अमरावतीमहाराष्ट्र

‘साइलेंट किलर’ होता हैं कांचबिंदू

समय रहते निदान होने पर बच सकती हैं आंखों की रोशनी

अमरावती /दि.26– दबे पांव से आने वाली आंखों की बीमारी यानि कांचबिंदू (ग्लुकोमा) को लेकर सावधानी बेहद जरुरी होती है. क्योंकि इसे अपरिवर्तनीय अंधत्व का दूसरा सबसे प्रमुख कारण माना जाता है. दुनियाभर में सभी अंधत्व में से 12.13 फीसद अंधत्व कांचबिंदू की वजह से होता है. ऐसे में आंखों की रोशनी को बचाने के लिए कांचबिंदू का समय रहते निदान और इलाज होना बेहद जरुरी होता है. अन्यथा ऐसा नहीं होने वाली स्थिति में आंखों की मज्जातंतू पर तनाव आकर हमेशा के लिए आंखों की रोशनी जा सकती है.
विशेष उल्लेखनीय है कि, कांचबिंदू नामक बीमारी के लक्षण काफी सौम्य होते है. जिनका दीर्घकाल तक पता ही नहीं चलता. ऐसे में कांचबिंदू को समझने व उसका निदान करते हुए उस पर इलाज करवाने की सख्त जरुरत है. इसे लेकर जनजागृति करने हेतु 10 से 16 मार्च की कालावधि के दौरान वैश्विक कांचबिंदू सप्ताह मनाते हुए स्वास्थ्य विभाग द्वारा विशेष जनजागृति अभियान चलाया गया. जिसमें अलग-अलग स्थानों पर शिविर भी आयोजित किये गये. साथ ही जिले में विगत एक वर्ष के दौरान 4 मरीजों पर समय रहते शल्यक्रिया करते हुए उन्हें स्थायी अंधत्व से बचाया गया.
नेत्र विशेषज्ञों के मुताबिक आंखों की भीतरी हिस्से में दबाव यानि इन्स्टाऑकिलर पे्रशर बढना इसकी सबसे प्रमुख वजह होती है. लेकिन ग्लुकोमा के सभी मामलों में यही कारण नहीं होता. साथ ही आंख के भीतर दबाव बढने से संबंधित सभी मामलों में ग्लुकोमा होता ही है, ऐसा भी नहीं है. ऐसे में यह बीमारी निश्चित तौर पर क्या है और इसके होने से किसी के स्वास्थ्य पर क्या परिणाम हो सकता है. इसे समझ लेने से इस बीमारी के खतरे को घटाने में सहायता मिलती है.

* क्या हैं कांचबिंदू की बीमारी?
आंखों के पीछे मस्तिष्क तक दृश्यचिन्ह भेजने वाली मज्जातंतू होती है. जिसकी वजह से हमें देखने में सहायता होती है. जब नेत्रमणी के भीतरी हिस्से का अतिरिक्त दाब नेत्रमणी के अगले हिस्से में आकर दबाव को बढाता है, तो मज्जातंतू पर भी तनाव पडने लगता है, जो धीरे-धीरे बढता है. जिससे मज्जातंतू कमजोर होने लगती है. इसके चलते अस्थायी या स्थायी तौर पर आंखों की रोशनी खत्म हो सकती है.

* क्या हैं इलाज?
एक बार कांचबिंदू का निदान हो जाने पर कांचबिंदू के अलग-अलग प्रकारानुसार आंखों के ड्रॉप का प्रयोग करना होता है. साथ ही कांचबिंदू शल्यक्रिया या लेजर शल्यक्रिया भी करनी पडती है. इसके अलावा आंखों में नियमित तौर पर ड्रॉप डालना भी आवश्यक होता है.
* कांचबिंदू के लक्षण
मोतीयाबिंदू के ज्यादा पक जाने या उसका दबाव बढने की वजह से कांचबिंदू होता है. जिसके चलते प्रकाश उत्सर्जित करने वाले वस्तुओं के चारों ओर तेजों मंडल दिखाई देता है, आंखों से अस्पष्ट दिखाई देता है, आंखें लाल हो जाती है और आंखों में काफी दर्द भी होता है. इसके अलावा सिरदर्द, पेटदर्द, जी मचलाना व उलटी होना जैसे लक्षण भी दिखाई देते है.

* आनुवांशिकता
अभिभावकों अथवा भाई-बहनों में किसी को कांचबिंदू की बीमारी रहने पर परिवार के अन्य सदस्यों को भी कांचबिंदू की बीमारी होने की संभावना रहती है. साथ ही डायबिटीज, कम नंबर रहने वाला व्यक्ति, सिकलसेल, एनेमिया व हाई ब्लडप्रेशर सहित अधिक पका हुआ मोतियाबिंदू रहने वाले व्यक्ति को कांचबिंदू होने की संभावना रहती है.

* कैसे होता है निदान
100 फीसद मरीजों में आखिरी चरण में इस बीमारी का निदान होता है. ऐसे में 40 वर्ष की आयु के बाद प्रतिवर्ष आंखों व रैटीना की जांच करवानी चाहिए. साथ ही कोई भी संदेह होने पर आंखों से संबंधित अन्य सभी तरह की जांच करवानी चाहिए. क्योंकि योग्य समय पर निदान हो जाने वाली स्थिति में आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है.

* समय रहते निदान हो जाने पर कांचबिंदू पूरी तरह से ठीक हो सकता है. विगत एक साल के दौरान जिला सामान्य अस्पताल में 4 मरीजों पर सफलतापूर्वक कांचबिंदू की शल्यक्रिया की गई.
– डॉ. संतोष भोंडवे,
नेत्र विभाग प्रमुख,
इर्विन अस्पताल.

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