जैन तीर्थयात्रियों ने अपनी तपस्या से ज्ञान प्राप्त कर भारत को नई उंचाईयों पर पहुंचाया
सांसद डॉ. अनिल बोंडे का कथन

* मुक्तागिरी में जैन बंधुओं का हुआ महाअधिवेशन
अमरावती /दि. 3– वीरता, एकता और तपस्या ने भारत को सुरक्षित रखा है और इसकी जडें जैन धर्म के दर्शन में निहित हैं. जैन तीर्थयात्रियों ने अपने त्याग और तपस्या से अर्जित ज्ञान के माध्यम से भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. सिद्धक्षेत्र श्री मुक्तागिरी में राज्यसभा सदस्य डॉ. अनिल बोंडे ने कहा कि, जैन धर्म के विचार और आचरण भारत को नई दिशा दे रहे हैं. इस बीच, जैन समाज ने उनके भाषण की काफी सराहना की, क्योंकि उन्होंने एक घटना का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को विराट सागर महाराज द्वारा सांकेतिक भाषण में लिखी गई एक पुस्तक भेंट करने के बाद तुरंत उनका संज्ञान लिया था.
उल्लेखनीय है कि, शनिवार 1 मार्च को श्री दिगंबर जैन महासमिति की तरफ से तीर्थक्षेत्र मुक्तागिरी में जैन बंधुओं का महाअधिवेशन आयोजित किया गया था. इस दौरान डॉ. अनिल बोंडे ने उक्त बातें कहीं. इस दौरान डॉ. वसुधा बोंडे, दिगंबर जैन महासमिति महाराष्ट्र के अध्यक्ष नितिन नखाते, श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन खंडेलवाल मंदिर कमेटी के राकेश पाटणी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मनिद्र जैन, अभय पनवेलकर, शीला दोडिया, संतोष पेंढारी, प्रवीण जैन, मिहीर गांधी, अतुल कलमकर, उल्हास क्षीरसागर, डॉ. मंजू जैन, रिचा जैन, सुनील पेंढारी, उषा उदापुरकर, आनंद जैन, अनिल जैन, दिलीप राखे, कुणाल पिंजरकर, अरविंद हनवते, हेमंत नरसिंह, नरेंद्र कासलीवाल, दिलीप सावलकर, आनंद सवाने, विनय जुनुनकर, सोनू सिंघई, देवेंद्र आग्रेकर, मनीषा परतवार सहित अन्य जैन बंधु इस अधिवेशन में भारी संख्या में मौजूद थे.
डॉ. अनिल बोंडे ने कहा कि, भारत ज्ञानसाधना का भंडार है. उन्होंने इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के किस्से का खुलासा करते हुए कहा कि, उन्होंने गृह मंत्री को विराट सागर महाराज द्वारा लिखित सांकेतिक भाषा को विकसित करने की मांग भी की है. गृहमंत्री ने इस विषय का गंभीरता से संज्ञान लिया और पांच अतिरिक्त प्रतिमा मंगवाई. उल्हास क्षीरसागर ने इसके लिए प्रयास किया. जिस ज्ञान से हम अभी तक अनभिज्ञ थे उसकी दशक सीधे गृहमंत्री द्वारा लिए जाने और उसके लिए फॉलोअप लेना संभवत: इतिहास में पहली बार ही हुआ होगा. उन्होंने आगे कहा कि, संतो की कृपा से हम सुरक्षित हैं. संत स्वयं कष्ट सहते हुए समाज की भलाई के लिए काम करते है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, वे सर्वे सुखिन: संतु की भावना को नमन करते है.