अमरावतीमहाराष्ट्र

 हेमाडपंथी शैली से साकार कोंडेश्वर मंदिर

महाशिवरात्रि पर रहती है शिव भक्तों की भारी भीड

* मंदिर की शिल्पकला करती है श्रद्धालुओं को आकर्षित
अमरावती/दि.08– अमरावती शहर से 14 किलोमीटर दूरी पर स्थित बडनेरा के पास के पडाडियों के बीच बसें पौराणिक महत्व के हेमाडपंथी कोंडेश्वर मंदिर का शिव भक्तों व नागरिकों में अलग महत्व है. काले पत्थरों पर हाथी की शिल्पकला, एक सिर के दो शरीर तथा कुछ स्थानों पर दो सिर वाले एक शरीर जैसे कलात्मक शिल्प यहां आनेवाले भक्तों को आकर्षित करते है. इस पौराणिक मंदिर के बाहरी क्षेत्र में कैलाश टेकडी सहित हराभरा वातावरण है. नंदी राजा के पास के परिसर में तालाब, भक्ती का कलात्मक रुप है. महाशिवरात्रि के दिन यहां भक्तों की भारी भीड रहती है.

इस मंदिर का पौराणिक इतिहास करीबन 5 हजार वर्ष पूर्व का बताया जाता है. महाशिवरात्रि निमित्त यहां इस वर्ष जोरदार तैयारी की गई है. यह विदर्भ प्रदेश राजा भरत के भाई को मिला. काशी प्रदेश के ब्रह्मव्रता के मूल निवासी रहे विदर्भ के राजा काशी के भगवान विश्वेश्वर के भक्त थे. विदर्भ के राजा ने अपने राज्य के तपस्वी ऋषि कौंडण्य की विनंती पर इस परिसर में शिवलिंग की स्थापना की. मंदिर के सामने के निर्माण के बाद वह कोंडेश्वर मंदिर के रुप में पहचाना जाने लगा. यह मंदिर हेमाडपंथी रचना के मुताबिक राज्य की निधि से यादव राज्य के प्रमुख हेमाद्रीपंत द्वारा निर्मित किए जाने की बात मंदिर के इतिहास में दर्ज है.

* मंदिर की उंचाई 75 फूट
यादव काल के बाद औरंगजेब की सत्ता आई. उस समय इस क्षेत्र को भी अनदेखी का सामना करना पडा था. पश्चात अमरावती सहित संपूर्ण परिसर भोसले के कब्जे में आया. इस कारण इस परिसर को फिर सम्मान स्थान मिला. माधवराव पेशवा के कार्याकाल में इस क्षेत्र में धार्मिक उपक्रम काफी बढे. पहले इस मंदिर के बाहर का क्षेत्र 12 फूट उंचा था. नुतनीकरण के बाद उसी काले पत्थर का इस्तेमाल कर उंचाई 75 फूट की गई. प्रयागराज, ओंकारेश्वर के अनेक ऋषिमुनी, वेदशास्त्र के अभ्यासक, ब्राह्मण, संत और शिवभक्त इस मंदिर परिसर में 12 ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए मुक्काम करते है.

* भक्तों का श्रद्धास्थान
समय बितने के बाद यह परिसर भक्तगणों का श्रद्धास्थान बन गया. विदर्भ के कुछ नामचीन परिवार का यह पारिवारिक दिव्य स्थान माना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में रही शिवलिंग पुरी तरह पानी से भरने के लिए अनेक प्रयास किए गए. यहां पानी का प्रवाह लगातार रहने के बावजूद मंदिर में रही शिवलिंग कभी पानी में पूरी तरह नहीं डूबती. गर्भ से पानी बाहर न जाने पूरा ध्यान रखा जाता है. गर्भगृह पूरे चुने का बना हुआ है. फिर भी हजारो लीटर पानी जाता कहां है, यह रहस्य अभी भी कायम है. इस कारण यह जागरुक देवस्थान माना जाता है. मन्नत पूर्ण होने के बाद अनेक श्रद्धालू दर्शन के लिए यहां आते है. गर्भगृह में 12 ज्योर्तिलिंग की मूर्ति बैठाई गई है. मंदिर के गर्भगृह में उतरने के पूर्व एक बडा नंदी वहां बैठा है. उसकी पूजा करने की परंपरा है. यह नंदी जैसे भगवान शिवजी की तपस्या करता हुआ दिखाई देता है. इस परिसर में एक पौराणिक गणेश मंदिर भी है.

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