अमरावती-/दि.8 महाराष्ट्र राज्य में करीब 950 छोटी-बडी गौशलाएं हैं. जहां पर किसी भी तरह की सरकारी सहायता के बिना करीब ढाई से तीन लाख जानवरोें का पालन पोषण, देखरेख व संगोपन किया जाता हैं. परंतु इस काम को जारी रखना अब इन गौरक्षण संस्थाओं के लिए काफी महंगा साबित होने लगा हैं. क्योंकि इस काम में काफी पैसा खर्च होता हैैं और इस खर्च का वहन करने हेतु इन संस्थाओं को सरकार की ओर से कोई सहायता प्राप्त नहीं होती. ऐसे में इन संस्थाओं को शुरु रखना काफी मुश्कील काम हो गया हैं. जिसके चलते कई गौशालाएं अब बंद होने की कगार पर जा पहुंची हैं.
उल्लेखनीय है कि इस समय केंद्र सहित राज्य में गाय का महत्व जानने वाली सरकारे हैं जो गौपालन को ही पूरा महत्व देती हैं. ऐसे में अन्य राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी गौसेवा आयोग की निर्मिती किए जाने की मांग गौरक्षण संस्थाओं के संचालकों व गौ प्रेमियों व्दारा की जा रही हैं. बता दे कि राज्य में कई गौशालाओं का संचालन दानदाताओं के भरोसे पर चलता हैं. परंतु विगत कुछ वर्षो के दौरान दानदाताओं की संख्या काफी कम हो गई हैं, वहीं गौशालाओं में गौवंशी जानवरों का प्रमाण बढा हैं. ऐसे में सीमित आय के चलते इन जानवरों का गौशाला में संगोपन व संवर्धन करना बेहद मुश्किल काम हो गया हैं. ज्ञात रहे कि अमुमन गौशालाओं में वृद्ध, अपंग, बिमार व हादसाग्रस्त जानवरों को लाकर रखा जाता हैं. जिनके पालन पोषण व देखभाल पर काफी अधिक पैसा खर्च होता हैं.
गौसेवकों के मुताबिक देश में जितने भी भाजपा शासित राज्य है वहां पर संबंधित राज्य सरकारों को अपने राज्य की गौशलाओं को आर्थिक मदद देकर सक्षम बनाया हैं. लेकिन महाराष्ट्र में अब तक इसे लेकर कोई निर्णय नहीं दिया गया. यद्यपी राज्य सरकार के अन्न व प्रशासन विभाग व्दारा राज्य की कई गौशालाओं को पंचगव्य औषधियों के उत्पादन का लायसंस प्रदान किया गया हैं. लेकिन जानवरों की देखभाल करने अथवा गौशलाओं को शुरु रखने के लिए राज्य सरकार व्दारा कोई प्रयास नहीं किए जा रहे.गौरक्षण के साथ ही गौ पालन को प्रोत्साहन देना जरुरी
इस विषय को लेकर दै. अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए श्री गौरक्षण संस्था के सचिव दीपक मंत्री ने कहा कि, गौरक्षण की बजाए सरकार व्दारा यदि गौ पालन को प्रोत्साहित किया जाए तो गौशालाओें पर पडने वाले बोझ को कम किया जा सकता हैं. अक्सर पशु पालकों व्दारा भाखड हो चुकी गायों को औने-पौने दाम पर कटाई के लिए बेंच दिया जाता हैं. क्योंकि ऐसे जानवरों को पालना काफी महंगा हो चला हैं. साथ ही पहले गांवों में जानवरों की चराई क्षेत्र के लिए जो जमीनें खाली छोडी जाती थी अब वहां पर अतिक्रमण हो चला हैं ऐसे में जानवरों के लिए चारागाह भी नहीं बचे हैं. इन सभी बातों के मद्देनजर सरकार को चाहिए कि सबसे पहले तो पशु पालकों को गौ पालन के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्हें आवश्यक सहायता उपलब्ध करवायी जाए. इसके साथ ही गौरक्षण संस्थाओं को भी प्रति जानवर अनुदान दिया जाए, ताकि इन गौशालाओं में लाए जाने वाले जानवरों का पालन पोषण सही ढंग से हो सके.
राज्य में 900 से भी अधिक गौशालाओं की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हैं. यदि राज्य में गौसेवा आयोग का निर्माण होता हैं, तो सरकार की ओर से निधि मिलने के चलते इन गौशालाओं की स्थिति सुधर सकती हैं. अन्यथा आने वाले वक्त में कई गौशालाएं बंद हो जाएंगी और ऐसा होने पर जानवरों के संगोपन को लेकर काफी बडी समस्या खडी हो जाएगी.
– दीपक मंत्री,
सचिव, श्री गौरक्षण संस्था, अमरावती
सरकार व्दारा की जाती अनदेखी अपने आप में बेहद तकलीफदेह हैं. हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित हैैं, जिसमें गौवंशी जानवरों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हैं, यह बात पूरी तरह से साबित हो चुकी हैं. अत: सरकार ने गौरक्षा को लेकर गंभीरता दिखानी चाहिए. मौजूदा दौर में गौरक्षण संस्थाओं के लिए अपने दम पर व जनसहयोग के भरोसे गौपालन को जारी रखना काफी मुश्किल हो चला हैं. यदि ऐसा ही चलता रहा तो कई गौशालाओं को निश्चित तौर पर बंद करना पड सकता हैं.
दीपक मंत्री,
सचिव, श्री गौरक्षण संस्था, अमरावती