* बस्तियों में कर रहे घुसपैठ
अमरावती /दि.22– बिल्ली प्रजाति के बाघ पश्चात सर्वाधिक खूंखार माने जाते तेंदूओं की महाराष्ट्र में संख्या सतत बढ रही है. अंदाज के अनुसार राज्य में 4800 से अधिक तेंदूए हो गये है. जंगल महकमे ने भी इस संख्या से सहमति जतायी है. किंतु तेंदूए लगातार मानवीय बस्तियों में घुस रहे हैं. वन महकमे से उनका नियंत्रण काफी प्रमाण में कम हो गया है.
* प्रदेश में 27 उपजाति
तेंदूआ स्तन प्राणी है. वह बडा चपल होता है. उसकी 27 उपजातियां है. एशिया में 13 प्रकार के तेंदूए पाये जाते है. अफ्रीका उपमहाद्वीप में 14 प्रकार के तेंदूए है. वहीं 6 प्रजातियां विलुप्त हो गई है. महाराष्ट्र में तेंदूओं की संख्या लगातार बढ रही है. 18 से 24 माह में मादा तेंदूआ पिल्लों को जन्म देने के लिए तैयार हो जाती है. उसका गर्भवहनकाल 99 से 105 दिनों का रहता है. इसलिए तेजी से तेंदूओं की संख्या बढ रही है.
* 15 बचाव दल अर्जंट चाहिए
तेंदूए और अन्य जंगली पशुओं की बढती संख्या से मानव-तेंदूआ संघर्ष देखने मिल रहा है. बचाव दल की कमी महसूस की जा रही है. अभी भी 15 बचाव दल की आवश्यकता वन महकमे को है. हालांकि कुछ अरसा पहले यवतमाल में बचाव दल बनाये गये थे. लेकिन उसके लिए अलग से स्टाफ नहीं दिया गया.
* 2 वर्षों में बढे 500 तेंदूए
वन अधिकारियों और जानकारों का कहना है कि, महाराष्ट्र के प्रत्येक जिले में तेंदूए मिल रहे है. गत दो वर्षों मेें 500 तेंदूए बढ जाने की बात भी अधिकारियों ने बतायी और कहा कि, विदर्भ में अच्छी मात्रा में जंगल होने से यहां अधिक संख्या में तेंदूए है. वहीं पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाडा मिलाकर 2 हजार तेंदूए रहने की जानकारी वनविभाग ने दी. विभाग ने बताया कि, तेंदूए की दहशत बढ रही है. जिससे महकमे के सामने भी चुनौती है.
* बस्तियों में घुस रहे
तेंदूए को जंगलों में खाद्य नहीं मिलने पर वे पानी और भोजन की तलाश में बस्तियों का रुख कर रहे है. अमरावती शहर के सीमावर्ती भागों में दर्जनों तेंदूए होने की जानकारी एक अधिकारी ने दी. उन्होंने बताया कि, तेंदूए की सरप्राइज विजिट लोगों की जान पर बन आयी है. तेंदूए पॉश बस्तियों से लेकर खेतों तक में सहजता से विचरण कर रहे हैं.
* मेलघाट के वन संरक्षक का कहना
मेलघाट के वन संरक्षक आदर्श रेड्डी ने कहा कि, तेंदूओं की संख्या बढना प्रकृति का तालमेल रखने के लिए बहुत अच्छी बात है. खेती में तेंदूए का प्रजनन बडे प्रमाण में हो रहा है. प्रदेश के कई भागों में तो तेंदूए का संचार अब हमेशा की बात बन गई है. संख्या बढने के कारण ही वे जंगलों से बाहर आ रहे हैं.