अमरावती

शहर का सबसे पुराना मंडल है लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव

107 वर्षों का है शानदार इतिहास

प्रतिवर्ष एक से बढकर एक झांकियां होती है साकार
इस वर्ष बेहतरीन डेकोरेशन के साथ फूलों से बनेगा सेटअप्
अमरावती-दि.25 स्थानीय अंबागेट परिसर के भीतर विठ्ठल मंदिर के सामने लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव मंडल द्वारा प्रतिवर्ष बडी धूमधाम के साथ सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाया जाता है और यह परंपरा विगत 107 वर्षों से चली आ रही है. इस गणेशोत्सव मंडल की स्थापना लोकमान्य तिलक के विचारों से प्रेरित होकर स्वाधीनता संग्राम सेनानी व कुष्ठ महर्षी पद्मश्री शिवाजीराव उर्फ दाजीसाहेब पटवर्धन द्वारा वर्ष 1916 में की गई थी. ऐसे में लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव मंडल को अमरावती शहर का सबसे पुराना व वरिष्ठ गणेशोत्सव मंडल कहा जा सकता है.
प्रतिवर्ष लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव मंडल द्वारा एक से बढकर एक झांकियां साकार की जाती है और बडी ही धूमधाम के साथ गणेशोत्सव का पर्व मनाया जाता है. जिसके तहत इस वर्ष लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव मंडल की कार्यकारिणी ने गणेश जी के मंडप को शादी के गेटअप् की तरह सजाने का निर्णय लिया है. जिसकी फुलों के जरिये आकर्षक ढंग से साज-सज्जा की जायेगी. जिसके तहत पंडाल के एक छोर पर गणेश प्रतिमा स्थापित होगी. वही दूसरे छोर पर भव्य प्रवेश द्वारा रहेगा. जिसके बीच में एक अति विशाल रंग-बिरंगी पानी का फव्वारा लगाया जायेगा. इस वर्ष सेटअप और डेकोरेशन का काम पांडूरंग झेले, लाईटिंग व साउंड सिस्टीम का काम नईम भाई तथा कलरफूल फाउंटेन का काम रियाजभाई द्वारा किया जा रहा है. साथ ही चिन्नोरे मूर्तिकार द्वारा प्लास्टर ऑफ पैरिस तथा शाडू मिट्टी से करीब चार फीट उंची आकर्षक गणेश प्रतिमा को साकार किया जा रहा है.

ऐसी है लक्ष्मीकांत गणेश मंडल की कार्यकारिणी
अध्यक्ष – विलास इंगोले, उपाध्यक्ष – राजू भेले, कार्याध्यक्ष – राजू याउल, कोषाध्यक्ष – मनोज हिवसे, सचिव – शेखर ताकपिरे व जीतेंद्र भेले, सहसचिव – सौरभ याउल, उमेश शिष्टे व मनीष भूतडा.

 हाडपाक्या व खुनार्‍या गणपति के नाम से है प्रसिध्द
लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव मंडल में स्थापित गणेशजी को खुनार्‍या व हाडपाक्या भी कहा जाता है. जानकारी के मुताबिक वर्ष 1950-51 के आसपास गणेशोत्सव पर्व के दौरान ही लक्ष्मीकांत मंडल अंतर्गत स्थापित गणेश प्रतिमा के सामने किसी व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी. जिसका रक्त उछलकर गणेश प्रतिमा पर भी जा गिरा था. हत्या की इस वारदात के चलते इस मंडल को लोग खुनार्‍या गणपति मंडल भी कहा करते थे. वही हत्या की इस वारदात के बाद दो समुदायोें के बीच दंगे हुए और पुलिस ने कर्फ्यू का ऐलान किया. जिसके चलते गेट के भीतर स्थित सभी मंडलों ने किसी तरह छिपते-छिपाते अपनी-अपनी गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन तो कर दिया, लेकिन अंबागेट से बिल्कुल सटे रहने के कारण लक्ष्मीकांत मंडल को हाडपक यानी अखरपख (श्राध्द पक्ष) के दौरान अपनी गणेश मूर्ति को विसर्जित करना पडा. जबकि परंपरा के अनुरूप श्राध्द पक्ष शुरू होने से पहले ही गणेश मूर्ति का विसर्जन करना होता है. उस एक घटना के बाद से लेकर अब तक लक्ष्मीकांत गणेशोत्सव मंडल में स्थापित होनेवाली गणेश प्रतिमा का विसर्जन हाडपख लगने के बाद ही किया जाता है. ऐसे में यहां के गणपती को हाडपक्या गणपती भी कहा जाता है.

क्रीडा क्षेत्र में योगदान है उल्लेखनीय
श्री लक्ष्मीकांत क्रीडा, कला व सांस्कृतिक मंडल अमरावती शहर का सबसे नामांकित मंडल है. जो विगत कई वर्षों से क्रीडा, सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में अपना उल्लेखनीय योगदान देता आया है तथा मंडल से निकली टीमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलतरण, कबड्डी, वॉटरपोलो, कुश्ती, मलखांब व जिम्नॅस्टिक जैसे खेलोें में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी है. साथ ही मंडल द्वारा नियमित रूप से विदर्भ स्तरीय कबड्डी स्पर्धा का आयोजन किया जाता है. इसके अलावा महिलाओं व बच्चों के मनोरंजन एवं व्यक्तित्व विकास के लिए कई तरह की स्पर्धाओं का आयोजन करने के साथ-साथ कई धार्मिक व सामाजिक कार्य भी किये जाते है.

107 वर्षों की ऐतिहासिक परंपरा व विरासत रखनेवाले लक्ष्मीकांत मंडल द्वारा हमेशा से ही बडी धूमधाम के साथ गणेशोत्सव का पर्व मनाया जाता रहा है और एक से बढकर एक झांकियां साकार की जाती रही है. जिसमें शताब्दी वर्ष पर साकार की गई राम दरबार की झांकी सबसे अविस्मरणीय रही. इसके अलावा सबसे खास बात यह है कि, गेट के भीतर यानी पुरानी अमरावती में स्थित सभी गणेशोत्सव मंडलों द्वारा एक-दूसरे के साथ आपस में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं की जाती. बल्कि सभी मंडल एक-दूसरे का साथ देते हुए मिल-जुलकर गणेशोत्सव मनाते है.जिसकी वजह से गेट के भीतर गणेशोत्सव का कुछ अलग ही आलम रहता है.
– मनोज भेले
उपाध्यक्ष, लक्ष्मीकांत मंडल

Related Articles

Back to top button