कौंडण्यपुर/दि.5 – आषाढी एकादशी के अवसर पर इस साल भी पंढरपुर वारी के लिए केवल दस ही पालकियों को जाने की अनुमति दी गई है. जिसमें विदर्भ के श्री क्षेत्र कौंडण्यपुर से माता रुख्मिणी की भी पालकी का समावेश है. संत सदगुरु सदाराम महाराज ने साल 1554 में पालकी की परंपरा शुरु की थी. जिसे 427 साल पूर्ण हो चुके है इतने सालों के पश्चात भी यहां से पालकी निकालने की परंपरा कायम है.
कोरोना महामारी के चलते इस साल पालकी 18 जुलाई को एसटी बस से पंढरपुर के लिए रवाना होगी और 20 जुलाई को श्रीक्षेत्र कौंडण्यपुर की ओर से विट्ठल रुख्मिणी को अहेर कर पालकी 21 जुलाई को वापस लौटेगी. श्री क्षेत्र कौंडण्यपुर की यह रुख्मिणी माता की पालकी सबसे पुरानी है. इसे 427 वर्ष पूर्ण हो चुके है. कोरोना के चलते इस साल भी कौंडण्यपुर से निकले वाली इस पालकी में कुछ ही श्रद्धालु शामिल होंगे.
विट्ठल रुख्मिणी मंदिर यहां कार्तिक पौर्णिमा की प्रतिपदा को दहीहांडी के दिन महाराष्ट्र सरकार की ओर से रुख्मिणी माता की शासकीय पूजा की जाती है. आषाढी एकादशी को जमा होने वाले श्रद्धालु श्रीक्षेत्र कौंडण्यपुर की वर्धा नदी में अभ्यंग स्नान कर पंढरपुर वारी के लिए रवाना होते है. लेकिन इस साल कोरोना के चलते सभी नियमों में बदलाव किया गया है.
केवल 50 श्रद्धालु होंग शामिल
कोरोना महामारी के चलते कौंडण्यपुर से पंढरपुर जाने वाली माता रुख्मिणी की पालकी में केवल 50 श्रद्धालु ही शामिल होंगे. पिछले साल भी कोरोना के चलते माता रुख्मिणी की पालकी एसटी बस से पंढरपुर रवाना हुई थी. इस साल भी कोरोना के सभी नियमों का पालन कर यह पालकी 50 श्रद्धालुओं की उपस्थिति में पंढरपुर के लिए 18 जुलाई को रवाना होगी.
– नामदेव अमालकर,
अध्यक्ष विट्ठल रुख्मिणी मंदिर संस्थान कौंडण्यपुर