अमरावती

जानिए आत्मसाक्षात्कार का रहस्य सहजयोग द्वारा

अमरावती/दि. 28– ‘हे मित्र यह शरीर ईश्वर की वीणा है’ – कबीर अपनी तार रहित वीणा बजाओ एक जन सूक्ति ‘यह शरीर अयोध्या नगरी है, इसमें नौ द्वार हैं तथा हर जगह नाड़ियां हैं, तथा प्राण इनके द्वारा कार्य करता है….’ यह सारे वचन सहजयोग की बात कर रहे हैं. प. पू. श्री माताजी प्रणित सहजयोग ध्यान अपने अंदर स्थित ऋतंभरा प्रज्ञा को कैसे जागृत किया जाये इसका वास्तविकीकरण है.
सरल शब्दों में कहो तो अनुभूति जन्य ज्ञान है. प. पू. श्री माताजी कहते हैं, जब माता के गर्भ मे भ्रूण दो से तीन माह का होता है तो चेतना की किरणों का पुंज मस्तिष्क द्वारा ( सर्वव्यापी मूल ऊर्जा से निकलकर) अंदर जाकर स्नायु तंत्र के चार पहलू वाली नाड़ियों में प्रत्यावर्तित होता है. तालू भाग पर गिरा हुआ प्रकाश पुंज उसे केन्द्र में भेद कर सीधे रीढ़ के अंदर गूदे (चशर्वीश्रश्रर जलश्रेपसरींर) में सुषुम्ना नाड़ी के द्वारा पहुंचता है. इस संबंध में ऐतरेय उपनिषद के पद 11 व 12 में श्री शंकराचार्य जी कहते हैं, ईश्वर की चेतना शरीर मे सिर के उच्च भाग, ’सिर के मुकुट’ से प्रवेश करती है. ऊर्जा, परानुकंपी तंत्रिका तंत्र को प्रकट करने के पश्चात, रीढ़ की हड्डी में मूलाधार पर स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में साढ़े तीन कुंडल रूप में स्थित हो जाती है. यह अवशेष मूल ऊर्जा, पारम्परिक रूप से ’कुंडलिनी’ के नाम से जानी जाती है. जब कुंडलिनी मस्तिष्क के शीर्ष तालूवाले भाग ब्रह्मरंध्र को भेदती है, तब प.पू. श्री माताजी इसे ईश्वर द्वारा बाप्तिस्मा करना कहती हैं. भौतिक स्तर पर चैतन्य लहरियों का महसूस होना मध्य तंत्रिका तंत्र के आध्यात्मिक चेतना के मिलन को दर्शाता है. इस प्रकार व्यक्तिगत आत्मा का संबंध सृष्टि के चेतन, जिसे ब्रम्हांड का अचेतन (परमात्मा) कहते हैं से होता है. यही ब्रम्हांडीय अचेतन, विराट का मस्तिष्क है. हमें अपने सभी कार्यों में मात्र अचेतन के प्रति जागृत होना है- यही अनुशासन का मार्ग है. दूसरा अन्य कोई रास्ता नहीं है. इस प्रकार हम जानते हैं कि जब अचेतन से साक्षात्कार हो जाता है तो दूसरी चीजें कष्ट देना बंद कर देती हैं. निर्विचार चेतना प्राप्ति, सृष्टि के अचेतन में लीन होने की प्रथम सीढ़ी है. सहजयोग ध्यान के माध्यम से निर्विचार अवस्था प्राप्त करना सहज साध्य है. प. पू.श्री माताजी की प्रतिमा के सामने बैठकर, अपने दोनो हाथ फैलाकर केवल इतना कहिये, श्रीमाताजी कृपावंत होकर हमें हमारा आत्मसाक्षात्कार, बाप्तिस्मा दीजिये, दो मिनट आंखें बंद कर अपने तालु भाग से निकलते हुए, चैतन्य (ठंडी हवा) की अनुभूति कीजिये.
सहजयोग की अधिक जानकारी के लिए टोल फ्री नंबर 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट ीरहरक्षरूेसर.ेीस.ळप पर देख सकते हैं. सहजयोग पूर्णतया नि:शुल्क ध्यान पद्धति है.

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