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सनातन सभ्यता में वैज्ञानिक महत्ता से पूर्ण है महाशिवरात्रि अनुष्ठान

जगद्गुरु स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्य का कथन, महालक्ष्मी धाम श्रीक्षेत्र पाला में मनाया महानतम पर्व

अमरावती/दि. २०- महालक्ष्मी धाम, श्रीक्षेत्र पाला में बडे़ ही उत्साह से महानतम पर्व महाशिवरात्रि उत्सव मनाया गया. इस अवसर पर जगद्गुरु स्वामी श्री रामराजेशवराचार्य जी ने कहा कि, सनातन सभ्यता में वैज्ञानिक महत्ता से महाशिवरात्री अनुष्ठान पूर्ण हैं. गुरुभ्यो नमो ! नम: शिवाय ! परात्पराय, परब्रम्हणाय, षडशंकराय, चंद्रशेखराय गिरिश्वल्लभाय, सदाशिवाय, गुरुभ्यो नमो ! ओम नम: शिवाय के उच्चारण से महाशिवरात्रि अनुष्ठान शुरू हुआ. जगद्गुरू श्री रामराजेश्वराचार्यजी ने कहा, संसार के भूतभावन परात्पर महाप्रभु जिनको हम विश्वनाथ, विश्वेश्वर, राजेश्वर नामसे पुकारते है,आदि अनादि समस्त जगत को संचालित करनेवाले एवं घट घट में विराजने वाले भूत भवन भुनेश्वर सदा सर्वेश्वर महाप्रभु रुद्रेश्वर काशी विश्वनाथ राजेश्वर जिनकी महानतम पर्व पर शिवरात्रि मनाते हैं. महाशिवरात्रि पर्व पर ऋद्धेश्वर सिद्धेश्वर ज्योतिर्लिंग का पूजन अनुष्ठान मुख्य आकर्षण रहा. इस अनुष्ठान के लिए ब्राह्मण देवता का श्रीक्षेत्र ओंकारेश्वर से आगमन शुक्रवार को हुआ. ये अनुष्ठान शिव शक्ति आराधना हैं, जो भजन, कीर्तन, प्रवचन और सत्संग एवं सप्तशती की पाठ के समावेश से पूर्ण होता रहा. इस अवसर पर महाशिवरात्रि महापूजा में रात्रि के चारों प्रहर की पूजा का समापन रविवार प्रात: ६ बजे तक हुआ. २४ घंटे लंबा चला यह अनुष्ठान शनिवार सुबह ६ बजे से ही मंगलमय बेला में प्रारंभ किया गया. प्रत्येक प्रहर में भगवान सांब सदाशिव का अभिषेक पूजन विधिवत किया गया. इस क्रम को श्री गणेश पूजन एवं स्वस्तीवाचन से प्रारंभ किया. पश्चात राजोपचार और उसके बाद महाभिषेक का क्रम शुरू किया गया. महाअभिषेक में मुख्यत: पहले दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, एवं पंचामृत से जल अभिषेक हुआ. गन्ने के रस, विभिन्न फलों के रस एवं विभिन्न औषधियों से विशेष अभिषेक से किया. हार-फूल, फल और विविध रंग, मावा, मेवा पदार्थ के मिश्रण से आटा तैयार कर चंदन कुमकुम के मिश्रण का लेपन से शिवलिंग पर सुशोभित किया गया. सभी भक्तों ने ज्योतिलिर्ंग का जलाभिषेक करने का अद्भुत सौभाग्य महारात्रि के पर्व में पाया.

सुविचारों की कृति से बनती है संस्कृति
सुविचारों की कृति से बनती हैं संस्कृति ऐसा वैचारिक प्रबोधन पूज्यपाद जगद्गुरूजी ने व्यक्त किया. केतकी का फूल सुंदर होते हुए भी भगवान को अर्पित नहीं किया जाता. उसी प्रकार कोई व्यक्ति झूठी गवाही देता हैं, वह भगवान को अस्वीकार्य हैं. ज्योतिष गणना और शास्त्र अनुसार भौगोलिक द़ृष्टि से दिन और रात्रि का हमारे उपर प्रभाव गिरता हैं. विचारों की आकृति से बनती हैं संस्कारों की कृति. जैसी कृति के साथ मति का सहयोग होता हैं, वैसे ही हमारी मती को बुद्धि अनुग्रहित करती हैं. उसी के साथ आकृति निर्माण होती हैं. उसी आकृति के साथ उसकी स्वाभाविकता की दार्शिकता एवं जो भी व्यक्ति को हम मिलते हैं ऐसे व्यक्ति के स्वभाव का हमें परिचय होता हैं.अनुभव अपना कहना लेकिन अनुभवी होना फरक हैं. हर व्यक्ति के स्वकृति के आकृति में अवधारणा धारण करना ही संस्कृति को अपनाना हैं. हमारी आत्मा सनातन हैं, क्योंकी हिंदू एकमात्र हैं जो पूर्व जन्म की कल्पना करता हैं।

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