गुरुकुंज मोझरी/ दि.11 – सभी ग्रंथो का सार गिता में है. इसमें भक्तियोग व कर्मयोग का समावेश राष्ट्रसंत व्दारा सामूदायिक प्रार्थना किया रहने से इस प्रार्थना से विश्व बंधुत्व की भावना निर्माण होने के लिए सामूदायिक प्रार्थना की आज के दौर में आवश्यकता है, इस आशय का प्रतिपादन कैलाश दुरतकर ने किया.
गुरुकुंज आश्रम में राष्ट्रसंत के 54 वें पुण्यतिथि महोत्सव के सामूदायिक प्रार्थना पर कैलाश दुरतकर ने रविवार की शाम सामृूदायिक प्रार्थना के बाद चिंतन प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि, समूहों व्दारा यदि सामूदायिक प्रार्थना की गई तो, अमरपदा के व्दारा उनके लिए खोले जा सकते है. कोजागिरी पूर्णिमा में यही यह पुण्यतिथि महोत्सव आता रहने से श्रद्धालुओं को शब्दबल की कोजागिरी इस कालावधि में मिलती है. सामूदायिक प्रार्थना की निर्मिती राष्ट्रसंत व्दारा लिखि गई ग्राम ग्रंथ के पहले की गई रही तो भी राष्ट्रसंत ग्रामगीता में प्रार्थना पर दो अध्याय लिखे है. प्रार्थना का मंगल चरण आठ अष्ट का है. इसमें से तीन तत्व आये है, ऐसा भी उन्होंने कहा. मंगलवार 11 अक्तूबर को सुबह 5.30 बजे से विविध कार्यक्रम हो रहे है. जिसके तहत सुबह 7 से 8 बजे तक योगासन व प्राणायाम, सुबह 8 से 9 बजे तक ग्रामगीता प्रवचन, 10 से 11 बजे तक राज्यस्तरीय किर्तन सम्मेलन का सामपन व पुरस्कार वितरण हुआ. पश्चात सुबह 11 से शाम 5 बजे तक अंतर महाविद्यालयीन वक्तृत्व स्पर्धा शाम 6 से 7 बजे तक सामूदायिक प्रार्थना व चिंतन के बाद खंजरी भजन और रात 8.15 से 9.30 बजे तक महफिल स्वरों की व रात 9.30 से 10 बजे तक जानकी श्री का किर्तन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था.