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कुलाकसा ने उठाया मेलघाट की काया पलट का बीडा

अध्यक्ष एड. उदय देशमुख ने बताई 3 सूत्री

* अमरावती मंडल से पदाधिकारी मुखातिब
* जंगल, जंगली जानवर और मानव तीनों की सुरक्षा महत्वपूर्ण
अमरावती/दि.27- प्रकृति की रक्षा हम सभी का कर्तव्य है. उसमें भी वर्तमान परिस्थितियों में सृष्टी का संवर्धन सभी कोणो से आवश्यक हो गया है. अन्यथा स्थिती इतनी बुरी हो सकती है कि मानव जाती खतरे में पड सकती है. अतः कुलाकसा के माध्यम से गत कुछ वर्षो से हम लोग मेलघाट में वनों, वन्य पशुओं और जनजातीय लोगों के संरक्षण हेतु विविध रुप से प्रयासरत है. दुरगामी परिणामों के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की सहायता लेकर प्रभावी और स्थायी हल का प्रयत्न रहने की जानकारी कुलाकसा फाऊंडेशन के अध्यक्ष एड. उदय देशमुख ने दी. वे सोमवार शाम अपने निवास स्थान से मंडल न्यूज से बातचीत कर रहे थे. इस समय फाउंडेशन के उनके सहयोगी और सेवा निवृत्त फॉरेस्ट ऑफिसर संजय जगताप, राज्य सहकारी बैेंक के अधिकारी रह चुके राजेन्द्र पात्रे और एड. देवदत्त गावंडे भी उपस्थित थे. इन पदाधिकारियों ने भी संस्था के उद्देश्य और कार्यो के बारे में विस्तृत जानकारी दी. संस्था का उद्देश्य वनों के संरक्षण के साथ-साथ मेलघाट के लोगों की पानी की बडी समस्या दूर करना है.
शिकारियों के केसेस से शुरूआत
अध्यक्ष एड. देशमुख ने बताया कि वनों और जंगली जानवरों के बचाव के बारे में उनकी सोच उस समय प्रगल्भ हुई जब वे शिकारियों से संबंधित मुकदमों के कारण वनअधिकारियों के संपर्क में आए. उन्हें अहेसास हुआ कि वन और वन्यजीव सृष्टी की सुरक्षा हेतु कितने महत्वपूर्ण हैं. एड. देशमुख ने बताया कि सरकारी वकील के रुप में उन्होंने पिछले दशक भर में न केवल वन विभाग की ओर से अनेक मुकदमें लडे. बल्कि दर्जनों शिकारियों को सजा दिलवाकर सलाखों के पीछे पहुंचाया. इसी के साथ उनका फॉरेस्ट ऑफिसर्स से संपर्क बढा. वे मेलघाट और वहां की बाघ परियोजना के बारे में विचार करने लगे.

साथियों को जोडा, नाम का इतिहास
एड. देशमुख ने मंडल न्यूज के लक्ष्मीकांत खंडेलवाल से बातचीत में बताया कि अपने मेलघाट के जंगलों की धरोहर की ओर उनका ध्यान केंद्रीत हुआ. उन्होंने चिखलदरा में ही अपना एक घर भी खरीदा. जंगल और जंगली जानवरों के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन हेतु अपनी समान विचारधारा के लोगों को जोडा. इसी कडी में पात्रे, गावंडे, जगताप और अन्य को जोडा. सभी ने समस्या का सर्वप्रथम अध्ययन किया. उसकी योजनाबध्द रणनीति बनाई. उसी आधार पर काम शुरू किया. तब प्रश्न उठा कि अपने संगठन एनजीओ को क्या नाम देना चाहिए. कोरकू भाषा में बाघ को कुसा कहते हैं एवं जमील सॉइल को कुसा कहा जाता है. मेलघाट में एक जगह का नाम भी कोलकास है. अतः कुलाकसा फाऊंडेशन नाम रखकर एनजीओ की स्थापना हुई.
वर्ष में दो दर्जन से अधिक वर्कशॉप
कुलाकसा ने लोगों को जंगल और जीवों को बचाने हेतु शिकार रोकने एवं वनभूमि बढाने की दिशा में जागरुकता कार्यशालाएं लेना प्रारंभ किया. गत अनेक वर्षो से प्रदेश के विभिन्न भागों में ऐसी कार्यशालाए हो चुकी है. जिनमें कानून नियमों की जानकारी से लेकर सभी रुप में वन और वन्य जीवों को बचाने का उनका प्रयास बताया जाता है. लोगों को क्या और कैसे योगदान करना है, वन अधिकारियों और कर्मचारियों को भी कुलाकसा कानून-कायदों की जानकारी से अपडेट करती है.

पानी की समस्या बढी
स्वयं विदर्भ यूथ वेलफेयर सोसा. के उपाध्यक्ष रहने से संगठन और सामाजिक कार्यो का अनुभव एड. देशमुख के साथ रहा. जो कुलाकसा एनजीओ में उपयोगी रहा. एड. देशमुख के साथ मौजूद सेवानिवत्त वन संरक्षक जगताप ने बताया कि मेलघाट में वे सेवा दे चुके हैं. अतः उन्हें इस क्षेत्र में भारी बारिश के बावजूद 8 महीने तक पानी की समस्या के बारे में पता है. मेलघाट के चट्टानों में पानी जल्दी सोख लिया जाता है. इसलिए कितनी भी बारिश हो वहां बारिश का सीजन बीतने के कुछ समय बाद लोगों को जल संकट से जूझना पडता है. कुलाकसा इसी बडी समस्या का स्थायी हल खोजने प्रयासरत है. बकायदा तकनीकी सहायता ली जा रही है. इसके लिए संस्थाने मेघे इंजि. कॉलेज के साथ अनुबंध भी किया है.
अमरावती में 49 इमारतों में रेनवाटर हार्वेस्ट
जगताप के अनुसार बारिश का पानी का संग्रह और उसका पुनः उपयोग अत्यंत आवश्यक है. इसलिए कुलाकसा में रेनवाटर हार्वेस्टींग पर जोर दिया है. अल्पावधी में 49 इमारतों में यह तकनीक अपनाई गई है. आगे भी बनने वाले लगभग सभी उंचे भवनों में रेनवाटर हार्वेस्टींग का प्रयत्न है. मेलघाट के दुर्गम भागों में भी कुलाकसा वहां के लोगों में जागरुकता लाकर इसे अपनाने के लिए प्रेरित करेंगी. जल संग्रह का नियोजन सिखाया जाएगा. एड. देशमुख और जगताप ने बताया कि सरकार को भी चाहिए कि इस तरह के प्रकल्पों को सहायता करें और अपनाएं. तथापि फिलहाल एनजीओ ने कोई प्रस्ताव नहीं दिया है.
सोष खड्डे लाएंगे परिवर्तन
बैंकर पात्रे और एड. गावंडे ने बताया कि तकनीकी रुप से तैयार सोष खड्डे मेलघाट के गांव-गांव की जल समस्या को हल कर सकते हैं. इस लिए रिसर्च का आश्रय लेकर वहां ऐसे सोष खड्डे बनाए जाएंगे जिनका पानी अगली बारिश तक मेलघाट के लोगों की प्यास बुझाएगा. यह भागीरथ कार्य है. इसलिए इसमें समय लगेगा. किंतु समस्या का स्थायी समाधान होने का दावा कुलाकसा फाऊंडेशन के इन समर्पित कर्ताधर्ताओं ने दिया. उन्होंने दावा किया कि जल की समस्या का हल होते ही मेलघाट में बडा परिवर्तन हो जाएगा. वहां आज काम के लिए होता पलायन भी रूक जाएगा. मेलघाट की अपनी उपज बढेगी. वहां का वातावरण सभी प्रकार की खेती के लिए उपयोगी है. अतः खेती की उपज बढाना आवश्यक है. उस पर बल दिया जाएगा.
चिखलदरा की खूबसूरती बचाना है
एड. उदय देशमुख ने बताया कि चिखलदरा में अंग्रेजों के दौर में उत्तर भारत से देवदार और अन्य वृक्षों को लाकर यहां लगाया गया था. यह वृक्ष आज बडे उंचे पेड बने हैं. चिखलदरा के नैसर्गिक सौंदर्य में बढोत्तरी करते हैं. आज देखने में आया है कि इन पेडों की उम्र हो चली है. इस दिशा में भी कुलाकसा क्षेत्र के विशेषज्ञों को साथ लेकर काम करेंगी. चिखलदरा का प्राकृतिक सौंदर्य बनाए रखना सभी के लिए आवश्यक और प्राथमिकता है.

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