72 घंटे में बदल गई महाराष्ट्र की राजनीति
स्थानीय स्तर पर भी ‘कहीं खुशी-कहीं गम’ वाला माहौल
* कल तक सत्ता की चमक से चहकते सेना तथा कांग्रेस व राकांपा में मायूसी
* बदलते समीकरणों ने बढाया भाजपाईयों का जोश व उत्साह
अमरावती/दि.23– विगत तीन दिनों से महाराष्ट्र की राजनीति में बडा ही उथल-पुथलवाला दौर चल रहा है और अनिश्चिततावाले माहौल में संदेह और संभ्रम के बादल धीरे-धीरे साफ होते जा रहे हैं, क्योंकि इस समय गुवाहाटी में मौजूद शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने स्वतंत्र गुट हेतु आवश्यक सेना के 37 विधायकोें की ‘मैजिक फिगर’ को पार करने के साथ-साथ निर्दलीय विधायकों सहित अन्य दलों के विधायकों का समर्थन प्राप्त करते हुए अपने पास 50 विधायकों का समर्थन रहने की बात स्पष्ट कर दी है. साथ ही अब उन्हें अपने बेटे व सांसद श्रीकांत शिंदे के अलावा भावना गवली, कृपाल तुमाने व राजेंद्र गावित के रूप में सेना के कुल चार सांसदों का भी समर्थन प्राप्त हो गया है, जिससे अब यह साफ हो गया है कि, सीएम उध्दव ठाकरे के नेतृत्ववाली महाविकास आघाडी सरकार का गिरना पूरी तरह से तय है. यही वजह है कि, गत रोज सीएम उध्दव ठाकरे ने अपनी हार को लगभग स्वीकार करते हुए अपने सरकारी आवास ‘वर्षा’ बंगले को खाली कर दिया है और वे अपने निजी आवास ‘मातोश्री’ में परिवार सहित चले गये हैं. इन तमाम घटनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि, एकनाथ शिंदे द्वारा की गई बगावत की वजह से महज 72 घंटे के भीतर महाराष्ट्र की राजनीति और यहां के राजकीय समीकरण पूरी तरह से बदल गये हैं.
प्रादेशिक राजधानी मुंबई में चल रही इस उथल-पुथल का सीधा व प्रत्यक्ष असर अमरावती में भी देखा जा रहा है, जहां पर कल तक शिवसेना तथा कांग्रेस व राकांपा के स्थानीय पदाधिकारी आपस में गलबहियां करते हुए सत्तासुंदरी अपने पास रहने के चलते बडे जोशो-खरोश में दिखाई देते थे. वहीं आज तीनों ही दलों के पदाधिकारियों में जबर्दस्त मायूसी का माहौल है और उन्हें यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि, आखिर अचानक ही सब उलटा-पुलटा कैसे हो गया. वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय पदाधिकारी राज्यसभा व विधान परिषद के चुनाव में मिली जीत की वजह से पहले ही डबल उत्साह में थे. वहीं अब राज्य की राजनीति में हो रहे बदलाव ने उनकी खुशी का हैट्रीक लगा दिया है. यदि थोडा पीछे जाकर देखा जाये, तो करीब 20 दिन पहले अमरावती में भाजपा के लिए उत्साह का माहौल उस समय बना था, जब भाजपा ने राज्यसभा चुनाव के लिए अमरावती के वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मंत्री डॉ. अनिल बोंडे को अपना प्रत्याशी चुनते हुए सबको सुखद आश्चर्य का धक्का दिया था. अभी इस खबर पर खुशी व जश्न का माहौल चल ही रहा था कि, अगले ही दिन एक और खुशखबरी मिली, जब विधान परिषद चुनाव के लिए भाजपा द्वारा मूलत: अमरावती से वास्ता रखनेवाले श्रीकांत भारतीय को अपना प्रत्याशी बनाया गया. इन दोनोें ही प्रत्याशियों की जीत पहले दिन से ही पूरी तरह तय थी और केवल मतदान की खानापूर्ति होना बाकी था. ऐसे में इन दोनों प्रत्याशियों के नामों की घोषणा होने के साथ ही खुशी व जश्न का जो सिलसिला अमरावती भाजपा में शुरू हुआ, वह चुनावी नतीजे आने तक चलता रहा और विधान परिषद चुनाव के नतीजे आते ही जिस तरह से महाविकास आघाडी सरकार के पैरोंतले से जमीन खिसकी, उसे देखते हुए भाजपाईयों का खुश होना और जश्न मनाना तो लाजिमी था. इस समय अमरावती भाजपा में इसी को लेकर जमकर खुशी व जश्न का माहौल है, क्योंकि महाविकास आघाडी सरकार की रवानगी के साथ ही करीब ढाई वर्ष की प्रतीक्षा के उपरांत भाजपा के लिए सत्ता में वापसी करने का रास्ता खुल रहा है.
बता दें कि, वर्ष 2019 के अक्तूबर माह में महाराष्ट्र विधान सभा के चुनाव हुए थे और यह चुनाव भाजपा व सेना ने यूति के तौर पर साथ मिलकर लडा था. लेकिन विधानसभा में सत्ता स्थापित करने हेतु जादूई आंकडे के करीब यूति नहीं पहुंच पायी, जिसके चलते बहुमत हासिल करने के लिए निर्दलियों व छोटे दलों का समर्थन प्राप्त करने हेतु जद्दोजहद करने की बजाय भाजपा व सेना के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर ठन गई, जिसके परिणामस्वरूप यूति टूट गई और शिवसेना ने कांग्रेस व राकांपा के साथ हाथ मिलाते हुए महाविकास आघाडी के तौर पर सरकार स्थापित की, जिसके चलते अमरावती जिले के हिस्से में भी दो मंत्रीपद आये, जिसके तहत तिवसा निर्वाचन क्षेत्र की कांग्रेस विधायक एड. यशोमति ठाकुर को राज्य की महिला व बालविकास मंत्री बनाने के साथ ही जिला पालकमंत्री का जिम्मा भी सौंपा गया. वहीं अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र के निर्दलीय विधायक और जिले के तेजतर्रार नेता बच्चु कडू को राज्यमंत्री बनाते हुए अकोला के जिला पालकमंत्री का पद दिया गया. ऐसे में महाविकास आघाडी सरकार का गठन होने के साथ ही अमरावती जिले में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के पदाधिकारियों मेें पूरे ढाई साल तक अच्छा-खासा जोशो-खरोशवाला माहौल रहा, लेकिन अब हालात महज 72 घंटे के भीतर पूरी तरह से बदल गये है. क्योंकि महाविकास आघाडी सरकार का गिरना लगभग तय है, ऐसे में ढाई वर्ष हाथ में रही सत्ता अचानक खत्म हो सकती है. गत रोज मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने अपने सरकारी आवास वर्षा बंगले को खाली करते हुए एक तरह से सरकार के पतन पर अपनी मूहर लगा दी है. ऐसे में शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के स्थानीय पदाधिकारी भी मायूस और हतप्रभ हैं.
वहीं दूसरी ओर विगत पांच वर्ष के दौरान अमरावती शहर सहित जिले में भाजपा की स्थिति बडी मजबूत रही. पांच वर्ष तक अमरावती महानगरपालिका में भाजपा की सत्ता थी. साथ ही साथ इन पांच वर्षों के दौरान जिले की सात नगर परिषदों में भी स्पष्ट बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता रही. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाली और हमेशा ही कांग्रेस व राकांपा के प्रभुत्व में रहनेवाली जिला परिषद की 59 में से 27 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने जिप सदस्य के तौर पर जीत दर्ज की थी. ऐसे में किसी समय भाजपाईयों का उत्साह सातवें आसमान तक था. लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा को उस समय काफी झटके का सामना करना पडा, जब जिले की आठ विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट पर ही भाजपा को जीत हासिल हुई और शेष सात सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को करारी हार का सामना करना पडा. जबकि इससे पहले जिले की आठ सीटों में से चार सीटों पर भाजपा का कब्जा था. वहीं चुनावी नतीजे के बाद विधानसभा में 106 सदस्यों के साथ सबसे बडा दल रहने के बावजूद भाजपा को ऐन समय पर समीकरण बदल जाने के चलते सत्ता से वंचित रहना पडा था. जिससे उस समय भाजपाईयों में मायूसी का आलम था. क्योंकि हाथ आती सत्ता फिसलकर दूर चली गई, लेकिन अब राजनीतिक हालात ने एकबार फिर करवट बदली है, जिसके चलते भाजपाईयों को नींद के साथ-साथ खुली आंखों से सत्तासुंदरी के ख्वाब दिखाई देने लगे हैं और राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव में मिली जीत के बाद अब राज्य की सत्ता हासिल होने को लेकर बन रहे योग के चलते भाजपाईयों के मन में खुशी के लड्डू फूट रहे हैं और भाजपाईयों द्वारा जून 2022 को अपने लिए बेहद ‘लकी’ माना जा रहा है.
* मनपा सहित जिप चुनाव में दिखेगा सीधा असर
उल्लेखनीय है कि, इस समय अमरावती महानगरपालिका के साथ-साथ जिला परिषद के चुनाव को लेकर प्रारूप प्रभाग रचना का काम लगभग पूरा हो चुका है और मनपा चुनाव के लिए तो प्रभागनिहाय मतदाता सूची भी तैयार कर ली गई है. जिसका सीधा मतलब है कि, आगामी डेढ-दो माह में निश्चित रूप से महानगरपालिका के चुनाव होंगे. साथ ही इसी दौरान जिला परिषद के चुनाव भी करवाये जा सकते हैं. चूंकि विगत ढाई वर्षों से राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार थी. ऐसे में मनपा चुनाव को लेकर कांग्रेस, राकांपा व सेना पदाधिकारियों में काफी उत्साह भी देखा जा रहा था और भाजपा को मनपा की सत्ता से दूर रखने के लिए तीनोें ही दलों द्वारा तमाम आवश्यक नियोजन किये जा रहे थे. वहीं दूसरी ओर पांच वर्ष तक मनपा की सत्ता में रही भाजपा के लिए भी ‘करो या मरो’ वाली स्थिति थी, क्योंकि इस बार राज्य में भाजपा की सत्ता नहीं थी और अमरावती विधानसभा सीट भी भाजपा के हाथ से जा चुकी थी. साथ ही साथ बदले हुए राजनीतिक परिवेश की वजह से विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाये गये नेता सहित उनके समर्थकों द्वारा पिछले वर्ष ही अपना पाला बदल लिया गया था, जिसके तहत पांच वर्ष तक भाजपा के साथ रहे कई पार्षद व पदाधिकारी कांग्रेस में चले गये. जिसकी वजह से इस बार भाजपा के लिए मनपा की राह थोडी मुश्किल दिखाई दे रही थी, लेकिन अब राजनीतिक समीकरणों के बदलते ही एक बार फिर भाजपा के लिए रास्ता थोडा आसान दिखाई दे रहा है. वहीं अब तक उत्साह में दिखाई दे रही कांग्रेस, राकांपा व सेना की तैयारियों पर काफी हद तक पानी फिरता दिखाई दे रहा है. मनपा चुनाव के तरह ही जिला परिषद सहित नगर परिषदों के चुनाव को लेकर भी भाजपा अब उत्साह में देखी जा रही है. पिछली बार जहां जिला परिषद में भाजपा के 27 सदस्य थे, वहीं अब भाजपा द्वारा 66 में से कम से 35 से 38 सीटों को जीतने की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी गई थी, ताकि पहली बार जिप की सत्ता को हासिल किया जा सके. वहीं अब बदले हुए राजनीतिक हालात में भाजपा ने थोडा और उंचे टारगेट पर अपना ‘गोल सेट’ करना शुरू कर दिया है. इसके अलावा नगर परिषदों के चुनाव में भी पिछली सफलता को थोडा और बडे पैमाने पर दोहराने की भी तैयारी भाजपा द्वारा निश्चित तौर पर की जायेगी. ऐसे आसार बीते 24 घंटे में ही दिखाई देने लगे हैं.
* पाला बदलनेवाले दिख रहे पेशोपेश में
यहां यह कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, राजनीति का दूसरा नाम मौकापरस्ती भी हो सकता है और राजनीति में रहनेवाला हर व्यक्ति अपने लिए मुफीद मौकों की तलाश में रहता है, जिसके तहत हर कोई येन-केन प्रकारेण सत्ता में अपनी भागीदारी चाहता है. ऐसे में विचारधारा और सिध्दांतों की बात पूरी तरह से बेमानी कही जा सकती हैं. यही वजह है कि, अक्सर ही राजनीति में सक्रिय लोगबाग एक दल से दूसरे दल में ‘बंदरकूद’ मचाते रहते हैं, जिसके लिए आम बोलचाल की भाषा में दल-बदल व पार्टी प्रवेश अथवा घर वापसी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है. वर्ष 2014 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव के बाद से अमरावती शहर में इस राजनीतिक ‘बंदरकूद’ का नजारा कई बार दिखाई दिया. जिसके तहत कई लोग इधर से उधर हुए और फिर राजनीतिक हालात बदलते ही उधर से इधर हो गये, लेकिन अब राजनीतिक स्थिति ने एक बार फिर करवट बदली है. ऐसे में ‘इधर-उधर’ होनेवाले राजनेताओं व पदाधिकारियों द्वारा एकबार फिर अपने राजनीतिक फैसले का आकलन किया जा रहा है और सोचा जा रहा है कि, कहीं उनका फैसला गलत तो नहीं हो गया और अब बदली हुई राजनीतिक स्थिति में उन्हें ‘किधर’ होना चाहिए था.