महाभारत कालिन है वायगांव का सिद्धिविनायक गणपति
पांडवों ने गणेश मूर्ति का दर्शन कर समाप्त किया था आज्ञातवास
टाकरखेडा शंभू – /दि.2भातकुली तहसील अंतर्गत श्री क्षेत्र वायगांव में स्थित सीधी सुंड के श्रीगणेश की मूर्ति महाभारत कालिन हैं. पांडव जब आज्ञातवास वास के लिए चिखलदरा आये थे. तब वापसी के समय सीधी सुंड वाले इस श्रीगणेश का दर्शन कर उन्होंने अपना आज्ञातवास समाप्त किया था, ऐसा कहा जाता हैं.600 साल पूर्व खुदाई काम में निकली श्रीगणेश की मूर्ति आज महाराष्ट्र के लाखों भाविकों का श्रद्धा स्थान हैं. महाराष्ट्र के दो ही स्थानों पर सिद्धिविनायक की मूर्ति स्थापित हैं. मुंबई के पश्चात अमरावती जिले की भातकुली तहसील अंतर्गत आने वाले श्री क्षेत्र वायगांव में यह दिव्य मूर्ति स्थापित हैं.
आज्ञातवास के दौरान पांडव चिखलदरा में विराट राजा के यहां ठहरे हुए थे. इसी मूर्ति के दर्शन से उन्होंने अपना आज्ञातवास समाप्त किया था. मूर्ति मध्यावर्ती मुगल काल में भूमिगत रखी गई थी. उस समय यह गांव सहित अचलपुर, दारापुर, कोल्हापुर मुगलों के अधीन था. उसके पश्चात 600 वर्ष के बाद की गई खुदाई में यह मूर्ति वायगांव में इंगोले के घर निकली. वह काल 16 वे शतक का था. तब से आज तक मूर्ति वाडारुपी मंदिर में स्थापित हैं. इस मूर्ति का दर्शन करने संपूर्ण महाराष्ट्र भर से हजारों भाविक आते हैं. इंगोले परिवार द्बारा भक्तों की सुविधा के लिए ट्रस्ट का निर्माण किया गया हैं. इंगोले परिवार द्बारा खेती देकर इस मंदिर का निर्माणकार्य पूर्ण किया.
मंदिर संस्थान का व्यवस्थापन लालजी पाटील, सीताराम पाटील, तुलसीराम पाटील, शिवराम पाटील, तुकाराम पाटील, श्रीराम पाटील, दयाराम पाटील कर रहें हैं और ट्रस्ट की कमान अध्यक्ष विलासराव इंगोले संभाल रहे हैं. ट्रस्ट की ओर से साल में 2 बडे उत्सव मनाये जाते हैं. जिसमें भाद्रपद शुल्क से पोर्णिमा तक गणेशोत्सव मनाया जाता हैं. रोजाना 10 दिन भक्तों के लिए अन्नदान, ज्ञानदान, भजन-कीर्तन, काकडा, हरिपाठ किया जाता हैं. ताल वृदंग व श्रीगणेश के जयघोष से श्री की पार्थिव मूर्ति का विसर्जन किया जाता है और उसके पश्चात महाप्रसाद का लाभ हजारों भाविक लेते हैं. गणेश जयंती उत्सव के लिए हजारों भाविक भक्त वायगांव आते हैं. हर महिने की संकट चतुर्थी को महिला व भाविकों की बडी संख्या में भीड मंदिर परिसर में रहती हैं.
सिद्धिविनायक गणेश मूर्ति की विशेषता
श्रीक्षेत्र वायगांव में स्थित सिद्धिविनायक गणेश की मूर्ति सीधी सोंड की हैं. इसलिए जिसकी दाहिनी बाजू सिद्धि और बायी बाजू रिद्धि हैं. एकदंत के चरण पर पदम शंख चिन्हाकिंत हैं, जो षड एश्वर्य का प्रतीक हैं. हाथ में माला व मोदक समृद्धि का संकेत दे रहे हैं. उत्तरायण-दक्षिणायन होते समय सुर्योदय की पहली किरण इस मूर्ति पर पडती हैं.