अमरावती/दि.8 – आर्थिक दुर्बल घटकों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय द्बारा मुहर लगाने से मराठा आरक्षण की आशा बढ गई है. उसी प्रकार मुस्लिम समाज में भी आरक्षण सुविधा मिलने की भावना व्यक्त हो रही है. उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में मराठा समाज को दिये 13 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया था. किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं देने के मुद्दे पर मराठा आरक्षण को रद्द किया था. ऐसे में मराठा संगठन अब आर्थिक आरक्षण के पक्ष में किये गये निर्णय का हवाला देकर आशान्वित दिखाई दे रहे हैं. वहीं मुस्लिम और ओबीसी को लगता है कि, सर्वोच्च न्यायालय ने उनके साथ भी इंसाफ करना चाहिए.
* वकील संघ के अध्यक्ष की प्रतिक्रिया
अमरावती वकील संघ के अध्यक्ष एड. शोएब खान ने अमरावती मंडल से बातचीत में आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था का स्वागत किया. साथ ही उन्होंने कहा कि, 50 प्रतिशत से अधिक कोटा नहीं रहने के आधार पर मराठा, मुस्लिम और ओबीसी आरक्षण नकारा गया था. महाराष्ट्र में 2004 से 2008 तक सच्चर कमिटी, जस्टीस रंगनाथ कमिटी और मेहमुद उर रहमान कमिटी की रिपोर्ट पर गौर कर मुस्लिम समाज को भी सर्वाच्च न्यायालय ने आरक्षण सुविधा देनी चाहिए. एड. खान ने कबूल किया कि, आर्थिक आधार के कोटे में मुस्लिमों को भी मौका मिलने वाला है, मगर उनका यह भी कहना रहा कि, आज आरक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता सबसे पिछडे मुस्लिम समाज को है. आरक्षण की बदौलत मुस्लिम समाज का एक बडा तबका का भला हो सकता है. उनका जीवनमान उंचा उठ सकता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को दिल बढाकर थोडा बहुत आरक्षण मुस्लिम समाज को अवश्य देना चाहिए.
* सबसे अधिक जरुरी- देशपांडे
समाज में आर्थिक आधार पर नौकरी और शिक्षा हेतु आरक्षण व्यवस्था को सर्वोच्च न्यायालय की मान्यता का अमरावती के प्रसिद्ध अधिवक्ता एड. प्रशांत देशपांडे ने स्वागत किया. देशपांडे ने कहा कि, सरकार ने जात, धर्म से अलग रहकर सही में जीने जरुरत है. उन्हें आरक्षण की सुविधा दी. उसी पर सर्वोच्च न्यायालय ने मान्यता दी है. फैसले की प्रमुख बात यह है कि, एससी या ओबीसी अथवा किसी ओर के कोटे से यह आरक्षण नहीं दिया गया है. जाति और धर्म का आधार नहीं है. सभी समाज के कमजोर तबकों के बच्चों को इससे फायदा होगा. इसका किसी भी व्यक्ति द्बारा विरोध करने का सवाल ही नहीं उठता. जरुरतमंदों के लिए यह सही है. अब भले ही ओबीसी, मराठा और मुस्लिम समाज में आरक्षण की मांग उठे, सर्वोच्च न्यायालय ने गरीबों के लिए महत्वपूर्ण फैसला दे दिया है.
* सामाजिक न्याय को चुनौती पूर्ण
ईडब्ल्यूएस आरक्षण वैध करने का निर्णय सामाजिक न्याय के लि चुनौती पूर्ण होने की बात राष्ट्रीय ओबीसी मुक्ति मोर्चा के संयोजक नितिन चौधरी ने कहीं. उन्होंने कहा कि, यह निर्णय 3 विरुद्ध 2 ऐसा हुआ है. जिससे इस फैसलें को चुनौती देने की आवश्यकता है. यह निर्णय विशेषकर ओबीसी आरक्षण प्रक्रिया को बडा अप्रत्यक्ष धक्का है. ईडब्ल्यूएस आरक्षण स्थायी करने का न्यायालय के जरिए प्रयत्न होने की बात भी चौधरी ने कहीं.