अमरावती

अस्पृश्यता के दानव का वध करनेवाली मुरहादेवी के दर्शन के लिए आनेवाले थे महात्मा गांधी

मूसलाधार बारिश ने अंजनगांव सुर्जी में रोक दिए कदम और लौटना पड़ा वापिस

  • मुरहा देवी नहीं पहुंचने का मलाल होने पर लिखा था पत्र

परतवाडा/दि.२३ – देश की अस्पृश्यता का निवारण करने के लिए महात्मा गांधी ने हरिजनों के लिए मंदिर खुले कराकर प्रवेश देने का आवाहन किया था. इस आवाहन को प्रतिसाद देते हुए अंजनगांव सुर्जी तहसील के मुरहा बु. के जगदंबा देवी संस्थान के विश्वस्तों ने ५०० हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाकर मुरहा देवी के पदस्पर्श से अस्पृश्यता के दानव का वध किया था. जगदंबा देवी संस्थान की विश्वस्तों की इस पहल के बारे में जब महात्मा गांधी को पता चला तो गांधीजी दिल्ली से मुरहा देवी के दर्शन के लिए अंजनगांव सुर्जी तक पहुंच गये. लेकिन मूसलाधार बारिश ने उनकी राह को रोक दिया और गांधीजी को बगैर दर्शन के लिए वापस लौटना पड़ा. इस दौरान गांधीजी ने विश्वस्त मंडल को एक पत्र भेजकर उनकी पहल की सराहना की. आज भी गांधीजी द्वारा भेजा गया यह पत्र विश्वस्त मंडल को समता, बंधुता का जतन करते हुए बेहतर निर्णय लेने की प्रेरणा दे रहा है. अमरावती जिले की अंजनगांव सुर्जी तहसील अंतर्गत आनेवाले मुरहा बु. स्थित जगदंबा देवी व संत श्री झिंगराजी महाराज संस्थान द्वारा व:हाड के इतिहास में लिए गये निर्णय आज भी आम नागरिको को प्रेरणा देनेवाले साबित हो गये है.
यहां बता दे कि देश में अस्पृश्यता का दानव अपना भयावह रूप धारण कर रहा था. इस दौर में महात्मा गांधी ने मांग, महार, चमार आदि समाज के नागरिको के लिए मंदिर खोलने का आवाहन किया था. महात्मा गांधी के इस आवाहन को प्रतिसाद देते हुए यहां के विश्वस्त मंडल ने वर्ष १९३३ में तत्कालीन तहसीलदार एस.जी.नाइक की मौजूदगी में बहुजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाया था. इस बारे में जब महात्मा गांधी को पता चला तो विश्वस्त मंडल के निर्णय की सराहना करने के लिए मुरहा देवी जाने का फैसला लिया और महात्मा गांधी दिल्ली से निकल पड़े. अंजनगांव सुर्जी तहसील में जैसे ही महात्मा गांधी का प्रवेश हुआ मूसलाधार बारिश ने उनकी मंदिर जाने की आगे की राह को रोक दिया. जिसके बाद महात्मा गांधी अंजनगांव सुर्जी से ही वापस लौट गये. इस बारे में विश्वस्त मंडल के रमेश पांडे ने जानकारी दी. समता, बंधुता व एकता में सहयोग देने पर विश्वस्तों की पीठ थपथपाने के लिए महात्मा गांधी ने २९ दिसंबर १९३३ में एक पत्र लिखा, जिसमें महात्मा गांधी ने लिखा कि ‘मुझे दु:ख है कि मैं अंजनगांव गया तो जिस मंदिर के हरिजनों के लिए खुलने पर मैंने धन्यता का यह तार पुणे से किया था। उसके दर्शन के लिए मैं नहीं जा सका, मेरी उम्मीद है कि हरिजन भाई, बहन मंदिर का उपयोग करते है और उनके उपयोग से दूसरे हिंदू जाने से हिचकते नहीं होंगे. मेरी यह भी उम्मीद है कि तुलसीबाई ने जो जमीन दी है. उसका भी सही उपयोग हरिजनो के लिए होता होगा. आज भी यह पत्र विश्वस्त मंडल को नये-नये निर्णय लेने के लिए प्रेरणा दे रहा है. यह जानकारी विश्वस्त मंडल के अध्यक्ष प्रकाश घोगरे, संजय कोपरे, गोवर्धन बोंद्रे, साहबराव पखान, रमेश पांडे, चंद्रशेखर घोगरे, हिम्मत पखान, पुरूषोत्तम मानकर, शालिग्राम चौरागडे, चंद्रशेखर बोंद्रे ने दी.

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