अमरावती

भगवान महावीर जन्म कल्यानक महोत्सव मनाया

सयंम आज या अभी?

* अंबापेठ जैन उपाश्रय में परमसमाधिजी महासतिजी आदी ठाणा 3 के बोधवचन
अमरावती/ दि.14 – श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ अंबापेठ अमरावती के प्रांगण में राष्ट्रसंत परम गुरुदेव श्री नम्रमुनी महाराज साहेब के आज्ञानुवर्ती पूज्यश्री परम समाधिजी महासतिजी, पूज्यश्री परम ऋजुताजी महासतिजी, पूज्यश्री परम विभुतिजी महासतिजी के पावन सानिध्य में आयंबिल ओली पर्व के सप्तम दिन संयम आज या अभी इस विषय पर परम महासतिजी ने उपस्थितों को दिव्य आलोैकिक अनुभूति करवाई. आज इस आत्मिक उर्जा से सराबोर प्रवचन की शुरुआत झंकझोर देने वाले प्रश्न से परम महासतिजी व्दारा की गई.
उन्होंने प्रश्न किया कि, संयम सुख का मार्ग है या दुख का? महासतिजी ने समझाया संयम ना तो सुख का मार्ग है ना तो दुख का मार्ग वह तो निराबाध आनंद का मार्ग है. वस्तुत: हमें सुख की अनुभूति तब तक होती है जब तक दुख का ऐहसान हो. जैसे पानी में सुख की अनुभूति तब तक होती है जब तक हमें प्यास होती है. भोजन में सुख की अनुभ्ाूति तब तक होती है जब तक हमें भुख होती है. हमारी सारी सुख की मान्यताएं केवल दुख का अभाव मात्र है, पर आनंद का अनुभव पूर्णत: भिन्न है. रह व्यक्ति सुख पाने के लिए दूसरे व्यक्ति और वस्तुओं पर आश्रीत है. पर आनंद पाने के लिए उसे स्वयं के भीतर उतरना होता है. सारी बाहर की चिजो से नजरे मोडकर रहना यही वास्तव में संयम है. आज के संयम की भावना भविष्य में बनेगी भावना इस तरह संयम की झलक पाने हेतु महासतिजी ने एक प्रयोग करवाया. इस समय सभी भक्तों की आंखों पर पट्टी बांधी गई. इसके बाद सभी को भाव से, कल्पना से संयम यात्रा परम महासतिजी ने अपने सुमधुर शब्दों से करवायी.
हम गुरु की शरण में जा रहे है और उनके आशीर्वाद से हम संयम वस्त्र धारन कर रहे है और उनके हाथों से हम रजोहरन प्राप्त हो रहा है? यहां बतला दे कि जैन दर्शन अहिंसा के सिध्दांत पर आधारित है और अहिंसा को ही परम धर्म मानता है. रजोहरन तिर्थकर परमात्मा व्दारा प्रदत्त अमुल्य उपकरण है. जिससे लकडी के गोल दंडे और उन से बनाया जाता है. यह अमुल्य उपक्रम से छोटे-छोटे जीवजंतु के प्राणों की रक्षा करने के लिए साधु, साध्वीजी हमेशा अपने साथ रखते है. श्रावक और श्राविकाएं उसका लघु रुप गुच्छा अपने साथ रखते है. सृष्टि के सभी जीवों से मैत्री प्रभू महावीर का परमबोध है. जैन धर्मावलंबी रोजाना श्रावक के तीन मनोरत की भावना भाने वाले होते है. उनका दूसरा मनोरत होता है अब मैं संयम अंगीकार करू, क्योंकि संयम बिना मुक्ति नहीं. आज उसी संयम भाव यात्रा के दौरान परम महासतिजी के करकमलों से रजोहरन हाथ में पाकर सारे श्रावक, श्राविकाएं भाव विभोर हो गए. हम भी संयम लेकर आत्मकल्याण कर सकते है, इस कल्पना ने ही सभी को भावातुर कर दिया. इस संसार के काल्पनिक सुखों का त्याग कर परम आनंद की प्राप्ती की यात्रा जो कि देवों को भी मुनकिन नहीं हम इस भव में करे तब हमारा मनुष्य जन्म सार्थक होगा.
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक अंबापेठ अमरावती व्दारा परम समाधिजी महासतिजी, परम ऋजुताजी महासतिजी, परम विभुतिजी महासतिजी के पावन सानिध्य में मनाया जाएगा. भगवान महावीर जन्म कल्यानक महोत्सव आज आयंबील ओली पर्व का आठवां दिन है. सात ही भगवान महावीर का जन्मकल्यानक महोत्सव भी मनाया गया. सचिव अनिलभाई चितालिया ने बताया कि, गद्रे मोटर्स के पीछे ट्युलीप अपार्टमेंट में सुबह 7.45 बजे भगवान महावीर जन्मकल्यानक शोभायात्रा का प्रारंभ गिरीशभाई छबिलदास कामदार व जयंतभाई छबिलदास कामदार परिवार के निवास स्थान से हुआ. सभी भाई सफेद वस्त्र और बहनों ने बांधनी की साडियां पहनकर शोभायात्रा में शामिल हुई. यह शोभायात्रा राजापेठ, कुथे स्टॉप से होते हुए रोहित दुध डेअरी के बाजू वाले मार्ग से अंबापेठ जैन स्थानक तक ले जाकर विसर्जित की गई. इस शोभायात्रा में श्री वर्धमान महिला मंडल, सुशिलबहु मंडल, श्री ब्राह्मी मंडल, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन युवक मंडल, अर्हम युवा सेवा ग्रुप व लूक एन लर्न के जैन ध्यान धाम के बच्चे तथा दीदियां अपनी ड्रेसकोड में शामिल हुई.

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