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विभिन्न आकार-प्रकारवाली गाठियों से सज गया बाजार

होली के पर्व पर मिठास बिखेरने गाठियां तैयार

अमरावती/दि.15– आगामी 17 मार्च को होलिका दहन का पर्व मनाया जायेगा. जिसके पश्चात 18 मार्च को धुलिवंदन मनाते हुए सभी लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर होली की खुशिया मनायेंगे. इस पर्व में जितना महत्व अबीर-गुलाल व रंगों का है, उतना ही महत्व शक्कर से बनी मीठी गाठियों का भी होता है. इस पर्व पर छोटे बच्चों का गाठी खिलाकर मुंह मीठा करवाते हुए उन्हें रंग लगाने की परंपरा है. साथ ही नवविवाहिता को भी पहली होली पर साडी-चोली के साथ गाठी की भेंट देने की परंपरा होती है. इन सभी बातों के मद्देनजर होली पर्व से पहले बाजार में जगह-जगह पर विभिन्न आकार-प्रकारवाली गाठियों की दुकाने सज गई है. हालांकि इस बार गाठियों के दामों में 15 से 20 फीसद की वृध्दि हुई है, लेकिन बावजूद इसके गाठियों की अच्छी-खासी मांग भी है.
बता दें कि, कोविड संक्रमण के चलते विगत दो वर्ष होली के पर्व पर काफी तरह के प्रतिबंध व निर्बंध लगा दिये गये थे. साथ ही महामारी के खतरे को देखते हुए लोगों ने अपने घर-परिवार व परिचितोें के यहां बच्चों को गाठी देना टाल दिया था. क्योेंकि लोगबाग बाहर से बनी कोई भी खाने-पीने की वस्तु अपने घरों में नहीं लाना चाह रहे थे. किंतु अब चूंकि कोविड की महामारी काफी हद तक नियंत्रण में आ चुकी है और हालात पहले की तरह सामान्य हो चले है, तो निश्चित रूप से होलिका पर्व एक बार फिर पहले की तरह बडी धुमधाम के साथ मनाया जायेगा. जिसके लिए सभी लोगों ने अपने-अपने स्तर पर अभी से तैयारियां भी शुरू कर दी है. ऐसे में रंग व अबीर-गुलाल तथा पिचकारियों के साथ-साथ शहर में प्रमुख व्यापारिक क्षेत्रों सहित विभिन्न इलाकों में अलग-अलग आकार-प्रकार वाली गाठियों की दुकाने भी सज गई है.
बता दें कि, शहर में इतवारा बाजार परिसर के पास स्थित फुटाना लाईन सहित मसानगंज परिसर में गाठियां तैयार करनेवाले करीब 12 से 15 पारंपारिक कारखाने है. जहां पर विगत 10-12 दिनों से बडी तेजी के साथ अलग-अलग आकार-प्रकारवाली गाठियां तैयार करने का काम चल रहा है. इस समय जहां साधी गाठी 100 से 120 रूपये प्रति किलो की दर पर उपलब्ध है, वहीं अलग-अलग आकार-प्रकारवाली डिजाईनर गाठियां 300 से 500 रूपये प्रति किलो के दाम पर बिक रही है. उल्लेखनीय है कि, इन गाठियों को तैयार करने हेतु प्रतिवर्ष कोल्हापुर, सोलापुर, कानपुर व इलाहाबाद जैसे शहरों से कारागीर विशेष तौर पर अमरावती बुलाये जाते है. उनके साथ मिलकर स्थानीय कारागीर गाठियां बनाने का काम करते है.

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