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पारिवारिक विवाद में शराब का लाइसेंस रद्द नहीं होता

अमरावती के प्रकरण में हाइकोर्ट का फैसला

* कलेक्टर का आदेश किया रद्द
नागपुर/दि.28- बंबई उच्च न्यायालय का नागपुर खंडपीठ ने अमरावती के जिलाधिकारी द्वारा गत 6 मई को शराब विक्री का लाइसेंस पारिवारिक विवाद के कारण रद्द करने का फैसला उलट दिया. कोर्ट ने कहा कि कुटूंब कलह के कारण परवाना रद्द नहीं किया जा सकता. क्योंकि इससे सरकार के राजस्व का नुकसान होता है. न्यायमूर्ति मनीष पितले ने महाराष्ट्र नशाबंदी कानून 1949 और महाराष्ट्र देसी शराब नियम 1973 के प्रावधानों के तहत सीएल-3 का परवाना रद्द करने के निर्णय को गलत बताया. पितले ने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में दिशानिर्देश दिये जा सकते हैं. मगर बरसों तक परवाना रद्द करने की कार्रवाई समस्या का हल नहीं.
अमरावती की एल. जायस्वाल के नाम पर यह परवाना था. फिर उनके द्वारा बेटा गोद लेने से एम. जायस्वाल के नाम पर स्थानांतरित किया गया. एम. जायस्वाल ने अपनी पत्नी का नाम परवाना में जोड़ा. दिसंबर 2014 में भागीदारी फर्म के रुप में स्थापित होने पर कलेक्टर ने दंपत्ति को सीएल-3 परवाना के भागीदार के रुप में अनुमति दी. किन्तु जायस्वाल के 26 दिसंबर 2019 को गुजर जाने के बाद उनकी पत्नी और दोनों बेटों के बीच कलह शुरु हो गई. उनके एक बेटे ने सिविल मामला दायर किया. अदालत ने उसे शराब दूकान के व्यवहार में दखल देने से रोका. एक बेटे ने एक्साइज अधीक्षक के पास शिकायत कर परवाना नवीनीकरण नहीं करने की मांग उठाई. उनकी मां ने बेटों की मांग पर आपत्ति जताई. जिलाधिकारी ने बेटों की याचिका मंजूर करते हुए सीएल-3 परवाना में उनके नाम जोड़ने की अनुमति दी. परवाना नवीनीकरण के समय याचिकाकर्ता के बेटे ने आपत्ति दर्ज कराई. कलेक्टर ने उनका परवाना गत 6 मई को निरस्त कर दिया था. याचिकाकर्ता ने उस निर्णय को अपने वकील एम.एम. अग्निहोत्री के माध्यम से हाइकोर्ट में चुनौती दी थी.

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