अमरावती

दूसरों के लिए अनुकरणीय रखें अपना आचरण

भक्तिधाम में पूज्य परमश्लोक स्वामी के आशीर्वचन

अमरावती/ दि. 23- घर परिवार में जिस प्रकार का बर्ताव घर के बडे लोगों द्वारा किया जाता है, उसका सीधा असर घर में रहनेवाले छोटे बच्चों पर पडता है, क्योंकि वे छोटे-छोटे बच्चे अपने से बडों का ही अनुकरण व अनुसरण करते है. ऐसे में यदि हमें सभ्य व शालीन समाज का निर्माण करना है, तो हमें चाहिए कि, हम सबसे पहले अपने आचरण को सभ्य व शालीन बनाये. साथ ही अपने खुद के आचरण को कुछ इस तरह रखने का प्रयास करे, ताकि यदि कोई हमारा अनुसरण व अनुकरण करना चाहे, तो उसे अच्छी संगत का ऐहसास हो. इसके अलावा इसका सबसे बडा फायदा यह होगा कि, अच्छे आचरण की वजह से हमें खुद अपनेे जीवन की सरगम के सातों स्वर का अर्थ समझने में आसानी होगी और हम जीवन की सभी कठिनाईयों का सामना भी आसानी से कर सकेंगे. ऐसे आशीर्वचन पूज्य परमश्लोक स्वामी ने कहे.
स्थानीय बडनेरा मार्ग पर स्थित भक्तिधाम में शनिवार को प्रमुख स्वामी महाराज शताब्दी महोत्सव निमित्त बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था व गुजराती समाज की ओर से जीवन की सरगम विषय पर विशिष्ट सभा का आयोजन किया गया था. जिसमें उपरोक्त प्रतिपादन करने के साथ ही पूज्य परमश्लोक स्वामी ने कहा कि, मनुष्य जीवन धीरे-धीरे विकसित हुआ है. करीब सौ वर्ष पहले मनुष्य जैसा था, आज वह वैसा नहीं है. बल्कि आध्ाुनिक संसाधनों के साथ वह भी विकसित हो रहा है. खुद को आध्ाुनिकता की ओर ले जा रहा है, लेकिन मनुष्य जीवन की सरगम भूल रहा है. वह अब सरगम के सात स्वर में से पहले स्वर ‘सा’ तक का महत्व भूल चुके है. जीवन की सरगम को भूलने से समस्या का निराकरण करने में भी हमें दिक्कते आ रही है. इस सरगम को ज्ञात करना है, तो हमें ईश्वर से खुद को समरूप करना होगा. सत्संग व ईश्वर नामस्मरण के साथ जब हम जरूरतमंदों के लिए कार्य करते है. तब वह महत्वपूर्ण बात कहते है, तो वह महत्वपूर्ण ही होती है.
इस समय स्मितवंदन स्वामी ने कहा कि प्रमुख स्वामी महाराज ने अपने जीवन में 40 लाख से अधिक लोगों को व्यसनमुक्त किया है. संगत अच्छी होना चाहिए, तो आप व्यसन से दूर रहेंगे. भगवान का नाम स्मरण करेंगे, तो व्यसन से दूर रहने में सहायता मिलती है. हम मानते है कि हर वस्तु का नाम निर्माण ईश्वरीय देन है. लेकिन क्या हम विष का प्राशन करते है, सिगरेट, तंबाखू जैसे पदार्थो का सेवन कर अपने शरीर को परेशानी में डालने का प्रयास क्यों करते है. यह सवाल उन्होंने उपस्थित किया. उन्होंने कहा कि, जब हम व्यसनमुक्त होेते है तो परिवार को इसका लाभ मिलता है. परिवार में खुशहाली बनी रहती है. इसलिए व्यसनमुक्त रहने का प्रयास कर सत्संग विचारों में खुद को समर्पित करने का प्रयास करना चाहिए.
कार्यक्रम की शुरूआत में बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था द्वारा प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन कार्य समेत उनके द्वारा किस प्रकार ईश्वरीय विचारों के साथ व्यसनमुक्ति को चलाकर 40 लाख से अधिक लोगों की सेवा की. उससे संबंधित चित्रफित दिखाई गई. साथ ही मनुष्य के स्वभाव के संदर्भ में भी चित्रफीत के जरिये समझाने का प्रयास किया.
कार्यक्रम में दिलीपभाई पोपट, अमृतभाई पटेल, हंसमुखभाई कारिया, किरीटभाई आडतिया, अनिलभाई पंड्या, मोहनभाई लोटिया, प्रकाशभाई आडतिया, पप्पूभाई गगलानी, किरीटभाई गढिया, हिमांशु वेद, सिमेशभाई श्रॉफ, मणिकांत दंड, अरूणभाई आडतिया, राजूभाई पोपट, जयभाई जोखंटिया, नितीनभाई गणात्रा, डॉ. नितीन सेठ, डॉ. नरेन्द्र लोहाणा, नानूभाई बागडे, हरीशभाई लाठिया, आकाशभाई जसापारा, शीलाबेन पोपट, हंसाबेन पोपट, रेखाबेन आडतिया, हंसाबेन शहा, डॉलीबेन सेठ, धाराबेन, वीरानी, वैशालीबेन पंड्या, अरविंदबेन आडतिया, वासुबेन राजा, पुष्पाबेन पटेल, भावनाबेन सेदानी समेत बडी संख्या में गुजराती समाजबंध्ाु उपस्थित थे.

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