारेअंतर्मन को निरंतर प्रकाशित कर रहे है. पर इनके विपरीत राम का अपने भाइयों के प्रति प्रेम जो
मोहरहित है, जिसमें मोह से अधिक कर्तव्य के प्रति निष्ठा है, जो उन्हें कर्तव्य मार्ग से भटकने नहीं देता, जो पिता और मित्र दोनों चरित्रों का ऐसा संतुलन बनाता है, जिसमें बड़े भाई का वो चरित्र जो पिता के सामान पुत्र रूपी छोटे भाइयों को पालन और कर्तव्य मार्ग का बोध करता और मित्र के सामान उनके उत्साह को बढ़ाता है. राम का यही चरित्र, उनकी धर्म के प्रति गहरी आस्था, पग-पग पर प्रेम, भक्ति और कर्तव्य पथ का बोध कराती उनकी जीवन यात्रा, मानव मूल्यों और उनके संस्कारो का सही अर्थ बताती, इस प्रकार प्रकाशित करती है की यदि मानव समाज उसका अनुसरण करे तो वो कभी भी अपने मार्ग से नहीं भटक सकता. जो सर्वश्वेर, किसी के अधीन नहीं होते वो केवल भक्त के अधीन होकर रह जाते हैं. श्री राम के जीवन की अमृत कथा ‘भक्त और भगवान’ के इसी अनुपम मिलन के बिना अधूरी है. जिसमें भक्त और भगवान एक दूसरे के पूरक हैं. जहाँ भक्त और भगवान के बीच का अंतर मिट जाता है. जहाँ भक्त सामर्थ्यवान और भगवान असहाय दिखाई देते हैं. भक्त और भगवान के दिव्य प्रेम की इस अनुभूति के बिना राम कथा की पूर्ण आहुति होना संभव नहीं. अपनी अटूट भक्ति की शक्ति के कारण ही हनुमान जी अपने आराध्य श्री राम के लिए सर्वसमर्थ सिद्ध हुए. राम कथा बिना माता शबरी के भी अपूर्ण है, जो भक्ति की उस दिव्यता को प्रदर्शित करती है, जिसके आगे देवता तो क्या स्वयं राम भी नतमस्तक हो जाते हैं. यह भक्ति की वो स्थिति है, जिसमें भक्त सांसारिक दृष्टि से पागल दीखता है और लौकिक शिष्टाचार को भूलकर भक्ति की उस चरम अवस्था को प्राप्त हो जाता है जहां उसकी भौतिक चेतना सुप्त हो जाती है. भक्ति की उसी चरम अवस्था पर पहुंच चुकी शबरी के झूठे बेर राम उसी भाव से खाते हैं, जिसमें लौकिक शिष्टाचार की अपेक्षा प्रेम की प्रबलता है, जहां भक्त और भगवान दोनों एक सामान है.राम की मर्यादा प्रेम का वो आधार है जिससे उत्पन विश्वास राम को उनके आचरण से डिगने नहीं देता. इसीलिए राम के व्यक्तित्व के आधार का केंद्र बिंदु निश्चित ही सीता है. प्रेम के भी दो रूप होते हैं साकार और निराकार. निराकार प्रेम कर्तव्य भाव से मुक्त होता है, परन्तु साकार प्रेम कर्तव्य भाव से बंधा होता है, क्योंकि इसकी अपनी सीमाएं होती है. सीमाओं के इसी दायरे मे वह अपने आचरण द्वारा प्रेम की दिव्यता को इस प्रकार प्रकाशित कर देता है कि वो समाज के लिए एक दृष्टांत बन जाता है. कर्मठता से राम अपने हर चरित्र को मर्यादा की परकाष्ठा पर अंकित किया उसी प्रकार उन्होनें एक राजा के रूप में राजधर्म को भी परिभाषित किया है.
राम कथा जीवन की उन सामान्य घटनाओं का एक ऐसा क्रमबद्ध विवरण है जो मानव मूल्यों की नींव को एक आधार प्रदान करती है. जिसमें शालीनता, सामर्थ्य, वीरता, कर्तव्य परायणता और बौद्धिक तर्कों का ऐसा संगम है जो मानव को उसके मूल्यों से उसका परिचय कराती नज़र आती है.
– मंगलाश्री जी
रामकथा वाचिका, अमरावती