अमरावती

कडकडाती ठंड और कच्ची झोपडी में प्रसूति

जच्चा-बच्चा की जान बचाने स्वास्थ्य महकमे की दौडभाग

अमरावती/दि.17 – आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र की धारणी व चिखलदरा तहसीलों के दुर्गम इलाकों में जहां एक ओर मुलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी ओर आदिवासी ग्रामीणों में आधुनिक चिकित्सा पध्दति को लेकर जानकारी का भी कुछ हद तक अभाव है. जिसके चलते मेलघाट क्षेत्र से आये दिन कोई न कोई अलग तरह की खबर सामने आती है. ऐसे ही गत रोज चिखलदरा तहसील अंतर्गत सुबह 6 बजे कडकडाती ठंड के बीच फुलमा सुधाकर सेलूकर (20, बोराट्याखेडा) नामक एक गर्भवती महिला अपने खेत में बनी झोपडी में रहते समय प्रसव पीडा से छटपटाने लगी. उसकी प्रसव पीडा को देखते हुए करीब तीन किमी दूर स्थित स्वास्थ्य केंद्र के स्वास्थ्य कर्मियों को इसकी इतिल्ला दी गई. सूचना मिलते ही स्वास्थ्य कर्मी तुरंत ही जंगल और झाडियों में से रास्ता बनाते हुए उस खेत में पहुंचे. जहां पर सुबह 8 बजे एक प्यारे से बच्चे का जन्म भी हुआ. लेकिन चूंकि इस पहाडी क्षेत्र में मौसम काफी सर्द था. ऐसे में नवजात बच्चे सहित नवप्रसूता महिला को ठंडी से बचाने और तीन किमी दूर स्थित स्वास्थ्य केंद्र तक लाने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को काफी जद्दोजहद करनी पडी. उल्लेखनीय है कि, कुपोषण का कलंक झेल रहे मेलघाट में जहां एक ओर स्वास्थ्य सुविधाओं का जबर्दस्त अभाव है, जिसके चलते न्यायालय के आदेश पर सर्वोच्च समिती द्वारा आदिवासी बहुल क्षेत्र के प्रत्येक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर समीक्षा करते हुए उसकी गोपनीय रिपोर्ट अदालत में पेश की जानी है. वहीं दूसरी ओर क्षेत्र के आदिवासी नागरिक अपना इलाज कराने हेतु स्वास्थ्य केंद्र में नहीं जाते और घर पर ही बीमारियों का इलाज व महिलाओं की प्रसूति कराते है. इसके अलावा क्षेत्र में बडे पैमाने पर अंधश्रध्दा भी व्याप्त है. जिसके चलते क्षेत्र के आदिवासी तंत्र-मंत्र पर भी काफी भरोसा रखते है और भूमका यानी मांत्रिकों के पास अपनी बीमारियों का इलाज कराने जाते है. जिसका कई बार विपरित परिणाम भी होता है. इससे संबंधित अनेकों उदाहरण अब तक सामने आ चुके है.
ऐसे ही कल गुरूवार 16 दिसंबर को बोराट्याखेडा में रहनेवाली गर्भवती महिला फुलमा सेलूकर को सुबह 6 बजे से प्रसवपीडा होनी शुरू हुई. खेत के बीचोंबीच बनी झोपडी में रहनेवाली इस महिला के सभी परिजन बच्चे का जन्म होने की प्रतीक्षा कर रहे थे. किंतु फुलमा की तकलीफें लगातार बढती जा रही थी और बच्चे का जन्म नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उसके पति सुधाकर सेलूकर ने 3 किमी दूर स्थित स्वास्थ्य केंद्र तक पैदल जाकर वहां तैनात स्वास्थ्य सेविकाओं को इसकी जानकारी दी. जिसके बाद स्वास्थ्य सेविका शांता उईके, आशावर्कर पूनाय धिकार व अंगणवाडी सेविका तुरंत ही मौके पर पहुंचे और उन्होंने फुलमा की प्रसूति सुरक्षित तरीके से करायी. इस समय फुलमा ने एक स्वस्थ व प्यारे बच्चे को जन्म दिया. किंतु यह खेत एक उंची टेकडी पर स्थित है और परिसर में कडाके की ठंड भी पड रही है. ऐसे में बच्चे को तुरंत गर्म कपडे में लपेटा गया. साथ ही बच्चे के माता-पिता को बारोट्याखेडा उपकेंद्र में चलने हेतु कहा गया. ताकि वहां पर बच्चे को वार्मर अथवा हायपोथर्मिया किट में रखा जा सके. किंतु फुलमा इसके लिए तैयार ही नहीं थी. जिसके चलते सामूदायिक स्वास्थ्य अधिकारी दीपक कुंडेटकर व वाहन चालक विजय धुर्वे ने सेलूकर परिवार को समझाबुझाकर विश्वास में लिया. पश्चात फुलमा और उसके नवजात बच्चे को खेत की झोपडी से स्वास्थ्य उपकेंद्र में लाया गया. जहां पर जच्चा-बच्चा अब स्वास्थ्य महकमे की निगरानी में है.

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