हव्याप्रमं में प्रवेश हेतु सिर ढांकना अनिवार्य
पद्मश्री प्रभाकर वैद्य ने लिया स्तुत्य निर्णय
* बढती गर्मी के मद्देनजर लिया गया फैसला
अमरावती/दि.20– इस समय जिले में तापमान लगातार उंचा उठ रहा है और गर्मी लगातार बढती जा रही है. ऐसे में खुद को तेज धूप व भीषण गर्मी से बचाये रखने हेतु सिर पर दुपट्टा व रूमाल बांधते हुए सिर व कान को अच्छे से ढांकना जरूरी होता है, ताकि लू न लगे और उष्माघात न हो. लेकिन इसके बावजूद हमेशा ही एक अलग तरह के ‘स्वैग’ में रहनेवाले युवाओं द्वारा इसे लेेकर लापरवाही बरती जाती है. ऐसे में युवाओं की क्रीडा संबंधी शिक्षा और प्रशिक्षण का सबसे बडा केंद्र रहनेवाले श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के प्रधान सचिव पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य ने हव्याप्रमं परिसर में प्रवेश करने हेतु टोपी व दुपट्टा पहनकर अपना सिर ढांकना अनिवार्य कर दिया है. साथ ही हव्याप्रमं में प्रवेश करते समय जिनके सिर पर टोपी या दुपट्टा नहीं होता, उन्हें प्रवेश द्वार पर हव्याप्रमं की ओर से दुपट्टा भेंट दिया जाता है और सिर व कान को अच्छी तरह से ढांकने के बाद ही किसी भी व्यक्ति को मंडल परिसर के भीतर प्रवेश दिया जाता है. पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य द्वारा लिये गये इस निर्णय की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है.
उल्लेखनीय है कि, इस समय जिले में तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के उपर जा पहुंचा है. ऐसे में अब बेहद तेज गर्मी पडने लगी है और आसमान से मानो चिलचिलाती धूप के रूप में आग बरस रही है. ऐसे में भीषण गर्मी से खुद को बचाये रखने हेतु धूप में निकलते समय अपने सिर व कान को अच्छी तरह से ढांकना बेहद जरूरी है, ताकि लू व उष्माघात के प्रभाव से बचा जा सके. लेकिन अधिकांश लोगबाग, विशेषकर युवा अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी हद तक बेफिक्र लापरवाह रहते है. चूंकि शहर के बीचोंबीच स्थित हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल में शैक्षणिक व क्रीडा संबंधी विभिन्न गतिविधियां चलती रहती है. जिनमें युवाओं का सहभाग काफी अधिक रहता है. ऐसे में हव्याप्र मंडल के प्रधान सचिव पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य ने हव्याप्रमं परिसर में प्रवेश करनेवाले हर एक व्यक्ति के लिए टोपी व दुपट्टे का प्रयोग करना अनिवार्य कर दिया. इसके तहत हव्याप्रमं के प्रवेश द्वार पर ही दुपट्टे उपलब्ध कराये गये है. जहां पर जिन लोगों के पास हव्याप्रमं परिसर में प्रवेश करते समय दुपट्टे नहीं होते, उन्हें पहले दुपट्टे उपलब्ध कराये जाते है और सिर व कान को अच्छी तरह से बांधने के बाद ही उन्हें हव्याप्रमं परिसर में प्रवेश दिया जाता है.