अमरावती

पर्यावरण का समतोल बनाए रखे

वन संवर्धन दिन पर विशेष

  • जैव विविधता का जतन करने वनविभाग के प्रयास जारी

अमरावती/दि.23 – भारतीय संस्कृति यह वृक्ष पूजक संस्कृति होने के साथ ही पर्यावरण को समतोल रखने वाली है. आंगन में तुलसी लगाने से लेकर बड़ पूर्णिमा को बड़ के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा आज भी सर्वत्र जारी है. लेकिन अब पेड़ों को काटे जाने से पर्यावरण का समतोल बिगड़ जाने के साथ ही उसे बनाये रखने का आव्हान मनुष्य के सामने है.
अमरावती प्रादेशिक विभाग के बारे में सोचा जाये तो इस विभाग में कुल क्षेत्र 2 हजार 262 स्क्वेअर किलोमीटर का है. जिसमें 2 हजार 444.42 स्क्वेअर किलोमीटर वन आरक्षित होने के साथ ही 15.81 स्क्वेअर कि.मी. का जंगल संरक्षित के रुप में रखा गाय है. जिसमें से 2.70 अवर्गीकृत वन है. अमरावती जिले का विचार किये जाने पर 1276.33, बुलढाणा 808.17 और अकोला 378.43 स्क्वेअर किलोमीटर वन प्रादेशिक वन विभाग में आता है. अमरावती प्रादेशिक वन विभाग का क्षेत्र उष्णकटीबंधीय यानि पत्तों के झड़ने का वन है. अब सभी तरफ वृक्षों को तोड़े जाने से इसका फटका पर्यावरण को बैठ रहा है.
वृक्ष पूजक संस्कृति के बावजूद देश में टहनियां, पत्ते और पेड़ तोड़कर उस पर उपजीविका चलाई जा रही है. वृक्ष यह प्राण वायु उत्पादक है. वनों के वृक्षों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग पर नियंत्रण है. इतना ही नहीं तो ओझोन की लेअर सुरक्षितता बढ़ती है. जमीन की गर्मी कम होती है. भूगर्भ के पानी का स्तर बढ़कर हवा में आद्रता बनी रहती है. पशु, पक्षियों का अस्तित्व बना रहता है. अनाज, वस्त्र, निवास, शुध्द हवा, पानी की आपूर्ति की जाती है.जैव विविधता का जतन करने के लिए वन विभाग व्दारा प्रयास जारी है.

ऑक्सीजन पार्क करता है ध्यानाकर्षित

अमरावती शहर में ऑक्सीजन पूरक वृक्षों का जतन हो, नागरिकों को अच्छा संदेश मिले, इसके लिए ऑक्सीजन पार्क की निर्मिति की गई. उत्कृष्ट सुशोभीकरण, नये प्रयोग, जंगल समान ऑक्सीजन पार्क सभी का ध्यानाकर्षित करता है.

अवैध चराई, अतिक्रमण से चिंता बढ़ी

आरक्षित जंगलों में आज भी मवेशियों को छोड़कर अवैध चराई की जाती है. जिसमें से जैवविविधता का नुकसान तो होता ही है, बावजूद इसके वन कर्मचारी, पशुपालकों के बीच का विवाद बढ़ता है. कई बार जंगल में आग लगती है. कोविड काल में जंगल में आग की घटना कम घटी. यह समाधान करने लायक बात है.

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