जीवन नौका के नाविक हैं गुुरु
* रुक्मिणीपीठ कौंडण्यपुर में गुरुपूर्णिमा उत्सव
अमरावती/दि.4- अनादिकाल से मानव जीवन में गुरु का स्थान अनन्य साधारण रहा है. गुरु जीवन उद्धारक होते हैं. मानवी जीवन नौका के कुशल नाविक रहते हैं. गुरु के कारण जीवन नौका भवसागर समर्थ रुप से पार कर सकती हैं. यह उद्गार अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु रामानंदचार्य स्वामी श्री राजराजेश्वरानंदाचार्य जी समर्थ माउली सरकार ने रुक्मिणी पीठ कौंडण्यपुर के गुरुपूर्णिमा उत्सव में व्यक्त किए.
श्री पीठ अंबिकापुर व्दारा भव्य उत्सव गुरुपूर्णिमा के अवसर पर रखा गया था. भव्य जलरोधकर पंडाल आच्छादित किया गया था. रविवार को श्री नामजप और सुंदरकांड गायन कार्यक्रम रखा गया.
सोमवार को सवेरे 6 से 9 बजे तक श्री माता रुक्मिणी की शोडषोपचार पूजा हुई. उपरांत 11 बजे तक जीतू पाखरे का भक्ति संगीत का सुश्राव्य कार्यक्रम हुआ. दोपहर 11.30 बजे मान्यवरों के हस्ते स्वामी श्री राजराजेश्वरानंदाचार्य जी का पाद्य पूजन संपन्न हुआ. इस समय विधायक यशोमति ठाकुर की माताजी श्रीमती पुष्पलता ठाकुर, आर्वी के विधायक दादासाहब केचे उपस्थित थे. पाद्यपूजन पश्चात स्वामीजी का उद्बोधन हुआ.
उन्होंने कहा कि, भक्ति नाना प्रकार से होती है, किंतु समर्पण भक्ति महत्वपूर्ण है. हर किसी का प्रयत्न स्वर्ग प्राप्ति हेतु है. किंतु स्वर्ग से बढकर परमेश्वर प्राप्ति है. समर्पण भक्ति से हम परमेश्वर प्राप्त कर सकते हैं. गुुरु कुशल स्वर्णकार जैसा होता है. जिस प्रकार स्वर्णकार सोने को ठोकपीटकर, गर्म कर सुुंदर आभूषण में रुपांतरित करता हैं, ऐसे ही गुरु भी नादान को सद्भक्त और सद्सेवक में बदल देते हैं. गुरु के हमारी श्रद्धा हमारी उन्नति करती हैं. स्वामीजी ने चंद्र बुद्धिस्तंभ, सामाजिक स्तंभ, औद्योगिक स्तंभ, निर्वाण स्तंभ आदि स्वनिर्मित पंचस्तंभ की संकल्पना विस्तृत स्पष्ट की. अज्ञान से मुक्ति असामाजिक तत्वों से मुक्ति, कौशल्य प्राप्ति आदि बातें मानवी जीवन में महत्वपूर्ण रहने का प्रतिपादन उन्होंने किया.
उपरांत दर्शन व गुरुदीक्षा समारोह हुआ. बडी संख्या में आए भाविकों ने स्वामी जी के दर्शन किए. प्रस्तावना पीठ के सचिव विजय झटाले ने रखी. संचालन मंदा नांदूरकर ने किया.