डॉ.सतीश पावडे लिखित ‘मराठी रंगभूमि आणि ब्सर्ड थिएटर ‘ का हुआ प्रकाशन
वैश्विक रंगभूमि की मराठी विरासतवाला ग्रंथ - निशिगंधा वाड
अमरावती/प्रतिनिधि/दि.३० – भारतीय रंगभूमि के दालन का महत्वपूर्ण दालन माने जो वाले मराठी रंगभूमि का स्वरुप तेजी से बदल रहा है. मराठी रंगभूमि ने पाश्चिमात्य साहित्य के नवीनता आत्मसात की है. प्रायोगिक रंगभूमि पर नये-नये कलात्मक गतिविधियों का अविष्कार होते रहने के साथ ही विसंगी से सुसंगती की खोज करने वाला मराठी रंगभूमि आणि ब्सर्ड थिएटर यह वैश्विक रंगभूमि का मराठी का वारसा बताने वाला ग्रंथ है. ऐसे विचार अभिनेत्री और लेखिका डॉ. निशिगंधा वाड ने व्यक्त किये.
विश्व रंगभूमि दिन निमित्त भारतीय साहित्य, कला व सांस्कृतिक प्रतिष्ठान शब्दसृष्टि व्दारा आयोजित डॉ. सतीश पावडे लिखित व नेक्स्ट पब्लिकेशन पुणे व्दारा प्रकाशित मराठी रंगभूमि आणि ब्सर्ड थिएटर ग्रंथ का दूरदृश्य प्रणाली व्दारा प्रकाशन किया गया. सुप्रसिध्द नाटककार व कादंबरीकार संजय सोनवणी, लेखक डॉ. सतीश पावडे की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रुप में कोलंबे के डे ड्रीम थियेटर्स की संचालिका तिलिनी दर्शनी मुनसिंह लिव्हेरा, विशेष अतिथि के रुप में म.रा. सांस्कृतिक कार्य संचालनालय के संचालक विभीषण चवरे, मराठा सेवा संघ के संस्थापक पुरुषोत्तम खेडेकर, नाटककार, समीक्षक व लेखक राजीव जोशी, चित्रकार व लेखक विजयराज बोधनकर, संगीतसूर्य केशवराव भोसले, सांस्कृतिक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिलीप सालुंके, बहुजन रंगभूमि नागपुर के अध्यक्ष नाटककार, दिग्दर्शक वीरेन्द्र गणवीर, आदिवासी कला व साहित्य की अभ्यासिका डॉ. मंदा नांदुरकर आदि उपस्थित थे. इस समय संजय सोनवणी ने कहा कि भारतीय विचार पध्दति को नये अवसर देकर ब्सर्ड थिएटर को परिपूर्ण करने वाला यह मराठी वैश्विक ग्रंथ है. इसमें मानवी विचार प्रसारण की जड़ वाला सामाजिक, मानसिक प्रक्रिया को प्रकट करने का सामर्थ्य इस कला प्रकार में अधिक है. संवेदनशील, सृजनक्षम व मर्मज्ञ ज्ञानेंद्रियों से अविष्कृत हुए डॉ. सतीश पावडे का यह ग्रंथ मराठी रंगभूमि को नई दिशा देने वाला है. ऐसे विचार विजयराव बोधनकर ने व्यक्त किये.
मनुष्य जीवन की निरर्थकता, विसंगती व मिथ्याभान की पहचान करवाने वाला तत्वज्ञान यानि ब्सर्ड थिएटर है. ब्सर्ड नाटक मानव जीवन को अर्थ प्राप्त करवाने के लिये, सुसंगत करने के लिये, मानवी लड़ाई के लिये सज्ज करता है.
ब्सर्ड तत्वज्ञान यानि नकारात्मक, निराशावादी और निरर्थक के बारे में बताया गया है. लेकिन यह तत्वज्ञान निराशा का न होने की बात इस ग्रंथ से ज्ञात होती है. इस ग्रंथ में मराठी नाटकों की संहिता व प्रयोग का चिकित्सात्मक विश्लेषण किया गया है. यह ग्रंथ मराठी रंगभूमि को नया ब्सर्ड राजाश्रय दिलवाने वाला होने का विश्वास भी डॉ. मंदा नांदुरकर ने इस समय व्यक्त किया.
कार्यक्रम का प्रास्ताविक शब्दसृष्टि के संस्थापक-अध्यक्ष व मनोहर मीडिया के संचालक प्रा. डॉ. मनोहर ने कि या. उन्होंने अपने प्रास्ताविक में बताया कि 1961 में युनेस्को के इंटरनेशनल थिएटर इन्स्ट्यिूट ने 27 मार्च यह दिन विश्व रंगभूमि दिन के रुप में घोषित किये जाने के बाद हर साल विविध कार्यक्रम व उपक्रमों व्दारा यह दिन मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति और उनके संवाद साधने की कला से सामुदायिक कलाविष्कार को अंग्रेजी में थिएटर और मराठी में रंगभूमि कहा जाता है. रंगभूमि, नाट्यसंहिता, नाट्य दिग्दर्शक, रंगभूषा, वेशभूषा, रंगमंदिर, रंगमंच ये सभी बातें रंगभूमि से निगडित है, ऐसा कहकर रंगभूमि के इतिसाह से वे आज की रंगभूमि, मराठी नाटककारों व्दारा लिखे गये नाटक, उनकी मर्यादा, प्रेक्षकों की मनोभूमिका इस मुद्दे पर विस्तारपूर्वक विवेचन करना समय की जरुरत होने का प्रतिपादन उन्होंने किया. इसके साथ ही उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि आज तक के रंगभूमि का सिंहावलोकन किये जाने पर यह बात ध्यान में आती है कि अंग्रेजी नाटक मराठी में अनुवादित होते हैं. लेकिन मराठी नाटक अंग्रेजी में अनुवादित नहीं होते.
कार्यक्रम का संचालन शब्दसृष्टि के विश्वस्त व समारोह संयोजक प्राचार्य मुकुंद आंधलकर ने, आभार प्रदर्शन शब्दसृष्टि पत्रिका के प्रबंध संपादक व समारोह संयोजक आशा रानी ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने शब्दसृष्टि के प्रसिध्दी प्रमुख व समारोह समन्वयक डॉ. अनिल गायकवाड़, समारोह तंत्र समन्वयक शैलेष सपकाल, रविन्द्र महाडिक ने परिश्रम किया. इस अवसर पर नाटक क्षेत्र के अनेक मान्यवर व पत्रकार व परिवारजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे.